नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को स्थायी रूप से कहीं और ले जाने के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को अहम निर्देश जारी किया। अदालत ने कुत्तों के प्रति प्रेम दर्शाने वाले लोगों और इस मुद्दे पर याचिका दाखिल करने वाले गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को निर्देश दिया है कि वे सुनवाई से पहले एक सप्ताह के भीतर क्रमश: ₹25,000 और ₹2 लाख की राशि कोर्ट रजिस्ट्री में जमा कराएं।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने स्पष्ट किया कि यह धनराशि नगर निकायों के माध्यम से आवारा कुत्तों के लिए बुनियादी ढांचे और सुविधाओं के निर्माण में उपयोग की जाएगी। पीठ में न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया भी शामिल थे।
पीठ ने चेतावनी दी कि यदि निर्धारित राशि समय पर जमा नहीं की गई, तो संबंधित पक्षों को आगे की सुनवाई में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
यह आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा 28 जुलाई को शुरू किए गए स्वतः संज्ञान मामले के तहत आया, जिसमें दिल्ली-NCR में आवारा कुत्तों के काटने की घटनाओं और बच्चों में रेबीज संक्रमण की चिंताओं पर संज्ञान लिया गया था। इससे पहले, 11 अगस्त को दो जजों की बेंच ने आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों से न छोड़ने का निर्देश दिया था, जिस पर कई NGOs और व्यक्तियों ने आपत्ति जताते हुए पुनर्विचार की मांग की थी।
तीन सदस्यीय पीठ ने इस निर्देश में आंशिक बदलाव करते हुए कहा कि आवारा कुत्तों को पकड़ने के बाद उनका बधियाकरण और टीकाकरण किया जाए, और फिर उन्हें उसी इलाके में वापस छोड़ा जाए, जहां से उन्हें उठाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जो व्यक्ति या संगठन आवारा कुत्तों को गोद लेना चाहते हैं, वे संबंधित नगर निगमों में आवेदन कर सकते हैं। ऐसे मामलों में कुत्ते को पहचान (टैग) दिया जाएगा और फिर गोद लेने वाले व्यक्ति को सौंपा जाएगा। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह गोद लेने वाले की जिम्मेदारी होगी कि वह सुनिश्चित करे कि कुत्ता सड़कों पर दोबारा न आए।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त के उस निर्देश को फिलहाल स्थगित कर दिया, जिसमें आश्रय स्थलों से कुत्तों को न छोड़ने का आदेश था। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद और गुरुग्राम सहित NCR के सभी इलाकों से आवारा कुत्तों को उठाने और उनकी देखभाल करने की जिम्मेदारी नगर निगमों की ही रहेगी।
गौरतलब है कि 11 अगस्त के आदेश के बाद देशभर में पशुप्रेमियों और NGOs ने विरोध प्रदर्शन किए थे, जिसके चलते कोर्ट ने इस मुद्दे पर व्यापक रूप से पुनर्विचार करने का फैसला किया।