तीज त्यौहारों पर भी पड़ रहा है महानगरों की जीवनशैली का असर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 11-07-2025
The lifestyle of metros is also affecting the festivals
The lifestyle of metros is also affecting the festivals

 

नयी दिल्ली
 
महानगरों में बदलती जीवनशैली और समय की कमी से पारंपरिक त्यौहार भी अछूते नहीं रहे हैं। सावन के महीने में विशेष रूप से की जाने वाली भगवान शिव की पूजा से जुड़ी परंपराओं पर भी इसका असर पड़ा है।
 
सावन मास की शुरुआत आज से हो रही है और सावन के पहले सोमवार का व्रत 14 जुलाई को रखा जाएगा।
 
शहर की कई कामकाजी महिलाओं का मानना है कि व्यस्त जीवनशैली के कारण अब वह समय नहीं रहा जब कॉलोनियों में सावन के महीने में झूले डाले जाते थे और महिलाएं सामूहिक रूप से गीत गाती थीं। महिलाओं को इस बात की टीस रहती है कि अब न तो मोहल्लों में पेड़ों पर झूले दिखाई देते हैं और न ही पारंपरिक लोकगीतों की गूंज सुनाई देती है।
 
हालांकि उनका कहना था कि धार्मिक भावना आज भी उतनी ही मजबूत है, लेकिन अभिव्यक्ति के तौर-तरीकों में बदलाव आ गया है।
 
दक्षिण दिल्ली में पार्लर चला रहीं दो बच्चों की मां पूनम ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया,‘‘ धार्मिक रीति-रिवाज हमारी सांस्कृतिक पहचान से जुड़े हैं लेकिन समय की कमी के चलते मैं उतने विधि-विधान से पूजा नहीं कर पाती हैं, जैसा कि मेरी मां और दादी-नानी किया करती थीं।’’
 
देशभर में शिव मंदिरों में सावन की तैयारियां जोरों पर हैं। सावन सोमवार पर श्रद्धालुओं की संख्या अधिक होने की संभावना को देखते हुए मंदिरों में व्यापक व्यवस्था की जा रही है।
 
राजधानी में जहां एक ओर कामकाजी महिलाएं डिजिटल माध्यम से कथा और भजन सुनकर व्रत की परंपरा निभाती हैं, वहीं गृहिणियां सुबह से ही मंदिरों में जाकर शिवलिंग का अभिषेक करने की तैयारी करती हैं।
 
पूनम ने कहा, "भागदौड़ वाली जिंदगी में धार्मिक रीति-रिवाजों को सहेजना थोड़ा मुश्किल होता है । इसलिए केवल घर पर ही शिवलिंग की पूजा कर सावन का पर्व मनाती हूं।"
 
हालांकि महानगरों को छोड़ दें तो छोटे शहरों में महिलाएं अभी भी धामिर्क मान्याताओं और रीति-रिवाजों का पालन करती हैं।
 
प्रयागराज की ‘आशा’ कार्यकर्ता रेखा शुक्ला ने कहा, ‘‘परिवार का पेट-पालने के लिए जितना दो पैसे कमाना जरुरी है, उतना ही रीति-रिवाज, तीज त्यौहार मनाना भी जरूरी है। मैं सावन का पर्व भी पूरे नियम के अनुसार मनाती हूं। व्रत करती हूं, कथा पढ़ती हूं और घर में शिवलिंग की पूजा के साथ मंदिर भी जाती हूं।"
 
एक कार्पोरेट कंपनी में काम करने वाली पूर्वी दिल्ली की संगीता मेहरा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा,‘‘ सावन के झूले और गीत तो अब बहुत कम हो गए हैं लेकिन मैं हर साल व्रत रखती हूं, ऑफिस से लौटकर पूजा करती हूं और मोबाइल पर कथा सुनती हूं।’’
 
रिठाला में रहने वाली गृहिणी लक्ष्मी तिवारी ने कहा, "मेहंदी लगाना और चूड़ियां पहनना मेरे लिए सावन की पहचान है। मैं सावन के हर सोमवार को व्रत करती हूं।"
 
मयूर विहार फेज-1 में रहने वाली सुनीता भारद्वाज ने कहा, “दिल्ली में बारिश आती है लेकिन गांव की तरह मिट्टी नहीं महकती। वहां सावन का मतलब होता था झूले, मेंहदी और गीत। अब बच्चों को वो सब नहीं दिखा पाते। हम तो कोशिश करते हैं घर में थोड़ी बहुत पूजा-पाठ कर उस माहौल को बनाए रखें ताकि बच्चे जानें तो सही कि सावन का त्यौहार क्या होता है और पारंपरिक तौर पर कैसे मनाया जाता है।”
 
गाजियाबाद के श्रीमद्भागवत प्रवचनकर्ता आचार्य ऋतुपर्ण शर्मा ने बताया कि सावन मास में भगवान शिव की अराधना की जाती है।
 
उन्होंने कहा कि पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय निकले विष को शिवजी ने ग्रहण किया था, जिसके बाद देवताओं ने सावन के सोमवार को उनकी विशेष आराधना आरंभ की। सावन के सोमवार के व्रतों को सौभाग्य और मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है।
 
सावन के महीने में शिव मंदिरों में जाकर श्रद्धालु शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र चढ़ाते हैं। मंदिरों में हर सोमवार सुबह से ही भक्तों की कतारें लग जाती हैं। कई श्रद्धालु व्रत रखकर पूरे दिन भगवान शिव की आराधना करते हैं और शाम को आरती में भाग लेते हैं।