आवाज द वाॅयस / वाराणसी
आज भी वाराणसी के गंगा तट के निकट एक मंद रोशनी वाले कमरे में मुहम्मद सिराजुद्दीन रेशम के धागे की रोलिंग से रेशमी साड़ियां बुनने में जुटे हैं. इस शहर के वह इकलौते कारिगर हैं जो हाथ से रेषमी साड़ियां तैयार करते हैं.
बातचीत के दौरान मुहम्मद सिराजुद्दीन अपने मंद रोशनी वाले कमरे में हैंडलूम से रेशमी साड़ी बुनने वाले वाराणसी के कारीगरों की व्यथाकथा सुनाते हैं.सिराजुद्दीन की हैंडलूम पर जब बाहें चलती हैं, तो रेशमी कपड़ा लकड़ी के बीम की ताल की आवाज के साथ विशेष तरीके से तैयार होने लगता है.
मुहम्मद सिराजुद्दीन को हाथ से रेशम की साड़ियां बनाने में बहुत मेहनत लगती है.बता दें कि बनारसी साड़ियों के इस्तेमाल का चलन महिलाओं की परंपराओं में से एक है. उनके बीच वाराणसी रेशमी साड़ियां बहुत लोकप्रिय हैं.
दरअसल,वाराणसी देश की धार्मिक नगरियों में से एक है.इसके अलावा इसकी पहचान वाराणसी साड़ियों से भी है. सिराजुद्दीन की रोजी-रोटी का एकमात्र सहारा उनके कमरे में रेशम के धागे से तैयार होने वाले कपड़े हैं.
65 वर्षीय सिराजुद्दीन का कहना है कि इस इलाके में घूमने पर, आपको उनका एकमात्र घर मिलेगा , जहां हस्तकरघे से रेशमी कपड़े तैयार होते हैं.उन्होंने कहा, ‘‘जब तक मैं जिंदा हूं, इसी तरह चलता रहेगा. उसके बाद क्या होगा, मैं नहीं कह सकता. मेरे बाद इस घर में कोई और नहीं बचेगा.‘‘
बता दूं कि वाराणसी में विभिन्न पैटर्न और फूलों के डिजाइन वाले चमकदार, सुनहरे और रेशमी कपड़े सदियों से तैयार किए जाते रहे हैं.बनारसी साड़ियां, यहां आज भी बनती हैं. यहां की
साड़ियां दुल्हनों के लिए विशेष उपहार हैं, जिन्हें अक्सर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पारिवारिक विरासत के तौर पर आगे बढ़ाया जाता रहता है.सिराजुद्दीन ने कहा, उनका वर्तमान काम लगभग घाटे का सौदा है.
उनका कहना है कि साड़ी बनाने में जितनी मेहनत और लागत लगती है. उसकी तुलना में बचत लगभग न के बराबर है.वह कहते हैं,‘‘मेरे पड़ोस के अधिकांश लोग रेषमी कपड़े बिजली के करघों पर तैयारते है. .‘‘
उनका कहना है कि हैंडलूम और इलेक्ट्रिक लूम फैब्रिक में अंतर होता है. टेक्सटाइल की सूक्ष्मताओं को देखते हुए इसकी कीमत भी अलग होती है.