नई दिल्ली
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कहा है कि दुनिया इस समय एक "अस्थिर और अनिश्चित दौर" से गुजर रही है, जिसने कोविड महामारी, कई अंतरराष्ट्रीय संघर्षों और "व्यापारिक उथल-पुथल" के लगातार प्रभाव को देखा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसे वैश्विक अशांति के समय में ‘आत्मनिर्भरता’ की सोच अपनाना ही सबसे उचित रास्ता है।
बुधवार को यहां आयोजित एक सम्मेलन में संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि वैश्वीकरण और शहरीकरण के युग में परंपराएं समय के साथ खो जाती हैं, लेकिन उन्हें संजोकर रखने से भारतीय पर्यटन और भी आकर्षक बन गया है।
सम्मेलन का विषय ‘अजेय भारत की भावना’ था। इस पर उन्होंने कहा, “हम एक सभ्यतागत राष्ट्र हैं, जिसने समय की कसौटियों को पार किया है और अपनी संस्कृति, परंपराओं और विरासत को संजोए रखा है। हमारी असली ताकत हमारे लोग और उनका आत्मविश्वास है। हमने कठिनाइयों को पार किया है और प्रगति व समृद्धि की राह में कई चुनौतियों का सामना किया है।”
यह कार्यक्रम फेडरेशन ऑफ एसोसिएशंस इन इंडियन टूरिज्म एंड हॉस्पिटैलिटी द्वारा आयोजित किया गया था।
जयशंकर ने कहा, “हम वाकई एक अस्थिर और अनिश्चित दौर में हैं, जहां कोविड महामारी, कई चल रहे संघर्ष और व्यापारिक अस्थिरता का असर महसूस किया जा रहा है।” यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब अमेरिका ने सभी भारतीय आयात पर अतिरिक्त 25% शुल्क लगाने की घोषणा की है, जिससे कुल आयात शुल्क 50% हो जाएगा और यह 27 अगस्त से लागू होगा।
उन्होंने कहा कि जिन देशों की घरेलू मांग मजबूत है, वे बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। ऐसे में पर्यटन क्षेत्र की अहमियत और भी बढ़ जाती है, क्योंकि इसमें बुनियादी ढांचे का विकास, उद्यमिता, रचनात्मकता, कौशल वृद्धि और रोजगार सृजन जैसी कई संभावनाएं हैं।
जयशंकर ने कहा कि हाल के वर्षों में भारत ने विश्व के सामने अपनी विरासत और संस्कृति को अधिक स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने के सतत प्रयास किए हैं, जिसमें कई भारतीय स्थलों को यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल कराना भी शामिल है।
उन्होंने कहा, “हमारे पास गर्व करने और दुनिया के साथ साझा करने के लिए बहुत कुछ है। हमारी सोच हमेशा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ और ‘अतिथि देवो भव’ से प्रेरित रही है। लेकिन अनिश्चितता के समय में अपने पैरों पर दृढ़ता से खड़ा होना आवश्यक है। आत्मनिर्भरता न केवल वैश्विक चुनौतियों से निपटने का उपाय है, बल्कि यह हमारे आत्मविश्वास, लचीलेपन और ‘विकसित भारत’ की नींव भी है।”
जयशंकर ने यह भी कहा कि केवल कूटनीति ही नहीं, बल्कि पर्यटन ही वह माध्यम है जो किसी भी देश को दुनिया से जोड़ता है। उन्होंने याद किया कि G20 की अध्यक्षता के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते थे कि भारत के हर राज्य को अपनी पहचान और संस्कृति दिखाने का अवसर मिले। इसी रणनीति के तहत सम्मेलन धरोहर स्थलों और प्राकृतिक सुंदरता वाले क्षेत्रों के पास आयोजित किए गए, जिससे विदेशी प्रतिनिधियों को भारतीय संस्कृति को करीब से समझने का मौका मिला।
उन्होंने कहा कि इस अनुभव से जो छवि विदेशी मेहमान अपने साथ ले गए, वह भारत के लिए लंबे समय तक लाभदायक रहेगी। “इसीलिए हम कहते हैं कि G20 ने भारत को दुनिया से और दुनिया को भारत से जोड़ा,” जयशंकर ने कहा।