यूनेस्को ने माना मराठा विरासत का लोहा, 12 किले बने विश्व धरोहर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 16-07-2025
UNESCO acknowledged the strength of Maratha heritage, 12 forts declared World Heritage
UNESCO acknowledged the strength of Maratha heritage, 12 forts declared World Heritage

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली 

छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिन्दवी स्वराज्य की अनेक विशेषताओं में से एक सबसे चमकदार पहलू उनके अद्भुत किले हैं, जो केवल पत्थरों की इमारतें नहीं, बल्कि मराठा साम्राज्य की आत्मा का जीवंत प्रमाण हैं. 

ये किले विदेशी आक्रमणों की पहली चोट झेलते हुए भी अडिग रहे. हाल ही में महाराष्ट्र के 12 प्रमुख मराठा किले—शिवनेरी, राजगढ़, रायगढ़, प्रतापगढ़, पन्हाला, साल्हेर, लोहगढ़, खांदेरी, सुवर्णदुर्ग, विजयदुर्ग, सिंधुदुर्ग और तमिलनाडु का जिनजी—UNESCO की विश्व धरोहर सूची में शामिल किए गए हैं. यह महाराष्ट्र और समस्त मराठा समाज के लिए गर्व का क्षण है.
 
शिवाजी की रणनीति: प्रकृति को बनाया रक्षा कवच

इन किलों की खास बात यह है कि ये सभी न केवल भौगोलिक दृष्टि से रणनीतिक स्थानों पर स्थित हैं, बल्कि इन्हें इस तरह बनाया गया था कि पहाड़, समुद्र, जंगल और मैदान सब सेना की मददगार बन जाएं। समुद्र किनारे के किले, सह्याद्री की ढलानों पर जंगलों में बसे किले, और राजगढ़ जैसे पहाड़ी किले—ये सभी एक जुड़े हुए सैन्य नेटवर्क का हिस्सा थे. शिवाजी महाराज ने जहाँ भी कमजोर कड़ी देखी, वहां उन्होंने एक नया किला बनवाया—पावनगढ़ इसका सबसे सटीक उदाहरण है, जिसे पन्हाला के पास सैन्य मजबूती के लिए खड़ा किया गया था. 
 
वास्तुकला और जल प्रबंधन: मराठा किलों की विशिष्टता

इन किलों का निर्माण विज्ञान, वास्तु और प्रकृति के सामंजस्य का जीवंत उदाहरण है. हर किले के नीचे एक रक्षक परिधि होती है, उसके चारों ओर बस्तियां होती हैं जो रसद और मदद देती थीं. "मचियाँ" (निगरानी और हमला करने के लिए छज्जेनुमा संरचनाएं), "मेथ" (चौकियां) और "बालेकिल्ला" (मुख्य गढ़)—हर परत की एक अलग भूमिका है.
 
इन किलों का जल प्रबंधन प्रणाली भी अपने आप में अनूठा है. चाहे वह बारिश के पानी को संचित करना हो या स्थायी जलस्रोत विकसित करना—मराठा किलों ने आत्मनिर्भर जीवन प्रणाली विकसित की थी. आज भी इन किलों से एक-दूसरे को सिग्नल भेजने की क्षमता इतिहास का उदाहरण बन गई है.
 
यूनेस्को की मान्यता: पर्यटन और शोध की नई संभावनाएं

UNESCO की सूची में शामिल होने से अब इन किलों की ओर विश्वभर के इतिहासकारों और पर्यटकों का ध्यान बढ़ेगा। मराठा सैन्य नीति, सांस्कृतिक परंपराएं, लोक विरासत और सह्याद्री के मानव जीवन की लगभग दो हजार वर्षों की गाथा अब अगली पीढ़ियों को सहेजकर दी जा सकेगी। साथ ही, स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के नए अवसर भी खुलेंगे.
 
जिम्मेदारी का नया अध्याय

इस मान्यता के साथ ही एक बड़ी जिम्मेदारी भी सामने आई है—इन किलों की मर्यादा और सुरक्षा को बनाए रखना। सरकार को इनकी देखरेख और संरक्षण में विशेष ध्यान देना होगा ताकि ये किले सिर्फ इतिहास के पन्नों तक सीमित न रहें, बल्कि आने वाले युगों के लिए जीवित प्रेरणा बनें. हालांकि यूनेस्को की सलाहकार समिति ने दस्तावेज़ीकरण और प्रबंधन में कुछ खामियों की ओर इशारा किया है, जिन्हें भविष्य में सुधारना ज़रूरी है.
 
मराठा किलों की यह वैश्विक पहचान न केवल हमारे गौरवशाली अतीत को उजागर करती है, बल्कि आज के भारत को यह सिखाती है कि साहस, संगठन और स्वराज्य की भावना से किस तरह एक राष्ट्र को आत्मनिर्भर और सुरक्षित बनाया जा सकता है. आज जब हम इन किलों की ओर देखते हैं, तो वह सिर्फ पत्थरों की दीवारें नहीं, बल्कि इतिहास की गूंजती आवाज़ें हैं—जो हमें सतर्क भी करती हैं और प्रेरित भी.