चौधरी खुर्शीद अहमदः जिसने मेवात में जलाये शिक्षा और विकास के दीप

Story by  यूनुस अल्वी | Published by  [email protected] | Date 17-02-2022
चौधरी खुर्शीद अहमदः
चौधरी खुर्शीद अहमदः

 

आज दूसरी पुण्यतिथि है
 
यूनुस अल्वी / नूंह ( हरियाणा )
 
देश की राजधानी दिल्ली और साइबर सिट गुरुग्राम से कुछ किलोमीटर पर बसा मेवात क्षेत्र कभी तालीम और विकास के लिए तरसा करता था, पर इसी बीच चौधरी खुर्शीद अहमद प्रकाश पुंज बनकर उभरे. कई बार सांसद, विधायक और मंत्री रहे चौधरी खुर्शीद ने तालीम और विकास क्षेत्र में जो बुनियाद रखी थी आज वे पौध, पेड़ बनकर लहलहा रहे हैं.

मेवात के दिग्गज नेता एवं विकास पुरुष के नाम से चर्चित मरहूम चौधरी खुर्शीद अहमद की बृहस्पतिवार को पुण्यतिथि है. मेवात और प्रदेश में कराए गए विकास कार्यों को हमेशा याद रखा जाएगा.
 
वह नूंह व तावडू से पांच बार विधायक, वित्त, चिकित्सा, शिक्षा सहित अन्य विभागों के कैबिनेट मंत्री व फरीदाबाद लोकसभा से सांसद रहे. 
 
मरहूम चौधरी खुर्शीद अहमद की मेवात में मौजूद अधिकांश परियोजनाएं उन्हीं की देन हैं. 17 फरवरी 2020 को उनका 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था. आज मेवात उन्हें खिराजे अकीदत पेश कर रहा है. 
 
 मरहूम चौधरी खुर्शीद अहमद की राजनीतिक विरासत को उनके बड़े बेटे चौधरी आफताब अहमद आगे बढ़ा रहे हैं, जो वर्तमान में नूंह से विधायक और हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस के उप नेता हैं.
 
विधायक बनकर पहली बार में कैबिनेट मंत्री बनने का रिकॉर्ड मेवात के सिर्फ चौधरी खुर्शीद अहमद, चौधरी तैयब हुसैन, कुंवर सूरजपाल और चौधरी आफताब अहमद के नाम दर्ज है.
 
खुर्शीद अहमद के दो बेटे हैं महताब अहमद और अंजुम अहमद. ये भी पिता की विरासत को आगे बढ़ाने में लगे हैं. बेटी रुखसाना अहमद की भी मेवात के विकास में खासी दिलचस्पी है. 
 
चौधरी खुर्शीद अहमद की मेवात को देन

उन्होंने ही मेवात विकास बोर्ड का गठन कराया. नगीना में निजी कॉलेज खोला.बाद में सरकार को सौंप दिया. फिरोजपुर नमक में प्रदेश की पहली जेबीटी, बतौर शिक्षा मंत्री की स्थापना कराई. जे बी टी संस्थान में उर्दू विषय के लिए अलग से सीटें निर्धारित कराईं.
 
फिरोजपुर नमक हरियाणा का पहला मॉडल गांव, उटावड़ बहु तकनीकी संस्थान, रोजका मेव इंडस्ट्रियल एरिया, हथीन इंडस्ट्रियल एरिया, मेवात में हर ब्लॉक में पीएचसी और सीएचसी केंद्र उनकी ही देन है.
 
प्रदेश भर में भी पीएचसी सीएचसी बनवाए. अल आफिया अस्पताल मांडीखेड़ा, सिंचाई पंप हाउस, कोटला पंप हाउस आंकेडा, कामेंडा बांध,मेवात में सिंचाई के लिए ड्रेन, उजीना डाइवर्जन ड्रेन, मेवात कैनाल परियोजना, भूमि संरक्षण के लिए तावडू व अन्य जगहों पर बांध निर्माण, हरद्वारी लाल कॉलेज तावडू भी उन्हीं के खाते में जाता है.
 
डीएलएफ गुड़गांव के चेयरमैन केपी सिंह मानते हैं कि चौधरी खुर्शीद अहमद ने विकास परियोजनाओं को पूरा सहयोग दिया. आज दिख रहे विकास में उनकी भूमिका सराहनीय रही है.
 
गुड़गाव व हरियाणा के शहरीकरण और उपनिवेशीकरण में खुर्शीद अहमद का बड़ा योगदान रहा है. गुड़गांव भारत का सबसे विकसित शहर भी बन गया है. गुड़गांव को अब गुरूग्राम से जाना जाता है.
 
मुख्यमंत्री पद  ठुकराया

साल 1979 में एक वक्त ऐसा भी आया जब चौधरी खुर्शीद अहमद के पास प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का मौका और ऑफर आया, लेकिन उन्होंने शालीनता से उसे ठुकरा दिया.
 
दरअसल 1979 में चैधरी देवीलाल सरकार हरियाणा में गिर गई थी और चैधरी भजनलाल मुख्यमंत्री बने थे. उसी दरम्यान चौधरी खुर्शीद अहमद को मुख्यमंत्री पद ऑफर हुआ, लेकिन उन्होंने नकार दिया.
 
तेज तर्रार वक्ता व अधिवक्ता 

चौधरी खुर्शीद अहमद पढ़ाई में अव्वल रहने के साथ साथ एक तेज तर्रार वक्ता भी थे. अपने छात्र जीवन में वो दिल्ली विश्वविद्यालय में जुबली हाल के प्रधान चुने गए.
 
फिर हरियाणा प्रदेश की राजनीति में एक स्तंभ की तरह उभरे. सरकारें बनाने में उनका अहम रोल रहा. महज 28 साल की उम्र में संयुक्त पंजाब असेंबली के लिए चुने जाने पर उन्होंने अपनी वाक्पटुता और सौम्य वक्तव्य शैली से तत्कालीन मुख्य मंत्री प्रताप सिंह कैरू पर गहरा प्रभाव छोड़ा.
 
पार्टी में प्रदेश में जिला प्रधान से लेकर प्रदेश उपाध्यक्ष रहे और संगठन में बड़ी जिम्मेदारी भी निभाई. सरकार में उनके पास स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्त, सहकारिता, शहरी निकाय सहित कई मंत्रालय रहे. उनके कार्य सराहनीय माना जाता है. 
 
गांधीवादी विचारधारा के हामी

चौधरी खुर्शीद अहमद गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित थे. हमेशा गरीबों को प्राथमिकता दी. उनके काम करने में दिलचस्पी दिखाई. धर्म से मुस्लिम होने के बावजूद सभी धर्मों का आदर करते थे. पूरे राजनीतिक जीवन में सभी धर्मों के लोगों को साथ लेकर चले. हिन्दू मुस्लिम भाईचारे के बड़े पैरोकार थे.
 
मुश्किल वक्त भी आया

चौधरी खुर्शीद अहमद की गिनती उस वक्त के संयुक्त पंजाब व हरियाणा के पढ़े लिखे प्रभावशाली नेताओं में प्रमुख रूप से होती थी. राजनीति में उनके स्थानीय विरोधी नेता हमेशा उनके काम में टांग अटकाते रहे.
 
एक बार उन पर टाडा जैसे कानून भी थोपे गए, हालांकि कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत टाडा कानून से बरी कर दिया. स्थानीय लोग मानते हैं कि उस वक्त अगर विरोधी नेता चौधरी खुर्शीद अहमद की टांग खींचने के बजाय इलाके के विकास को प्राथमिकता देते तो बहुत कुछ बदल चुका होता.