Bowing at the feet of Mother India does not make one anti-Tamil: Vice President Radhakrishnan
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
उपराष्ट्रपति सी पी राधाकृष्णन ने मंगलवार को कहा कि अगर कोई भारत माता के चरणों में झुककर प्रणाम करता है, तो इससे वह 'तमिल विरोधी' नहीं बन जाता।
वह यहां काशी तमिल संगमम 4.0 के समापन समारोह में बोल रहे थे, जिसमें उन्होंने काशी और तमिलनाडु के बीच अटूट सांस्कृतिक बंधन पर जोर देते हुए "एक भारत श्रेष्ठ भारत" की भावना के तहत राष्ट्रीय एकता का आह्वान किया।
राधाकृष्णन ने कहा, ‘‘हम प्रतिदिन इस पवित्र भारत माता के चरणों में झुककर प्रणाम करते हैं और कहते हैं, ‘यह राष्ट्र समृद्ध बने।’ क्या इससे हम तमिल विरोधी बन जाते हैं? नहीं। यदि राष्ट्र एक आंख है और दूसरी आंख हमारी मातृभाषा तमिल है, तो इन्हें कौन अलग कर सकता है?’’
उन्होंने कहा कि पांडिया नाडु के तमिल योद्धा मुगलों द्वारा किए गए विनाश के खिलाफ काशी मंदिर के जीर्णोद्धार में सहायता कर रहे थे।
उपराष्ट्रपति ने यह बताने के लिए हाल का एक उदाहरण भी साझा किया कि प्रधानमंत्री तमिलों के साथ किस तरह खड़े हैं। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार के सहयोग से नट्टुकोट्टई चेट्टियारों ने काशी स्थित अपने विश्रामगृह की 300 करोड़ रुपये की अतिक्रमित भूमि को मात्र 48 घंटे में वापस हासिल कर लिया।”
राधाकृष्णन ने कहा "हमारे नट्टुकोट्टई चेट्टियार समुदाय के लोगों ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की, जिन्होंने उन्हें मुख्यमंत्री से मिलने के लिए कहा। मुख्यमंत्री ने सारी जानकारी ली। जब उन्होंने सभी दस्तावेज दिखाए, तो अधिकारियों ने पूरी तरह से मान लिया कि यह जमीन उन्हीं की है। महज 48 घंटों में जमीन वापस ले ली गई... आज यह एक भव्य बहुमंजिला विश्राम गृह के रूप में खड़ी है।"
शिक्षा मंत्रालय द्वारा दो से 15 दिसंबर तक वाराणसी में आयोजित काशी तमिल संगमम (केटीएस 4.0) के चौथे संस्करण का प्रतीकात्मक समापन रामेश्वरम में हुआ, जिसका मुख्य विषय "तमिल करकलम" (आइए तमिल सीखें) था। इसका उद्देश्य उत्तर और दक्षिण भारत के बीच भाषाई आदान-प्रदान और साझा विरासत को बढ़ावा देना था।
इस कार्यक्रम में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि तमिल सभ्यता भारत की व्यापक सभ्यतागत नींव का अभिन्न अंग है, और यह क्षेत्रीय सीमाओं से परे है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा, “तमिल सभ्यता क्षेत्रीय नहीं है। यह भारत की सभ्यता की नींव है। काशी तमिल संगम 4.0 का यही मूलमंत्र है, क्योंकि यह भारत की सभ्यतागत शिक्षा को और गहरा करता है। तमिल भाषा केवल तमिलनाडु तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत में सभी के लिए खुली है।”