बिना हिजाब हिरासत में लेने के बाद मुस्लिम महिला ने हाईकोर्ट का रुख किया

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 02-12-2023
Muslim woman moves High Court after being detained without hijab
Muslim woman moves High Court after being detained without hijab

 

नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक ‘पर्दानशीं’ मुस्लिम महिला की याचिका पर शहर पुलिस से रुख पूछा है, जिसमें पुलिस कर्मियों के खिलाफ निष्पक्ष जांच और कार्रवाई की मांग की गई है, जो कथित तौर पर उसे बिना हिजाब के जबरन पुलिस स्टेशन ले गए थे और उसके साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया.

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि 5-6 नवंबर की मध्यरात्रि को, लगभग 3 बजे, कुछ पुलिस अधिकारी उसके घर में घुस गए, अवैध तलाशी ली, उसे बिना पर्दा / हिजाब के पुलिस स्टेशन में घुमाया और 13 घंटे तक हिरासत में रखा.

न्यायमूर्ति सौरबाह बनर्जी ने महिला की याचिका पर शहर के पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी किया, जिसमें बल के कर्मियों को उन महिलाओं द्वारा मनाए जाने वाले पवित्र धार्मिक, सामाजिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं के बारे में संवेदनशील बनाने का निर्देश देने की भी मांग की गई, जो ‘पर्दा’ को धार्मिक विश्वास के रूप में या एक धार्मिक विश्वास के रूप में मानती हैं. यह उनकी व्यक्तिगत पसंद का हिस्सा.

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील एम सूफियान सिद्दीकी ने तर्क दिया कि पुलिस अधिकारियों का आचरण याचिकाकर्ता के संविधान में निहित मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के तहत उसके मानवाधिकारों का खुलेआम उल्लंघन था.

30 नवंबर को पारित एक आदेश में, न्यायमूर्ति बनर्जी ने पुलिस को पुलिस स्टेशन परिसर के भीतर और आसपास स्थापित सभी कैमरों के साथ-साथ शहर के अधिकारियों और क्षेत्र में निजी निवासियों द्वारा लगाए गए सभी सीसीटीवी फुटेज को संरक्षित करने का निर्देश दिया.

अदालत ने आदेश दिया, “नोटिस जारी करें. प्रतिवादी को 06.11.2023 को सुबह 01.00 बजे से शाम 05.00 बजे तक की समयावधि के लिए थाना चांदनी महल, मध्य-जिला, दिल्ली के अंदर और आसपास स्थापित सभी कैमरों के सीसीटीवी फुटेज को संरक्षित करने का निर्देश दिया गया है.“ अदालत ने याचिकाकर्ता की शिकायत पर उनके द्वारा की गई कार्रवाई पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए शहर पुलिस को चार सप्ताह का समय दिया.

याचिका में कहा गया है कि एक ‘पर्दानशीं’ महिला को ‘जीवन के अधिकार’ के तहत दिए गए चयन और कपड़े पहनने के अधिकार के साथ-साथ धार्मिक मंजूरी की ढाल का आनंद मिलता है और उसे अपने अनिवार्य घूंघट के बिना दुनिया का सामना करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. इसमें कहा गया है कि पुलिस कर्मियों का आचरण उनके ‘निजता के अधिकार’, ‘सम्मान के साथ जीने के अधिकार’ और ‘प्रतिष्ठा के अधिकार’ का घोर उल्लंघन था.

 

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