फरहान इसराइली /जयपुर।
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ हालिया हिंसा, हत्याओं और कथित मॉब लिंचिंग की घटनाओं ने न केवल पड़ोसी देश को, बल्कि पूरे उपमहाद्वीप की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है। इन अमानवीय घटनाओं को लेकर राजस्थान में व्यापक और सशक्त प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। प्रदेश के मुस्लिम संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक प्रतिनिधियों ने एक स्वर में इन घटनाओं की कड़ी निंदा करते हुए स्पष्ट कहा है कि धर्म के नाम पर किसी भी निर्दोष पर अत्याचार न तो इस्लाम में जायज़ है, न ही किसी सभ्य समाज में स्वीकार्य।
राजस्थान की धरती से उठी ये आवाज़ें इस बात का प्रमाण हैं कि इंसानियत, न्याय और मानवाधिकार किसी एक मज़हब या समुदाय की बपौती नहीं, बल्कि साझा मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वक्ताओं ने कहा कि बांग्लादेश में जो कुछ हुआ, वह न केवल अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला है, बल्कि धर्म की मूल शिक्षाओं का भी अपमान है।
मुस्लिम प्रोग्रेसिव फेडरेशन राजस्थान के संयोजक अब्दुल सलाम जौहर ने बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हुए अत्याचारों और हत्याओं की घटनाओं की सख़्त शब्दों में भर्त्सना की। उन्होंने कहा कि ये घटनाएं इस्लाम की शिक्षाओं, इंसानी हक़-अधिकारों और मूल मानवीय मूल्यों के पूरी तरह खिलाफ हैं। उनका कहना था कि कोई भी धर्म निर्दोषों की हत्या और ज़ुल्म की इजाज़त नहीं देता। जौहर ने बांग्लादेश सरकार से मांग की कि ऐसे हमलों को तत्काल प्रभाव से रोका जाए और दोषियों के खिलाफ सख़्त से सख़्त कानूनी कार्रवाई की जाए। साथ ही उन्होंने भारत सरकार से भी अपील की कि वह कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ठोस कदम उठाकर वहां अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित कराए।
जयपुर की सोशल एक्टिविस्ट और आर्ट कंजरवेटर मैमूना नरगिस ने इस मुद्दे को व्यापक सामाजिक संदर्भ में रखते हुए कहा कि इस्लाम साफ़ तौर पर सिखाता है कि अपने धर्म की बात करें, लेकिन दूसरे के धर्म का अपमान न करें। उन्होंने बांग्लादेश में हुई हत्याओं और मॉब लिंचिंग की निंदा करते हुए इसे बेहद अफ़सोसनाक बताया। साथ ही उन्होंने मीडिया और समाज के दोहरे मापदंडों पर भी सवाल उठाए। उनका कहना था कि हिंसा कहीं भी हो, वह हिंसा ही रहती है—नाम और पहचान बदलने से उसका अर्थ नहीं बदलता। उन्होंने मांग की कि भारत में हुई मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर भी उसी संवेदनशीलता और सख़्ती से आवाज़ उठाई जानी चाहिए।
राजनेता और समाजसेवी अमीन पठान ने बांग्लादेश में ईशनिंदा के नाम पर हुई क्रूर हत्या की निंदा करते हुए कहा कि इस्लाम अमन, दया और इंसाफ़ का धर्म है, न कि हिंसा और नफ़रत का। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अपराधियों को धर्म के नाम पर बचाया नहीं जाना चाहिए, क्योंकि ऐसी घटनाएं पूरे मुस्लिम समाज की छवि को नुकसान पहुंचाती हैं। उनके अनुसार, हर तरह की हिंसा के खिलाफ खड़ा होना ही सच्ची इंसानियत है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता और लेखिका रूबी खान ने कहा कि बांग्लादेश की यह घटना पूरी इंसानियत को शर्मसार करने वाली है। उन्होंने जोर देकर कहा कि किसी भी धर्म में इस तरह की हिंसा की कोई जगह नहीं है। धर्म के नाम पर अत्याचार न केवल धार्मिक शिक्षाओं का अपमान है, बल्कि समाज को तोड़ने वाली सोच को भी बढ़ावा देता है। उन्होंने कहा कि दुनिया भर के मुसलमान ऐसी घटनाओं की निंदा करते हैं और मानते हैं कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं।
प्रांतीय मुस्लिम तेली महापंचायत के अध्यक्ष अब्दुल लतीफ़ आर्को ने मीडिया रिपोर्टिंग पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिना पूरी जांच और पुख्ता तथ्यों के सांप्रदायिक निष्कर्ष निकालना खतरनाक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि किसी हिंदू की हत्या हुई है, तो वह निंदनीय है और उसका कोई समर्थन नहीं किया जा सकता। साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि अफवाहों और तोड़े-मरोड़े गए तथ्यों के ज़रिये समाज को बांटने की कोशिश देशहित में नहीं है।
नेशनल मुस्लिम वूमेन वेलफेयर सोसाइटी की फाउंडर प्रेसिडेंट निशात हुसैन ने बांग्लादेश में एक हिंदू युवक की निर्मम हत्या को बेहद दुखद बताया। उन्होंने कहा कि मज़हब के नाम पर किसी निर्दोष की हत्या न बहादुरी है और न ही किसी धर्म की शिक्षा। उन्होंने बांग्लादेश सरकार से दोषियों पर सख़्त कार्रवाई और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की तथा पीड़ित परिवार के प्रति एकजुटता व्यक्त की।
वेलफेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया, जयपुर के जिला अध्यक्ष फिरोज़उद्दीन ने भी इन घटनाओं की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि हिंसा और नफरत का किसी भी धर्म से कोई संबंध नहीं हो सकता। समाज में शांति और भाईचारे को बनाए रखना सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।
शिक्षाविद डॉ. मोहम्मद शोएब ने कहा कि ईशनिंदा के नाम पर की गई कोई भी हत्या न इस्लाम में जायज़ है और न ही किसी सभ्य समाज में स्वीकार्य। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अमन और भाईचारे के लिए हिंसा के हर रूप के खिलाफ आवाज़ उठाना ज़रूरी है।
कुल मिलाकर, राजस्थान से उठी ये आवाज़ें यह स्पष्ट संदेश देती हैं कि धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा के खिलाफ समाज का विवेक आज भी ज़िंदा है। यह साझा स्वर न केवल बांग्लादेश सरकार से न्याय की मांग करता है, बल्कि पूरे क्षेत्र में शांति, सह-अस्तित्व और इंसानियत की पुनर्स्थापना का आह्वान भी करता है।