वेल्लोर विद्रोह: टीपू सुल्तान के बेटों ने अंग्रेज़ी सत्ता की नींव हिला दी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 14-07-2025
Vellore Rebellion: Tipu Sultan's sons shook the foundations of British rule
Vellore Rebellion: Tipu Sultan's sons shook the foundations of British rule

 

साकिब सलीम

टीपू सुल्तान के पुत्रों द्वारा प्रेरित वेल्लोर विद्रोह भारतीय इतिहास की वह घटना है जिसे अक्सर 1857 की क्रांति का पूर्वाभ्यास कहा जाता है. 10 जुलाई 1806 की रात को घटित यह विद्रोह उस असंतोष का विस्फोट था जो लंबे समय से अंग्रेजी शासन के अधीन भारतीय सैनिकों और आमजन के भीतर सुलग रहा था. इस विद्रोह के पीछे केवल सैन्य अनुशासन का उल्लंघन या नए पहनावे की नाराज़गी नहीं थी, बल्कि इसके पीछे धार्मिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक अस्मिता की भावना थी जिसे टीपू सुल्तान के बेटों ने गुप्त रूप से संगठित किया था.

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1799 में टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद, अंग्रेजों ने उनके पूरे परिवार को बंदी बनाकर वेल्लोर किले में रखा. यहीं से शुरू हुई वह चुपचाप चल रही प्रक्रिया जो बाद में सशस्त्र विद्रोह का रूप लेने वाली थी। टीपू के बेटे, खासकर फुत्तेह हैदर, मुइज़ुद्दीन और मोइज़ुद्दीन, राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण थे और अंग्रेज़ी हुकूमत को इस बात की आशंका थी कि किसी भी दिन वे विद्रोह का नेतृत्व कर सकते हैं. वेल्लोर में रहते हुए उन्होंने चुपचाप अपने पुराने अनुयायियों और देश के अन्य असंतुष्ट तत्वों से संपर्क बनाए रखा.

इसी बीच 1806 की शुरुआत में ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक नया आदेश जारी किया जिसमें भारतीय सिपाहियों को यूरोपीय शैली की टोपी पहनने, दाढ़ी मुंडवाने और तिलक या धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग न करने का निर्देश दिया गया. यह आदेश सिपाहियों को अपनी धार्मिक आस्थाओं के विरुद्ध लगा.

Dमई 1806 में चौथी रेजिमेंट के सिपाहियों ने इस आदेश का खुला विरोध किया. नतीजतन, कई सैनिकों को कठोर दंड दिए गए, जिनमें कोड़े मारने जैसी अमानवीय सजाएँ शामिल थीं. यह दमनकारी कार्रवाई विद्रोह की चिंगारी को और भड़का गई.

टीपू के पुत्रों ने इन घटनाओं का लाभ उठाते हुए लंबे समय से चल रही अपनी योजना को क्रियान्वित करने का निर्णय लिया. 9 जुलाई 1806 को वेल्लोर किले में टीपू की एक बेटी का विवाह आयोजित किया गया था, जिस बहाने बड़ी संख्या में लोग महल में एकत्र हुए। यह विवाह वास्तव में एक आवरण था, जिसके पीछे विद्रोह की रणनीति छिपी हुई थी.

अगले दिन, यानी 10 जुलाई की रात को सिपाहियों ने अंग्रेजी सैनिकों पर अचानक हमला कर दिया. विद्रोही सैनिकों ने लगभग 15 ब्रिटिश अधिकारियों और 110 से अधिक सैनिकों की हत्या कर दी.

कर्नल फैनकोर्ट, जो उस समय किले के प्रभारी थे, सबसे पहले मारे गए. किले की कमान तेजी से भारतीय सिपाहियों के हाथों में आ गई। अंग्रेजी झंडा उतारकर उसकी जगह टीपू सुल्तान का झंडा फहराया गया, और मोइज़ुद्दीन को विद्रोहियों ने अपना नेता घोषित किया.

इस पूरे विद्रोह में टीपू सुल्तान के बेटों की भूमिका प्रेरक और योजनाकार की थी. मोइज़ुद्दीन ने अपने घोड़े की काठी कसवाकर सिपाहियों को संबोधित किया और वादा किया कि वह जल्द ही मुसलमानों की सत्ता को बहाल करेगा. कई स्रोतों के अनुसार, सिपाहियों ने महल में जाकर राजकुमारों से कहा, "बाहर आइए नवाब साहब, अब डरने की कोई बात नहीं है."

Dइस अपील पर फतेह हैदर बाहर आए और विद्रोह को वैधता देने की दिशा में एक प्रतीक बन गए.

हालाँकि विद्रोह का आरंभ तेज़ था, लेकिन उसका अंत उतना ही रक्तरंजित और त्वरित रहा. पास के आर्कोट शहर से ब्रिटिश कमांडर कर्नल गिलेस्पी अपने सैनिकों के साथ सुबह ही वेल्लोर पहुँच गए.

उन्होंने अत्यधिक आक्रामक और निर्दयता से कार्रवाई करते हुए विद्रोह को कुछ ही घंटों में कुचल दिया.

उनकी सेना ने विद्रोहियों पर हमला बोलते हुए करीब 500 से अधिक भारतीय सैनिकों को मार डाला. जो पकड़े गए, उन्हें कठोर दंड दिए गए—कुछ को तोप से उड़ा दिया गया, कुछ को फांसी दी गई और कई को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.

टीपू सुल्तान के पुत्रों और उनके सहयोगियों को भी गंभीर सजा दी गई. कुछ को मृत्युदंड मिला, जबकि बाकी को कड़ी निगरानी में कोलकाता भेज दिया गया, ताकि वे किसी भी भविष्य की साजिश का हिस्सा न बन सकें. इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने पूरे दक्षिण भारत में कड़ा नियंत्रण स्थापित कर दिया.

वेल्लोर की घटना को बेहद गंभीरता से लिया गया और इसके कारण मद्रास के गवर्नर लॉर्ड बेंटिक और कमांडर-इन-चीफ क्रैडॉक को उनके पदों से हटा दिया गया.विद्रोह के बाद एक जाँच आयोग बनाया गया, जिसकी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया कि विद्रोह के पीछे दो मुख्य कारण थे—सिपाहियों के पहनावे में जबरन बदलाव और वेल्लोर में टीपू सुल्तान के परिवार की मौजूदगी.

यह रिपोर्ट एक महत्वपूर्ण दस्तावेज थी जिसने ब्रिटिश हुकूमत को यह एहसास कराया कि भारतीय धार्मिक परंपराओं में हस्तक्षेप अत्यधिक खतरनाक साबित हो सकता है.

इस विद्रोह में एक और महत्वपूर्ण पहलू यह था कि इसमें धर्म और जाति की भावनाओं को गहराई से छुआ गया. जिस तरह से 1857 के विद्रोह में चर्बी लगे कारतूसों ने सैनिकों को भड़काया, उसी तरह वेल्लोर में टोपी, तिलक और दाढ़ी जैसे प्रतीकों से खिलवाड़ ने असंतोष को विद्रोह में बदल दिया.

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दोनों ही विद्रोहों में तत्कालीन शाही परिवारों—दिल्ली में मुग़ल और वेल्लोर में टीपू के वंशजों—का एक प्रतीकात्मक महत्त्व था जिसने आंदोलन को भावनात्मक समर्थन दिया.वेल्लोर विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था.

यद्यपि इसे तत्काल दबा दिया गया, लेकिन इसने यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय सिपाहियों के भीतर संगठन, नेतृत्व और विद्रोह की क्षमता मौजूद है. यह घटना अपने समय से बहुत आगे की सोच रखने वाली थी और इसकी गूँज 1857 की क्रांति तक सुनाई देती रही. वास्तव में, यह भारतीय असंतोष, धार्मिक स्वतंत्रता और राजनीतिक आकांक्षाओं का पहला संगठित विस्फोट था, जो आने वाले दशकों में ब्रिटिश साम्राज्य को कई बार हिला कर रख देगा.