फ़ाज़िल मोहम्मद ख़ान : जनसेवा जिनका जज़्बा

Story by  फिरदौस खान | Published by  [email protected] | Date 18-02-2024
Fazil Mohammad Khan: Passion for public service
Fazil Mohammad Khan: Passion for public service

 

-फ़िरदौस ख़ान

कुछ लोगों को दौलत कमाने का जूनून होता है, तो कुछ लोगों को शौहरत हासिल करने का. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनमें जनसेवा का जज़्बा कूट-कूटकर भरा हुआ होता है. तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के वकील फ़ाज़िल मोहम्मद ख़ान को दूसरों की मदद करके सुकून मिलता है. वे कहते हैं- “लोगों की मदद करना मेरी ज़िन्दगी का मक़सद है. मैं सामाजिक न्याय के लिए काम कर रहा हूं. मैं लोगों की समस्याओं का समाधान करके समाज में सकारात्मक बदलाव लाना चाहता हूं.“

फ़ाज़िल मोहम्मद ख़ान को समाज सेवा की प्रेरणा अपने वालिद फ़तेह तुराब ख़ान से मिली. वे कहते हैं- “मैं जाति, पंथ, क्षेत्र आदि की परवाह किए बिना हमेशा जनकल्याण के लिए खड़ा हूं. यह जज़्बा मुझे अपने वालिद से विरासत में मिला है.

मेरे वालिद सामाजिक कार्यकर्ता और ट्रेड यूनियन नेता (दक्षिण मध्य रेलवे) थे. वे समाज में एक बड़ा बदलाव लाए थे. उन्होंने हैदराबाद के सूबेदार अमीर अली ख़ान रोड स्थित चंचलगुडा के कई बेघर परिवारों को बसाने में मदद की.

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इसका मुझ पर गहरा असर पड़ा. मैं उनके जनसेवा के कामों को जारी रखना चाहता था. इसलिए मैंने जनसेवा को चुना. नौ भाई-बहनों में सबसे छोटा होने के कारण मैंने ज़िन्दगी को बहुत क़रीब से देखा और उससे सीखा है.“

वे विभिन्न संगठनों से जुड़कर जनसेवा कर रहे हैं. ज़ाई यूनाइटेड ट्रस्ट ग़ैर लाभकारी आधार पर मेडिकल क्लिनिक, एक पैथोलॉजी प्रयोगशाला, एक नेत्र क्लिनिक और एक दंत चिकित्सा क्लिनिक चला रहा है. यह ग़रीब छात्रों को चिकित्सा सेवाएं मुहैया करवाता है.

मरकज़ी अंजुमने-महदाविया तक़रीबन एक सदी पुरानी सामाजिक संस्था है. यह मामूली शुल्क पर एक हाई स्कूल, एक जूनियर कॉलेज और एक समारोह हॉल संचालित करती है. समारोह हॉल से होने वाली आमदनी और ज़कात से विधवाओं और ग़रीब छात्रों की आर्थिक सहायता की जाती है.

चंचलगुडा युवा संघ एक सामाजिक व सांस्कृतिक युवा संगठन है, जो तक़रीबन एक दशक से जनहित में काम कर रहा है.फ़ाज़िल मोहम्मद ख़ान ने साल 2015में SIPAHE नाम से एक स्वयंसेवी संस्था की स्थापना की, जिसका नाम सोसायटी फ़ॉर इंटीग्रेटेड प्रोग्रेस एंड ह्यूमन एम्पावरमेंट है.

वे इसके संस्थापक और महासचिव हैं. यह संस्था जाति, पंथ, भाषा, धर्म और रंग की परवाह किए बिना मानव प्रगति और सशक्तिकरण के लिए काम करती है. संस्था द्वारा किए जा रहे कामों की फ़ेहरिस्त बहुत लम्बी है.

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यहां कुछ कामों का ज़िक्र करना ज़रूरी है, जैसे उनकी संस्था ज़रूरतमंद लोगों को क़ानूनी सहायता मुहैया करवाती है. संस्था विदेश मंत्रालय और संबंधित स्थानीय अधिकारियों के साथ समन्वय करके विदेशों में फंसे भारतीयों ख़ासकर खाड़ी देशों में काम करने वाले लोगों को क़ानूनी और वित्तीय सहायता प्रदान करती है.

संस्था ने अब तक 20से ज़्यादा परिवारों के विदेशों में फंसे हुए सदस्यों को वापस लाने में मदद की है. इसके साथ ही संस्था ने देश के विभिन्न इलाक़ों के 15परिवारों की अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और खाड़ी देशों से उनके प्रियजनों के शव लाने में मदद की है.

इसके अलावा यह संस्था स्वास्थ्य, शिक्षा व समाज के अन्य क्षेत्रों में भी सराहनीय काम कर रही है. संस्था पारिवारिक विवादों ख़ासकर पति-पत्नी के झगड़ों का निपटान करती है. उन्हें परामर्श देकर उनके परिवार को टूटने से बचाती है.

संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ के वार्षिक कैलेंडर का पालन करते हुए उसके निर्धारित समारोहों को मनाती है और उनके लिए काम करती है. इसके साथ ही लोगों को केंद्र व राज्य सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी देने के लिए जागरूकता शिविरों आदि का आयोजन किया जाता है.

इसके साथ ही बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है. संस्था ने पुलिस की मदद से कई बाल विवाह रुकवाए हैं.संस्था के स्वयंसेवक मलकपेट और दबीरपुरा रेलवे स्टेशनों के बीच रेलवे पटरियों पर निगरानी रखकर ज़िन्दगी बचाने की कोशिश करते हैं.

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रेल हादसे में घायल हुए व्यक्ति के लिए एम्बुलेंस बुलाते हैं और पुलिस को सूचना देते हैं. संस्था उर्दू को बढ़ावा देने के लिए भी प्रयासरत है. उनका कहना है कि उर्दू को बढ़ावा देने वाले व्यक्तियों को सम्मानित किया जाना चाहिए.

वे कहते हैं- “हमने कालेश्वरम परियोजना पैकेज संख्या 21 के कार्यान्वयन के ख़िलाफ़ धरने और विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया है. यह विरोध निज़ामाबाद ज़िले के मनचिप्पा, अमराबाद और बैरापुर के तीन प्रमुख गांवों के निवासियों को बचाने के लिए था. यह पैकेज यहां के लोगों को बुरी तरह प्रभावित करेगा. इसलिए हमने तेलंगाना उच्च न्यायालय से संपर्क किया और उसने इस पर स्थगन आदेश सुरक्षित कर लिया.“

वे कहते हैं कि तक़रीबन 90 फ़ीसद स्वयंसेवी संस्थाएं लोगों की आर्थिक और सामान देकर मदद करती हैं, लेकिन सिर्फ़ 10 फ़ीसद संस्थाएं ही ऐसी हैं, जो उनके साथ खड़े होकर उनके हक़ के लिए संघर्ष करती हैं. उनकी संस्था इन्हीं दस में शामिल है. उनकी संस्था ने अनेक मामलों में धरने और प्रदर्शन करके लोगों को इंसाफ़ दिलवाया है. (लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)