एक कठिन बचपन और विमानन व होटल उद्योग में शुरुआती करियर के बाद, हुसैन मंसूरी को अपना असली मकसद मिला—मानवता की सेवा. आज, वह एक प्रमुख सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और ज़रूरतमंदों के लिए आशा की किरण हैं. यहां प्रस्तुत है फ़ज़ल पठान की हुसैन मंसूरी पर एक विस्तृत रिपोर्ट.
वह याद करते हैं "मुझे वो दिन याद हैं जब मैं गुज़ारा करने के लिए पुराने कपड़े पहनता था, "लेकिन मैंने अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया और आखिरकार जेट एयरवेज़ में नौकरी पा ली."
अपने परिवार का पेट पालने के लिए, हुसैन ने वेटर का काम भी किया और कई छोटे-मोटे काम भी किए. इस दौरान, उनमें करुणा की गहरी भावना और कम भाग्यशाली लोगों की मदद करने की इच्छा विकसित हुई.
वे कहते हैं "मैंने लोगों को धन के पीछे अंतहीन भागते देखा, फिर भी उन्हें सच्ची संतुष्टि नहीं मिली और बहुत कम लोग बदले में कुछ पाने की उम्मीद किए बिना अजनबियों की मदद करने को तैयार थे."
हुसैन इस सिद्धांत पर चलते हैं: "तू बस दुआ कमा, फिर तुझसे अमीर कोई नहीं." इसी दर्शन से प्रेरित होकर, उन्होंने ज़रूरतमंदों की मदद करना शुरू किया—तब भी जब उनके अपने साधन सीमित थे.
कोविड-19महामारी के दौरान, जब कई लोग भोजन या चिकित्सा सहायता के बिना रह गए थे, हुसैन आगे आए. उन्होंने बेघर, बीमार और भूखे लोगों को ज़रूरी चीज़ें बाँटीं.
वे कैंसर के मरीज़ों, खासकर टाटा मेमोरियल अस्पताल में, आर्थिक मदद देते रहते हैं, वंचित बच्चों की शिक्षा में मदद करते हैं, और बुज़ुर्गों को भोजन, कपड़े और देखभाल प्रदान करते हैं—चाहे उनकी जाति, धर्म या पृष्ठभूमि कुछ भी हो. इसी अटूट समर्पण ने उन्हें मानवता के राजदूत की उपाधि दिलाई है.
हालाँकि उनके कार्य छोटे पैमाने के हैं, लेकिन उनका प्रभाव गहरा है. उनके वीडियो न केवल ज़रूरतमंदों को तत्काल राहत प्रदान करते हैं, बल्कि लाखों लोगों को सहानुभूति और सामाजिक ज़िम्मेदारी की भावना विकसित करने के लिए भी प्रेरित करते हैं.
एक प्रभावशाली वीडियो में, हुसैन सड़क किनारे से हिंदू देवी-देवताओं की फेंकी हुई प्रतिमाएँ उठाते और उन्हें सम्मानपूर्वक जल में विसर्जित करते हुए दिखाई देते हैं.
सांप्रदायिक सम्मान का यह सरल कार्य विभिन्न धर्मों के दर्शकों के साथ गहराई से जुड़ा, व्यापक प्रशंसा अर्जित की और ऐसे समय में एकता का संदेश दिया जब इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी.
इंस्टाग्राम पर 12.3 मिलियन से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स के बढ़ते समुदाय के साथ, हुसैन की डिजिटल उपस्थिति सामाजिक बदलाव के लिए एक मंच का काम करती है.
वे कहते हैं, "जब मैंने शुरुआत की थी, तो मैं कुछ तस्वीरें और निजी कहानियाँ साझा करता था. लोग उनसे जुड़ने लगे.
समय के साथ, वह छोटी सी शुरुआत एक खूबसूरत चीज़ में बदल गई है—एक दूसरे परिवार की तरह."
अप्रैल में, पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकवादी हमले के बाद, हुसैन ने सार्वजनिक रूप से हिंसा की निंदा की थी.
उन्होंने एक वीडियो संदेश में कहा, "पहलगाम पर हमला करने वाले आतंकवादी इंसान नहीं, बल्कि जानवर हैं.
वे किसी धर्म को नहीं मानते. इस्लाम प्रेम और करुणा सिखाता है, हिंसा नहीं." उन्होंने आगे कहा, "मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह करता हूँ कि वे इन हमलावरों को न्याय के कटघरे में लाएँ."
शांति और राष्ट्रीय एकता के लिए आवाज़ उठाने से न डरने के कारण उन्हें ऐसे बयानों के लिए सम्मान मिला है. कैंसर के इलाज के लिए मुंबई आने वाले कई लोगों को भारी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है. हुसैन ने उनकी मदद करना अपना मिशन बना लिया है.
भविष्य की ओर देखते हुए, वे कहते हैं, "ऐन फ्रैंक ने एक बार कहा था, 'दान देने से कोई कभी गरीब नहीं होता. मैं इस बात में विश्वास करता हूँ. मैं जितना हो सके उतने लोगों की मदद करने के लिए थोड़ी-थोड़ी रकम जुटा रहा हूँ."
वह बड़े पैमाने पर काम करने के लिए अपना खुद का धर्मार्थ संगठन शुरू करने का सपना देखते हैं—खासकर कैंसर रोगियों की सहायता करने और वंचित बच्चों की शिक्षा के लिए धन जुटाने के लिए.
... कठिनाई से आशा की ओर उनका सफ़र इस बात का एक प्रेरक उदाहरण है कि कैसे दयालुता के सरल और सच्चे कार्य दुनिया को और भी करुणामय बना सकते हैं. हुसैन कहते हैं, "मुझे अपने लिए किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है. अगर मेरे काम से एक भी व्यक्ति दूसरों की मदद करने के लिए प्रेरित होता है, तो मेरे लिए यही काफ़ी है."