मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली
कर्नाटक में एक वर्ग भाईचारगी बिगाड़ने पर आमादा है. इसके लिए पहले मंदिरों में मुसलमानों को दुकान लगाने से रोका गया. अब हलाल मीट का बहिष्कार करने को लेकर अभियान चलाया जा रहा है. इसी बीच कर्नाटक जमीयत उलेमा ने ऐसे लोगों को ‘करारा जवाब’ देने की कोशिश की है.
जमीयत उलेमा के इस पहल की आलोचना नहीं, बल्कि हर तरफ तारीफ हो रही है. माना जा रहा है कि जीमयत की पहल से न केवल माहौल में व्याप्त तनाव कम होगा, सौहार्द बिगाड़ने वालों की इससे आखें भी खुलेंगी.
याद रहे कि हाल के दिनों में कर्नाटक में एक वर्ग ने मंदिरों में लगने वाले मेलों में मुस्लिम दुकानदारों को दुकान लगाने से रोक दिया था. इसको लेकर तर्क दिया गया, चूंकि मंदिरों में केवल हिंदू व्यापारियों को दुकान लगाने का नियम है.
बीच में इसमें ढील देने की वजह से मंदिरों में लगने वाले मेलों में मुस्लिम दुकानदार भी दुकानें लगाने लगे . अब पुराने नियत को कड़ाई से लागू किया जाने लगा है.यह मामला अभी शांत भी नहीं हुआ कि अब उसी वर्ग ने कर्नाटक में हलाल मीट के खिलाफ आंदोलन छोड़ दिया है.
प्रदेश के विभिन्न शहरों में घूम-घूम कर लोगों को समझाया जा रहा है कि वे हलाल मीट का सेवन न करें. इसकी जगह झटका मीट खाएं. झटका मीट भी मुस्लिम व्यापारियों से न खरीदें.
— Imran Khan (@KeypadGuerilla) March 31, 2022
एक दिने पहले आठ संगठनों ने हलाल मीट के खिलाफ एक बैठक कर लोगों से इसे न खरीदने का आह्वान किया . बैठक में यहां तक कहा गया कि मुस्लिम समुदाय द्वारा देश की वित्तीय संपत्ति पर नियंत्रण करने की साजिश चल रही है.
ऐसे लोगों को जवाब देने के लिए कर्नाटक की जमीयत उलेमा ने भी प्रदेश के मुसलमानों को एक नोटिस जारी किया है. मगर जीमयत का यह संदेष प्रदेष में भाईचारगी बिगाड़ने वाला नहीं, बल्कि बनाए रखने मंे मददगार साबित होगा.
जमीयत उलमा कर्नाटक के धार्मिक नेताओं ने एक नोटिस जारी कर प्रदेश के मुसलमानांें को रमजान के पवित्र महीने में हिंदू व्यापारियों को बिना किसी रुकावट के व्यापार करने की अनुमति देने का आह्वान किया है.
— Hate Watch Karnataka. (@Hatewatchkarnat) March 31, 2022
उल्लेखनीय है कि रमजान मुसलमानों के लिए न केवल इबादत का महीना है. इस महीने यह वर्ग अपनी हैसियत से अधिक खर्च भी करता है. महीने के अंत में ईद का त्योहार मनाया जाता है. मुसलमानों का ईद से बड़ा कोई और त्योहार नहीं. इस मौके पर मुसलमान दिल खोलकर खर्च करते हैं.
चूंकि देश के व्यापार में मुस्लिमों की हिस्सेदारी न के बराबर है, इसलिए रमजान हो या ईद-बकरीद सारी खरीदारी मुसलमान दूसरे वर्गों की प्रतिष्ठानों से ही करते हैं. ईद को व्यापार के लिए ऑक्सीजन बताया जाता है.
इसकी वजह है कि ईद ऐसे समय आती है, जब व्यापार का स्लो डाउन चल रहा होता है. आस-पास कोई अन्य त्योहार भी नहीं होता. ऐसे में रमजान-इर्द व्यापार की चमक बढ़ा देती है.