श्रीलाल शुक्ल के 100 साल: आज भी जिंदा है ‘राग दरबारी’ का समाज

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 30-12-2025
100 years of Shrilal Shukla: The Raag Darbari community is still alive today
100 years of Shrilal Shukla: The Raag Darbari community is still alive today

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली

 
 हिंदी लेखक श्रीलाल शुक्ल के सदाबहार क्लासिक ‘राग दरबारी’ को शुरू में हिंदी साहित्य जगत के कुछ हिस्सों में उपहास का सामना करना पड़ा था क्योंकि नेमीचंद जैन जैसे प्रमुख लेखकों और आलोचकों ने इसे ‘असंतोष का शोर’ बताया था और श्रीपत राय ने इसे ‘महान बोरियत का महान उपन्यास’ कहा था।
 
लेकिन इन तमाम आलोचनाओं के बावजूद शुक्ल ने अगले साल 1969 में साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता और यह तीखा व्यंग्य समय की कसौटी पर खरा उतरा है और हिंदी साहित्य के सबसे ज्यादा पढ़े गए तथा अनुवादित उपन्यासों में से एक है।
 
शुक्ल की 100वीं जयंती बुधवार को है और 1968 में लिखी गई यह किताब उनके नाम का पर्याय बन गयी है जिसे अब हिंदी व्यंग्य लेखन में एक मील का पत्थर माना जाता है।
 
श्रीलाल शुक्ल का 2011 में निधन हुआ और अपने लेखकीय जीवन में उन्होंने 25 से अधिक किताबें लिखीं, जिनमें ‘मकान’, ‘सूनी घाटी का सूरज’, ‘पहला पड़ाव’ और ‘बिश्रामपुर का संत’ शामिल हैं।
 
2005 में ‘श्रीलाल शुक्ल: जीवन ही जीवन’ शीर्षक से निबंधों के एक संग्रह में, उत्तर प्रदेश के मोहनलालगंज में जन्मे आईएएस अधिकारी शुक्ल ने याद किया कि किस तरह उपन्यास ने उन्हें लगभग छह साल तक ‘बीमार रखा’, जिससे वह एक बहिष्कृत व्यक्ति बन गए।
 
उन्होंने लिखा था, ‘‘उन गंवार किरदारों के साथ दिन-रात रहते-रहते मेरी ज़बान घिस गई। इज़्ज़तदार औरतें कभी-कभी खाने की मेज़ पर मेरी तरफ़ भौंहें चढ़ाकर देखती थीं, और मैंने अपने परिवार से तथा मेरे परिवार ने मुझसे दूर रहना शुरू कर दिया। मेरी समस्या यह थी कि किताब लिखने के लिए कोई जगह सही नहीं लग रही थी।’’