बिहारः चर्चित सहाफी अशरफ अस्थानवी नहीं रहे, अंतिम दिनों में विधानमंडल  की कार्य प्रणाली पर लिख रहे थे पुस्तक

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 16-11-2022
बिहारः चर्चित सहाफी अशरफ अस्थानवी नहीं रहे, अंतिम दिनों जयकृष्ण के सहयोग से छात्रों के लिए विधानमंडल  पर लिख रहे थे पुस्तक
बिहारः चर्चित सहाफी अशरफ अस्थानवी नहीं रहे, अंतिम दिनों जयकृष्ण के सहयोग से छात्रों के लिए विधानमंडल  पर लिख रहे थे पुस्तक

 

सेराज अनवर / पटना

बिहार के मशहूर पत्रकार सहाफी अशरफ अस्थानवी का मंगलवार की रात्रि निधन हो गया.उनके इंतकाल से सहाफी,सियासी हलका सदमे में है. जनाजे की पहली नमाज पटना में फकीर बाड़ा मस्जिद के पास बुधवार की  सुबह अदा की गई और दूसरी नमाज - ए जनाजा  उनके पैतृक गांव अस्थावां बिहार शरीफ नालंदा में बाद नमाज जोहर अदा की जाएगी. वहीं कब्रिस्तान में आखिरी रस्म अदा की जाएगी.

अशरफ अस्थानवी ने नब्बे के दशक में उर्दू पत्रकारिता को एक नई पहचान दी.उर्दू के यह पहले सहाफी थे जिनकी पहुंच राजभवन तक थी.बिहार के दिवंगत राज्यपाल ए आर किदवई के चहेते पत्रकारों में शुमार थे.
ashraf
अपने तैंतीस वर्ष की पत्रकारिता में इन्होंने जनसरोकार,कौम व मिल्लत और मुद्दा आधारित पत्रकारिता की. यूं तो बुनियादी तौर पर उर्दू के सहाफी थे, पर हिन्दी पत्रकारिता में भी खूब कलम चलाए.अशरफ अस्थानवी कई किताबों के लेखक रहे हैं.
 
फारबिसगंज का सच लिख कर खलबली मचा दी थी.उनकी सबसे चर्चित पुस्तक में से एक है.बेहतरीन इंसान और बेबाक वक्ता भी थे.उर्दू की लड़ाई के लिए उर्दू नफाज कमेटी का गठन किया था.
 
वे लंबे समय से बीमार थे.उनकी आवाज बैठ गई थी.ऐसे में वे अपनी बात कागज पर लिखकर बताते थे.जबकि उनकी आवाज और बेबाक लेखनी और टिप्पणी उनकी खास पहचान थी.वो खुलकर बोलते थे.
 
लोग उनकी बेबाकी की वजह से पसंद करते थे. अध्यात्म के क्षेत्र में पुस्तक लेखन के लिए उन्हें मख््दूम यहिय्या मनेरी अवार्ड से सम्मानित किया गया था.रहने वाले बिहार शरीफ के आस्थावां के थे, लेकिन पत्रकारिता के लिए पटना के फकीरबाड़ा सब्जीबाग में बस गए थे.
 
athanvi
 
सबसे चर्चित पुस्तक 

अशरफ अस्थानवी जितने सुलझे पत्रकार थे,उतने ही गम्भीर लेखक भी थे.उन्होंने कई किताबें लिखी.जिसमें ‘टूटी स्लेट से आधी पेंसिल से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक’, ‘सदा-ए-जरस’आदि प्रमुख है.मगर सबसे चर्चित किताब रही ‘फारबिसगंज का सच’.यह किताब बिहार की एक घटना पर आधारित है.
 
अररिया जिले के फारबिसगंज में एक विवाद में पुलिस फायरिंग में चार मुसलमान मारे गए थे.हद तब हो गई जब एक शव को खाकी वर्दीधारी पुलिस वाले ने बूटों से रौंद डाला था.उस वाकया को बड़ी सच्चाई से अशरफ अस्थानवी ने अपनी पुस्तक में उल्लेख्य किया था.
 
बिहार की सियासी गलियारों में इस पुस्तक के आने पर खलबली मच गई थी ‘टूटी स्लेट से आधी पेंसिल से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक’, में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की कहानी है.
 
कैसे एक दलित का बेटा टूटी स्लेट और आधी पेंसिल से पढ़ कर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा.ये पुस्तक हाशिए पर खड़े एक ऐसे व्यक्ति की आत्माकथा है जिनका जीवन बहुत ही कष्ट में गुजरा.
 
यह पुस्तक शून्य से शिखर तक पहुंचने वाले उस व्यक्ति की सफलता की कहानी है जिस की जिन्दगी आंसू, घुटन, अपमान, अत्यचार, अभाव से शुरू होती है, बढ़ती है और खत्म हो जाती है. 
 
लेकिन’एक टूटी स्लेट आधी पेंसिल’ इंसान की जिन्दगी को बदल देती है. 800 पृष्ठों पर आधारित सदा-ए-जरस और बिहार के अनमोल रत्न पुस्तक अशरफ अस्थानवी के लेखों का संग्रह है.
 
अपनी मौत से एक दिन पूर्व तक वह सोशल मीडिया पर सक्रिय थे.अशरफ अस्थानवी बिहार के सबसे सक्रीय सहाफी थे. उनकी कुछ किताबों में संपादकीय सहयोग करने  वाले उर्दू के पत्रकार जयकृष्ण कहते हैं कि एक बात का जिक्र करना जरूरी समझता हूं .
 
वे बीमार थे, तब भी कुछ लिखने की उनकी इच्छा बनी रही.उन्होंने मुझसे कहा कि बिहार विधानमंडल की कार्य संचालन पर मैं एक किताब लिखना चाहता हूं ताकि विद्यार्थियों के लिए वह उपयोगी हो.मैंने इस कार्य में यथासम्भव उनका साथ भी दिया.बीमार होने के बावजूद इस कार्य के प्रति उनका समर्पण और सक्रियता देखकर मैं हैरान रह गया.
 
asthanvi
 
उर्दू पत्रकारिता का मजबूत स्तम्भ टूट गया

अशरफ अस्थानवी के अचानक इंतकाल पर पत्रकारिता जगत से लेकर सियासी गलियारे में शोक की लहर है.प्यारी उर्दू के संपादक और पूर्व विधायक डॉ.इजहार अहमद ने अपने शोक संदेश में कहा है कि उर्दू पत्रकारिता का एक मजबूत स्तम्भ टूट गया.
 
मेहनती, लगनशील और एक अच्छा सहाफी अब हमारे बीच नहीं हैं. जनता दल राष्ट्रवादी के राष्ट्रीय संयोजक अशफाक रहमान ने कहना है कि वह उर्दू दोस्त थे और अंतिम तक उर्दू की लड़ाई लड़ते रहे.पत्रकारिता उनका ओढ़ना-बिछौना था.
 
सहाफत को उन्होंने आत्मसात कर लिया था.अब जुनूनी और अच्छे सहाफी से पत्रकारिता खाली होती जा रही है. युवा पत्रकार महफूज आलम ने कहा कि अशरफ अस्थानवी साहब न सिर्फ बेबाक सहाफी थे, उर्दू की तरक्की के सिलसिले में भी लगातार कोशिश करते रहे.
 
हर मंच पर उन्होंने बेला-खौफ उर्दू के मसले को उठाया.ऐसे लोगों का जाना उर्दू दुनिया और उर्दू सहाफत के लिए एक बड़ा खसारा है. तेजतर्रार युवा पत्रकार आरिफ इकबाल ने कहा है कि बिहार की पत्रकारिता जगत में मरहूम अशरफ अस्थानवी साहब हमेशा अपनी बेबाकी,उत्तम विश्लेषण और बेहतरीन आलोचक की वजह से जाने जाते थे.
 
जाने जाएंगे.आप का जाना उर्दू पत्रकारिता की सबसे बड़ी क्षति है.नवादा के जाने-माने समाजसेवी मसीह उद्दीन ने असरफ अस्थानवी के निधन को पत्रकारिता जगत की अपूर्णीय क्षति बताया है.उन्होंने कहा कि वे अनुसंधान परक और निर्भीक पत्रकारिता के मजबूत स्तम्भ और कई पुस्तकों के लेखक थे.
 
बिहार की अनेक घटनाओं पर उन्होंने बहुत बेबाकी से चर्चित रिपोर्टिंग की थी.बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों की कार्यवाही से संबंधित उनकी रिपोर्टिंग बहुत उम्दा होती थी और उर्दू अखबारों को जीनत बख्शती थी.
 
asthanvi
 
तेजस्वी यादव का शोक संदेश

उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने कहा कि अशरफ अस्थानवी ने उर्दू पत्रकारिता को नया आयाम दिया तथा उर्दू पत्रकारिता के विकास में उनके योगदान को सदा याद किया जाएगा.उनकी लेखनी बेबाक निर्भीक होती थी.वे जानदार ,शानदार पत्रकारिता करते थे.
 
स्थानीय उर्दू समाचार पत्रों के साथ वे कई राष्ट्रीय स्तर के उर्दू समाचार पत्रों से जीवन के अंतिम दिनों तक जुड़े रहे.समाज के विभिन क्षेत्रों में उनकी गहरी पैठ थी.उनके निधन से उर्दू पत्रकारिता को गहरी क्षति हुई है.
 
खुदा ए ताला उन्हें जन्नत ए फिरदौस अता करे.परिजनों एवं शुभचिंतकों को सबरे -जमील अता करे.राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने भी अशरफ अस्थानवी के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है.