वर्षा देशपांडे : दलित-आदिवासी, अल्पसंख्यक महिलाओं की मसीहा को यूएन पॉपुलेशन अवॉर्ड

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 14-07-2025
She dedicated her life to the backward women of the society, received the United Nations' 'UN Population Award'
She dedicated her life to the backward women of the society, received the United Nations' 'UN Population Award'

 

आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली 

संघर्ष, संवेदना और सामाजिक बदलाव की अगर कोई ज़िंदा मिसाल देखनी हो, तो महाराष्ट्र के कोल्हापुर की सामाजिक कार्यकर्ता वर्षा देशपांडे का नाम सबसे पहले लिया जाना चाहिए. उन्होंने अपना पूरा जीवन भारत की ग्रामीण, आदिवासी अल्पसंख्यक ,वंचित और दलित महिलाओं को न्याय, सम्मान और समान अधिकार दिलाने में लगा दिया.

वर्ष 2025 में संयुक्त राष्ट्र ने उनके इसी अनुकरणीय योगदान के लिए उन्हें ‘यूएन पॉपुलेशन अवॉर्ड’ से सम्मानित किया है. वह यह सम्मान पाने वाली भारत की तीसरी शख्सियत बनीं हैं. इससे पहले यह सम्मान 1983 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और 1992 में उद्योगपति जे.आर.डी. टाटा को मिल चुका है.

वर्षा देशपांडे को यह अवॉर्ड व्यक्तिगत श्रेणी में दिया गया है. संयुक्त राष्ट्र के न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय में आयोजित एक गरिमामयी समारोह में यह पुरस्कार प्रदान किया गया.

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यह सम्मान न सिर्फ उनके सामाजिक संघर्ष की अंतरराष्ट्रीय मान्यता है, बल्कि भारत के उस तबके की आवाज़ को वैश्विक मंच पर लाने की एक ऐतिहासिक घटना है, जिसे दशकों से दरकिनार किया जाता रहा है — दलित महिलाएं .

ग्रामीण भारत से निकली बदलाव की आवाज़

वर्षा देशपांडे ने 1990 में ‘दलित महिला विकास मंडल’ की स्थापना की. तब यह कोई बड़ा संगठन नहीं था, बल्कि एक विचार था — एक सपना कि भारत की हाशिए पर खड़ी महिलाएं सिर्फ अधिकार नहीं मांगेगीं, बल्कि उन्हें हासिल करके रहेंगी. उन्होंने समाज के उस वर्ग के साथ काम करना शुरू किया, जो हर तरह के शोषण का शिकार रहा—जैसे दलित महिलाएं, विधवाएं, आदिवासी महिलाएं, अल्पसंख्यक महिलाएं और घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाएं.

उन्होंने देखा कि ग्रामीण भारत की महिलाएं केवल सामाजिक या आर्थिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी एक गहरे अविश्वास और भय में जी रही थीं. उन्हें न तो शिक्षा मिल रही थी, न स्वास्थ्य सेवा, और न ही संपत्ति या निर्णय लेने का अधिकार। वर्षा ने इन्हीं समस्याओं को चुनौती देने का बीड़ा उठाया.

वर्षा देशपांडे का सबसे उल्लेखनीय कार्य लिंग आधारित भ्रूण हत्या के खिलाफ रहा है. महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं लगातार बढ़ रही थीं. समाज में यह मानसिकता फैल चुकी थी कि बेटा होना गर्व की बात है और बेटी होना बोझ। इस मानसिकता को तोड़ना आसान नहीं था.

देशपांडे ने पीसीपीएनडीटी (Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques) अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सरकार, प्रशासन और समाज तीनों पर दबाव डाला.

उन्होंने अवैध लिंग परीक्षण केंद्रों को उजागर किया. कई डॉक्टरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. लिंग चयन की प्रवृत्ति को समाज विरोधी अपराध के रूप में स्थापित किया. इसके साथ ही उन्होंने समुदायों में जागरूकता फैलाने के लिए महिला स्वयंसेवी समूह बनाए, जो गांव-गांव जाकर लोगों को समझाते कि बेटी होना पाप नहीं, वरदान है.

उनका कहना है,“हमने देखा कि बेटियों की हत्या केवल अस्पतालों में नहीं हो रही, बल्कि वह मानसिकता समाज के हर कोने में फैली हुई थी. हमें सिर्फ कानून से नहीं, संस्कार से लड़ना था.”

देशपांडे का काम केवल अधिकारों की बातों तक सीमित नहीं रहा. उन्होंने महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कई नवाचार किए. उन्होंने महिलाओं को व्यावसायिक कौशल में प्रशिक्षित किया, जैसे सिलाई, जैविक खेती, खाद्य प्रसंस्करण, हस्तशिल्प आदि. आज, उनके संगठन से जुड़ी सैकड़ों महिलाएं अपने व्यवसाय चला रही हैं और अपने परिवार की रीढ़ बन चुकी हैं.

इसके साथ ही उन्होंने महिलाओं को संयुक्त संपत्ति पंजीकरण के लिए प्रेरित किया, ताकि महिलाएं घर या ज़मीन की कानूनी सह-मालिक बनें. इससे महिलाओं की पारिवारिक और सामाजिक हैसियत में क्रांतिकारी बदलाव आया.

उन्होंने किशोरियों के लिए शिक्षा और नेतृत्व प्रशिक्षण शुरू किया और ‘पुरुषों और लड़कों की भागीदारी’ जैसे कार्यक्रम शुरू करके यह बताया कि लैंगिक समानता केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरे समाज की ज़िम्मेदारी है.

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या पुरस्कार की घोषणा करते हुए यूएनएफपीए (UNFPA) की भारत प्रतिनिधि एंड्रिया एम. वोजनार ने कहा,“वर्षा का काम भारत के ग्रामीण सामाजिक ताने-बाने को बदलने वाला है.

उन्होंने यह दिखा दिया कि भेदभाव चाहे लिंग का हो, जाति का हो या धर्म का — हर प्रकार के अन्याय के खिलाफ खड़ा होना ही असली मानवाधिकार है. वह सचमुच एक प्रेरणादायक कार्यकर्ता हैं.”

वर्षा देशपांडे ने पुरस्कार ग्रहण करते हुए कहा,“यह पुरस्कार मेरे अकेले का नहीं है. यह उन हज़ारों महिलाओं का सम्मान है, जिन्होंने मुझ पर भरोसा किया और खुद को बदलने का हौसला दिखाया.

यह उन कार्यकर्ताओं का भी है जो बिना नाम या पहचान के हर दिन लड़ाई लड़ते हैं. मुझे उम्मीद है कि यह सम्मान भारत सहित दुनिया को यह याद दिलाएगा कि बेटियों की जान कीमती है. हमें उनके जीवन में निवेश करना होगा.”

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या पुरस्कार: एक परिचय

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या पुरस्कार (United Nations Population Award) की स्थापना 1981 में की गई थी और पहला पुरस्कार 1983 में दिया गया. यह पुरस्कार हर साल जनसंख्या और प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दों पर असाधारण योगदान के लिए किसी व्यक्ति या संस्था को प्रदान किया जाता है.

इसमें एक स्वर्ण पदक, एक प्रमाण पत्र और एक नकद पुरस्कार शामिल होता है। इसकी चयन समिति में आठ संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश शामिल होते हैं और इसका सचिवालय यूएनएफपीए के पास होता है.

इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले व्यक्ति को वैश्विक स्तर पर “जनसंख्या अधिकारों के अग्रदूत” के रूप में सम्मानित किया जाता है. वर्षा देशपांडे का नाम अब इस सूची में शामिल होकर न केवल भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाता है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि जमीनी स्तर पर किया गया काम दुनिया की नज़र में आता है, बशर्ते वह सच्चाई और संवेदना से किया गया हो.
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आज जबकि हम महिला सशक्तिकरण, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, और नारी शक्ति जैसे नारों की बात करते हैं, वर्षा देशपांडे हमें यह दिखाती हैं कि बदलाव सिर्फ योजनाओं से नहीं, बल्कि ‘जमीनी भागीदारी’ से आता है. उन्होंने न तो मीडिया का सहारा लिया, न सोशल मीडिया का शोर मचाया, बल्कि गांव की मिट्टी से सीधी जुड़कर काम किया.

उनके लिए हर महिला एक दुनिया है, और हर बेटी भविष्य की रोशनी. उनका यह सम्मान पूरे भारत की महिलाओं के संघर्ष, साहस और सामूहिक चेतना की वैश्विक मान्यता है.

वर्षा देशपांडे एक नाम नहीं, एक विचार हैं.वह इस सदी की उन विरल महिलाओं में से एक हैं, जिन्होंने अपने जीवन को नारे नहीं, नम्र क्रांति में बदला। उन्होंने न किसी पद की चाह रखी, न प्रशंसा की. और आज जब संयुक्त राष्ट्र उन्हें सम्मानित करता है, तो यह केवल एक व्यक्ति का नहीं, भारत की उस चुपचाप चल रही नारी क्रांति का सम्मान है, जो हर गांव में, हर आंगन में अपनी आवाज़ गूंजा रही है.