ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
कश्मीर ने वर्षों से हमेशा धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखा है. ऐसा ही एक उदाहरण उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के त्रेहगाम गांव में देखा जा सकता है, जहां एक भव्य मस्जिद दशकों से हिंदू मंदिर के साथ एक साझा प्रांगण में स्थित है. दो धार्मिक संस्थाओं के सामने एक प्रसिद्ध तालाब त्रेहगाम के लगभग दर्जनों गांवों के लिए पानी का मुख्य स्रोत है. इस तालाब का पानी मंदिर और वजू दोनों के लिए उपयोग किया जाता है.
स्थानीय लोगों के अनुसार यह तालाब हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है. तालाब में कई मछलियाँ भी हैं जो स्थानीय लोगों के अनुसार दोनों समुदायों के लिए पवित्र हैं.
विभिन्न धर्मों के दो धार्मिक स्थल एक ही आंगन में स्थित हैं और इस प्रकार ये सांप्रदायिक और धार्मिक सद्भाव को प्रदर्शित करते हैं. प्रत्येक समुदाय में से किसी ने भी कभी उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं की; दरअसल, त्रेहगाम के स्थानीय लोग हर सुबह और शाम उन्हें खाना खिलाने की जिम्मेदारी लेते हैं. मछली को बिल्कुल साफ़ पानी में तैरते हुए देखा जा सकता है.
पीर अब्दुल रशीद के अनुसार इस तालाब का ऐतिहासिक महत्व है और यहां तक कि सर वाल्टर रोपर लॉरेंस ने भी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "द वैली ऑफ कश्मीर" में इस तालाब के बारे में लिखा है. यह तालाब न केवल एक लाख लोगों के लिए पीने के पानी का एक बड़ा स्रोत है, बल्कि यह गर्मियों में एक हजार कनाल से अधिक कृषि भूमि को सिंचित करता है.
Peer Abdul Rashid
“तालाब कभी भी पानी देना बंद नहीं करता; यह हमारे लिए सर्वशक्तिमान की एक महान देन है. हमारे इलाके में कोई अन्य जल संसाधन नहीं है और इससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है.”
पीर अब्दुल रशीद कहते हैं कि वर्षों से त्रेहगाम में स्थानीय लोगों ने पूरे कश्मीर में अशांति के समय मंदिर की पवित्रता की रक्षा और देख रेख करते आ रहें हैं. यह तब भी था जब हमारे कश्मीरी पंडित भाइयों के अपना मूल स्थान छोड़ने के बाद मंदिर की देखभाल करने वाला कोई नहीं था. कश्मीरी पंडित साल भर समय-समय पर इस मंदिर में आते हैं और यहां पूजा करते हैं.
पीर अब्दुल रशीद कहते हैं कि “हमने दोनों धार्मिक स्थलों पर बाड़ लगाना भी सुनिश्चित किया है. हमने मनरेगा और बीएडीपी के तहत मस्जिद और मंदिर की बाड़ लगाने के लिए एक विशिष्ट राशि रखी थी. त्रेहगाम के स्थानीय लोगों ने कई बार मंदिर का जीर्णोद्धार किया है. दरअसल, स्थानीय लोगों ने देखा कि छत की टिन जंग के कारण क्षतिग्रस्त हो गई है, जिसके बाद इसे एक बार बदल दिया गया था.''
पीर अब्दुल रशीद कहते हैं कि "हम चाहते हैं कि कश्मीरी पंडित अपनी मूल जड़ों की ओर लौटें और यहां स्थायी रूप से बस जाएं ताकि एकता और विविधता का माहौल एक बार फिर से देखने को मिले."