उदयपुरः मजहबी एकता का धागा अब भी मजबूत, एकजुट हैं लोग

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 02-07-2022
उदयपुरः मजहबी एकता का धागा अब भी मजबूत, एकजुट हैं लोग
उदयपुरः मजहबी एकता का धागा अब भी मजबूत, एकजुट हैं लोग

 

तृप्ति नाथ/ नई दिल्ली

उदयपुर के निवासी सांप्रदायिक एकता में अपने विश्वास की कसमें खाते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए डटे हुए हैं कि हाल ही में दो स्थानीय मुसलमानों द्वारा "इस्लाम के नाम पर" दर्जी कन्हैया लाल तेली का सिर कलम करने की घटना उन्हें विभाजित नहीं कर सकती.

50से अधिक वर्षों से उदयपुर में रह रहे वरिष्ठ नागरिक विलास जांवे का कहना है कि वह सभी मजहबी एकता और सद्भाव के पक्षधर हैं. उनका कहना है कि लोगों को मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप से प्रेरणा लेनी चाहिए, उनके पास एक मुस्लिम जनरल, हकीम खान सूर, एक जातीय पश्तून था. हकीम खान सूर ने 18जून, 1576को हल्दीघाटी की लड़ाई में मुगल सेना के खिलाफ महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व किया और अपने प्राणों की आहुति दे दी.

पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (डब्ल्यूजेडसीसी) से कार्यक्रम अधिकारी के रूप में सेवानिवृत्त हुए जांवे कहते हैं, “इस क्षेत्र का इतिहास 16वीं शताब्दी का है, यह उस भरोसे की याद दिलाता है जो इस वीर शासक ने अपने सेनापति जो शेरशाह सूरी के वंशज थे, पर जताया था. उन्होंने अपने जीवन के साथ उन पर भरोसा किया और आने वाली पीढ़ियों के लिए सांप्रदायिक एकता में एक उदाहरण स्थापित किया. उदयपुर में महाराणा प्रताप स्मारक में, हकीम खान सूर की एक प्रतिमा है.''

जांवे एक माइम कलाकार हैं और उनका कहना है कि नाटककारों को सांप्रदायिक एकता बनाए रखने और मजहबी दुश्मनी को को खत्म करने के लिए नाटकों के मंचन पर विचार करना चाहिए. वह कहते हैं, "शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए तर्कसंगत सोच और खुले दिमाग का होना महत्वपूर्ण है अन्यथा देश बिखर जाएगा. मुबीन, गुलाम नूर खान पठान और उनके बेटे, अशफाक नूर खान पठान जैसे थिएटर में मेरे कई मुस्लिम छात्र रहे हैं. उन्होंने मुझसे माइम एक्टिंग सीखी. मेरे द्वारा निर्देशित एक नाटक में असफाक ने स्वामी विवेकानंद की भूमिका भी निभाई थी. थिएटर के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि वह क्लीन शेव आदमी का किरदार निभाकर खुश थे. दरअसल, रंगमंच के लोग धर्म से बहुत ऊपर हैं.''

भारतीय लोक कला मंडल के निदेशक लाइक हुसैन का कहना है कि उन्होंने दर्जी की बर्बर हत्या को हिंदू-मुसलमान के चश्मे से नहीं देखा है. डब्ल्यूजेडसीसी में भी काम हुसैन कहते हैं, "यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं है."

प्रतिष्ठित नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के पूर्व छात्र लाइक 35 साल से उदयपुर में रह रहे हैं. वह कहते हैं, “मैं 30 घरों की कॉलोनी में रहने वाला अकेला मुसलमान हूं. इसका मतलब है कि मेरे 140से अधिक पड़ोसी हैं जो गैर-मुस्लिम हैं लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं अल्पमत में हूं. मैं 15 साल अपने परिवार के साथ वहां चला गया. मेरे हिंदू भाइयों और बहनों ने हमेशा मेरा सम्मान किया है और मुझे कभी असहज महसूस नहीं कराया. मैं दिन में पांच बार नमाज पढ़ता हूं और रोजा रखता हूं. रमजान और मेरी हिंदू पत्नी के बाद ईद पर हमारे पास हमेशा मेहमानों का आना लगा रहता है. पड़ोसी, अनुकंपा हर किसी के लिए अद्भुत 'खीर' बनाती है. हम सभी पड़ोसियों को होली और दिवाली पर बुलाते हैं. हम अपने दृष्टिकोण में धर्मनिरपेक्ष हैं और आप मेरे घर में पवित्र कुरान, रामायण और भगवद् गीता पाएंगे. मैंने सभी धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन किया है और निष्कर्ष निकाला है कि संदेश एक ही है.''

जांवे को अपनी मुस्लिम बहू, अफरा शफीक पर गर्व है जो एक प्रसिद्ध दृश्य डिजाइनर हैं. उनका कहना है कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि कन्हैयालाल की हत्या की गई. वह कहती हैं, “वह एक अच्छे दर्जी के रूप में जाने जाते थे और उनकी सिलाई की दरें पॉकेट फ्रेंडली थीं. लोगों ने उन्हें बजट टेलर कहा. उनके दाह संस्कार के लिए हजारों की संख्या में लोग पहुंचे. उनके प्रति सहानुभूति की लहर है लेकिन उनका परिवार पीड़ित है. उदयपुर में दहशत का माहौल है. दैनिक मजदूरी से गुजारा करने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. वे काम की तलाश में कहीं बाहर नहीं जा सकते. सामान्य जनजीवन ठप है. जरूरी सामान मिलना मुश्किल है. सिर काटने की घटना के बाद शुरू में 24 घंटे के लिए निलंबित इंटरनेट सेवाएं अभी भी सुचारू रूप से काम नहीं कर रही हैं.''

चित्तौड़गढ़ में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के साथ काम करने वाले 30वर्षीय शिक्षक मुबीन का कहना है कि उदयपुर में जो हुआ वह बहुत गलत और दुखद है. उदयपुर में पैदा हुए और पले-बढ़े मुबीन कहते हैं, “ऐसी ताकतें हैं जो सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रही हैं. यह वह समय है जब हमें एक शांतिपूर्ण समुदाय का निर्माण करने के लिए एक साथ आना चाहिए. हमारी अलग-अलग पहचान और विविध हित हो सकते हैं लेकिन हमें बहुलवाद को प्रोत्साहित करना चाहिए.''

उदयपुर में दहशत है और लोग खुलकर बात करने से डरते हैं लेकिन उन्हें उम्मीद है कि झीलों का शहर फिर से सामान्य हो जाएगा.  बेशक, वे कन्हैया लाल पाटिल के लिए न्याय चाहते हैं.