एनएचआरसी ने रेलवे से स्टेशन मास्टरों के “शोषण” की जांच करने को कहा

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 31-10-2025
NHRC asks Railways to probe
NHRC asks Railways to probe "exploitation" of station masters

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली

 
 एक सेवानिवृत्त रेलवे कर्मचारी की शिकायत पर संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने रेलवे बोर्ड को विशेष रूप से मध्य जोन में स्टेशन मास्टरों के व्यवस्थागत शोषण और अनुचित श्रम प्रथाओं के आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया है।
 
आयोग ने 27 अक्टूबर को रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष और मुख्य श्रम आयुक्त को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर अब तक की गई कार्रवाई की रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।
 
आयोग को दी गई शिकायत में सेवानिवृत्त स्टेशन मास्टर वीरेंद्र कुमार पालीवाल ने आरोप लगाया कि स्टेशन मास्टरों को बिना अतिरिक्त भुगतान किए अधिक समय तक काम करने को मजबूर किया जाता है, उन्हें पर्याप्त विश्राम दिए बिना लंबे समय तक ड्यूटी करनी पड़ती है, और उन्हें लगातार रात की ड्यूटी करने के लिए बाध्य किया जाता है।
 
मानवाधिकार आयोग ने अपने आदेश में कहा, “शिकायत में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया पीड़ितों के मानवाधिकारों का उल्लंघन प्रतीत होते हैं।”
 
आयोग ने कहा कि ये चलन संवैधानिक अधिकारों और श्रम कानूनों का उल्लंघन हैं, जिससे कर्मचारियों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है और रेलवे परिचालन में सुरक्षा जोखिम बढ़ता है।
 
आदेश में यह भी कहा गया, “शिकायतकर्ता ने अधिकारियों से इन अनुचित प्रथाओं की जांच करने, उन्हें रोकने, उचित भुगतान सुनिश्चित करने और स्टेशन मास्टरों के अधिकार व सम्मान को बनाए रखने का आग्रह किया है।”
 
एनएचआरसी ने अपने आदेश के साथ पालीवाल की शिकायत की एक प्रति भी संलग्न की, जिसमें ऐसे अनुचित चलन का उल्लेख किया गया है जो यात्रियों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।
 
पालीवाल ने कहा कि स्टेशन मास्टरों को आठ तरह की अनुचित श्रम प्रथाओं का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें बिना वेतन के काम करवाना, ‘रेल सेवक कार्य घंटे एवं विश्राम अवधि नियम-2005’ का उल्लंघन, लगातार सात रात की ड्यूटी, भत्तों और पदस्थापन में भेदभाव शामिल हैं।
 
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ‘ड्यूटी रोस्टर’ में हेराफेरी की जाती है, वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एपीएआर) अनधिकृत रूप से लिखी जाती है, करियर में बाधाएं डाली जाती हैं, नियम पुस्तिकाओं के अद्यतन संस्करण उपलब्ध नहीं कराए जाते, और स्वीकृत पदों का अवैध रूप से अन्य कार्यों में उपयोग किया जाता है।
 
पालीवाल ने कहा कि स्थानीय श्रम अधिकारियों की उदासीनता और निष्क्रियता, विशेषकर नियमित निरीक्षण नहीं करने के कारण, स्थिति और भी गंभीर हो गई है।