नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने यमन में हत्या के आरोप में मौत की सजा का सामना कर रही भारतीय नर्स निमिषा प्रिया के मामले में एक याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई है। यह याचिका उन व्यक्तियों और संगठनों को असत्यापित और भ्रामक सार्वजनिक बयान देने से रोकने के लिए निर्देश की मांग को लेकर दायर की गई थी, ताकि इस संवेदनशील मामले में कोई अवरोध न आए।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता के. ए. पॉल से कहा कि वे याचिका की एक प्रति अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी के कार्यालय को सौंपें। इसके साथ ही अदालत ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई की तारीख 25 अगस्त तय की है।
याचिकाकर्ता के. ए. पॉल ने न्यायालय को बताया कि उन्हें निमिषा प्रिया और उनकी मां की ओर से एक "चौंकाने वाला पत्र" मिला है और वे पिछले कुछ दिनों से यमन में रहकर मामले की पड़ताल कर रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि दोनों ने उन्हें एक शांतिदूत के रूप में मान्यता दी है और प्रिया ने मामले को लेकर मीडिया प्रतिबंध की भी मांग की है क्योंकि गलत बयानों से बातचीत प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।
अदालत ने यह भी कहा कि इस याचिका को उस लंबित याचिका से जोड़ा जाएगा जो ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ नामक संगठन द्वारा दायर की गई है, जो प्रिया को कानूनी सहायता प्रदान कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट को इससे पहले 14 अगस्त को केंद्र सरकार ने जानकारी दी थी कि निमिषा प्रिया की फांसी पर तत्काल कोई खतरा नहीं है और फिलहाल वह यमन की राजधानी सना की जेल में कैद है।
पृष्ठभूमि:
निमिषा प्रिया, केरल के पलक्कड़ जिले की निवासी हैं और वह एक प्रशिक्षित नर्स हैं। उन्हें 2017 में यमन के एक नागरिक की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 2020 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी और 2023 में उनकी अंतिम अपील खारिज हो गई थी। इसके बाद भारत में उनके लिए राजनयिक स्तर पर प्रयास शुरू किए गए।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी आश्वस्त किया है कि वह प्रिया की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।अब जबकि इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई स्वीकार की है, उम्मीद है कि आने वाले समय में प्रिया के जीवन को लेकर कोई ठोस पहल हो सकेगी।