आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली
देशभर में रविवार की रात लोग आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे रहे, क्योंकि इस रात एक बेहद दुर्लभ खगोलीय घटना—पूर्ण चंद्रग्रहण—का नजारा होना था। लद्दाख से लेकर तमिलनाडु तक हज़ारों लोग खुले मैदानों, घरों की छतों और तारामंडलों के बाहर उमड़े। रात 9 बजकर 57 मिनट पर जैसे ही पृथ्वी की छाया ने चंद्रमा को ढकना शुरू किया, उत्सुकता और रोमांच का माहौल और गहरा गया।
हालांकि कई हिस्सों में बारिश और बादलों ने इस दृश्य को ढककर लोगों की उम्मीदों पर पानी फेरने की कोशिश की, लेकिन फिर भी खगोलीय सौंदर्य की झलक पाने वालों के लिए यह रात यादगार बन गई।
रात 11 बजकर 1 मिनट पर पृथ्वी की छाया ने चंद्रमा को पूरी तरह अपने घेरे में ले लिया। लगभग 82 मिनट तक चंद्रमा तांबे जैसी लाल आभा बिखेरता रहा। यह दृश्य भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान और तारामंडलों द्वारा आयोजित लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए लाखों लोगों तक पहुँचा। संस्थान ने बेंगलुरु, लद्दाख और तमिलनाडु स्थित अपने परिसरों में लगी दूरबीनों को चंद्रमा की ओर मोड़ दिया और ग्रहण की प्रक्रिया को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर साझा किया। जिन इलाकों में बादल और बारिश ने लोगों को सीधे ग्रहण देखने से रोका, उनके लिए यह तकनीकी प्रसारण राहत का साधन बन गया।
भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के विज्ञान संचार एवं शिक्षा अनुभाग के प्रमुख नीरुज मोहन रामानुजम के अनुसार, “पूर्ण चंद्रग्रहण 11 बजकर 1 मिनट से 12 बजकर 23 मिनट तक रहा, यानी कुल 82 मिनट तक।” वहीं, जवाहरलाल नेहरू तारामंडल की पूर्व निदेशक बी.एस. शैलजा ने बताया कि ग्रहण के दौरान चंद्रमा लाल दिखाई देता है, क्योंकि उस तक पहुंचने वाला सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल से परावर्तित होकर फैल जाता है। इसी वजह से ग्रहण के दौरान चंद्रमा पर ‘ब्लड मून’ जैसा रंग दिखता है।
यह ग्रहण केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे एशिया, यूरोप, अफ्रीका और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के कई हिस्सों से देखा गया। भारतीयों के लिए यह खास इसलिए भी था क्योंकि 2022 के बाद से यह देश में दिखाई देने वाला सबसे लंबा पूर्ण चंद्रग्रहण था। इससे पहले 27 जुलाई 2018 को पूरे भारत से चंद्रग्रहण देखा गया था। अगली बार ऐसा दृश्य अब 31 दिसंबर 2028 को दिखाई देगा।
ग्रहण एक सामान्य खगोलीय घटना है, लेकिन इसे लेकर आम लोगों में कई मान्यताएँ और अंधविश्वास जुड़े हुए हैं। भारत में अब भी बड़ी संख्या में लोग मानते हैं कि चंद्रग्रहण भोजन और पानी पर नकारात्मक असर डालता है। इसी वजह से ग्रहण के दौरान लोग खाना-पीना छोड़ देते हैं और शारीरिक गतिविधियों से परहेज करते हैं। यहाँ तक कि गर्भवती महिलाओं को भी इस दौरान सावधान रहने की सलाह दी जाती है, मानो ग्रहण उनके अजन्मे बच्चों को नुकसान पहुँचा सकता है। खगोलविद बार-बार स्पष्ट करते हैं कि चंद्रग्रहण का किसी भी व्यक्ति, जानवर या भोजन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह महज़ सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की स्थितियों का खेल है, जिसे वैज्ञानिक रूप से आर्यभट्ट के जमाने से समझा जा चुका है।
रामानुजम कहते हैं कि लोग बेझिझक ग्रहण के दौरान बाहर निकलकर खाना खा सकते हैं और इस अद्भुत दृश्य का आनंद ले सकते हैं। दुर्भाग्य से, बीते समय में कई घटनाएँ ऐसी सामने आईं जब अंधविश्वास के कारण लोग भयभीत होकर नुकसान झेल बैठे। यही वजह है कि वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे मौकों पर विज्ञान के प्रति जागरूकता फैलाना बेहद ज़रूरी है।
रविवार का यह खगोलीय आयोजन विज्ञान प्रेमियों के लिए तो रोमांचक था ही, आम लोगों के लिए भी एक अनुभव से भरी रात साबित हुई। खुले आसमान में लालिमा से रंगा चंद्रमा यह याद दिलाता रहा कि ब्रह्मांड कितना अद्भुत और रहस्यमय है। और भले ही बादलों ने कई जगहों पर किरकिरी की, लेकिन तकनीक की बदौलत हर किसी को इस दुर्लभ घटना का हिस्सा बनने का अवसर मिला।