मिट्टी की सोंधी महक से भरी दिल्ली की मशहूर तंदूरी कुल्लड़ चाय

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  onikamaheshwari | Date 05-10-2023
Delhi's famous Tandoori Kullad tea filled with earthy aroma
Delhi's famous Tandoori Kullad tea filled with earthy aroma

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

हम में से ज्यादातर लोगों की सुबह की शुरुआत चाय की चुस्की के साथ होती है. चाय एक ऐसी चीज है, जो काम से थके हुए इंसान के अंदर नई ऊर्जा का संचार करती है. तो कुछ लोग बगैर चाय पीए ऑफिस के लिए घर से बाहर नहीं निकलते. गांव से लेकर शहर तक लोग कांच के ग्लास, स्टील ग्लास या फिर पलास्टिक के ग्लास और थर्माकोल ग्लास में चाय की चुस्की लेते हैं और अगर ये चाय कुल्हड़ वाली हो तो मन ललचा ही जाता है. कुल्लड़ में गर्मागर्म चाय डालते ही मिट्टी की सौंधी खूशबू उठती है. यह खुशबू हमें एक खुशनुमा एहसास से भर देती है जिसे हम तंदूरी चाय या तंदूरी कुल्लड़ चाय भी कहते हैं.
 

जब कांच, प्लास्टिक के कप नहीं होते थे तो लोग मिट्टी के कप में चाय पीते थे जिसका आनंद अलग होता था, लेकिन बदलते समय के साथ मिट्टी की खुशबू खत्म होती जा रही हैं इसके बावजूद लोगों के बीच मिट्टी से बने कप में चाय पीना पसंद किया जा रहा है. 
 
दिल्ली शहर अपने अतीत से ही खाने पीने के व्यंजनों के लिए मशहूर है इसके साथ ही ब्लैक टी, मसाला टी, रोज़ टी अपनी अलग पहचान रखती हैं. अब दिल्ली के लोगों में कुल्हड़ चाय के साथ तंदूरी चाय पसंदीदा बन चुकी है जिसके लिए लोग दूर-दूर से पहुंच रहे हैं.
 
ओखला स्थित बाटला हाउस के अल नूर मस्जिद (हरी मस्जिद) के ठीक बाईं तरफ तुर्किश तंदूरी चाय लोगों का पसंदीदा सेंटर बन चुका हैं. जहां सुबह ग्यारह बजे से देर रात तक लोग चाय पीने पहुंचते हैं. वहीं दूसरी तरफ तिकोना पार्क स्थित ज़ेहरा रेस्टोरेंट पर लोग चाय का आनंद लेते हैं.
 
 
सोंधी खुशबू वाली तंदूरी चाय 
दरअसल, दिल्ली में कुल्हड़ की चाय मशहूर है लेकिन बीते कुछ सालों से तंदूरी चाय ने लोगों के बीच अपनी पहचान बनाई है, जिसकी सुगंध खुशबू के लोग क़ाइल हो गए हैं. यहीं कारण हैं कि इलाके के छात्र और आम लोग सुबह, शाम और देर रात को तंदूरी चाय लेना पसंद करते हैं.
 
हरी मस्जिद के नजदीक स्थित तुर्किश तंदूरी चाय के मालिक आफताब आलम बताते हैं कि बीते कुछ सालों से तंदूरी चाय की तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है. उसकी बुनियादी कारण ये हैं कि चाय पीते वक्त आपको सुगंध की खुशबू का एहसास होगा.
 
 
मिट्टी की सौंधी महक से भरी चाय
आम चाय और तंदूरी चाय में ज्यादा फर्क नहीं हैं. इसके बारे में आफताब आलम ने बताया कि आमतौर पर चाय के अंदर लोग आधा पानी डालते हैं और उसे कम समय तक आग पर रखने के बाद पीते हैं लेकिन तंदूरी याच में ऐसा बिलकुल नहीं होता है. दूध में थोड़ा भी पानी नहीं मिलाया जाता है और इसे आग पर एक घंटे तक रखा जाता है, इसमें कुछ खास मसाले होते हैं जिसका इस्तेमाल किया जाता है. जैसे गुलाब का फूल आदी.
 
आफताब के बकौल, चाय तैयार होने के बाद उसे एक बर्तन में रखा जाता है, उसके साथ ही दूसरी तरफ एक तंदूर को तैयार किया जाता है जिसमें आग तैयार की जाती हैं और उसके अंदर मिट्टी के बड़े कपों को रखा जाता है जब वह गर्म हो कर पूरी तरह लाल हो जाता है तो उसे निकाल कर उसमें चाय को डूबते हैं, जिससे चाय के अंदर मिट्टी की खुशबू आती है, उसके बाद उस कप को कुल्हड़ में डालने के बाद नए कप में उस चाय को डाला जाता है जिसके बाद उसे तंदूरी चाय बोलते हैं.
 
 
तंदूर में तैयार होने वाली इस चाय के शौकीन लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं. आफताब बताते हैं कि लोग खाना खाने के बाद भी शौकिया तौर पर चाय लेने के लिए पहुंचते हैं.
 
यह तंदूरी चाय बनती कैसे है?
 
पहले चाय को सामान्य तरीके से बनाया जाता है, यानी केतली में कुचली हुई अदरक, चीनी-पत्ती और दूध को अच्छी तरह से उबालकर उसके कड़क कर लिया जाता है. अब इस चाय में ‘तंदूर का प्रवेश’ होता है. असल में एक तंदूर में कुल्हड़ डालकर उन्हें धधकाया जाता है. जब ये कुल्हड़ आग से लाल होने की सीमा तक पहुंच जाते हैं तो संडासी (Pincers) से एक कुल्हड़ को निकाला जाता है.
 
इस कुल्हड़ में जब चाय डाली जाती है तो वह और उबलने लगती है. इस तंदूरी कुल्हड़ के नीचे धूपिया (धातु का बड़ा दीया जैसा बर्तन) रखा जाता है.
 
 
कैसे पहुंचे यहां?
 
अगर आप भी इस सुंगंधित चाय का आनंद लेना चाहते हैं तो आसानी से यहां पहुंच सकते हैं. जामिया मेट्रो के पास से ई-रिक्शा के जरिए हरि मस्जिद पहुंच सकते हैं या जामिया मिल्लिया इस्लामिया मेट्रो के तीन नंबर गेट से उतरने के बाद तिकोना पार्क भी पहुंच कर ज़ेहरा रेस्टोरेंट में चाय पी सकते हैं. इसकी कीमत आम चाय से थोड़ी ज्यादा होती है.