मुंबई. मौलाना गुलज़ार अहमद आज़मी (सचिव कानूनी सहायता समिति, जमीयत उलमा महाराष्ट्र) का छोटी बीमारी के बाद, आज सुबह 1.30 बजे मसिना अस्पताल भायखला में हृदय गति रुकने से निधन हो गया. आज़मी छह दशकों तक जमीयत उलेमा हिंद से जुड़े रहे और तब से उन्होंने भारत के सबसे बड़े मुस्लिम एनजीओ जमीयत के तहत सामाजिक कार्यों के लिए कई सेवाएं प्रदान की हैं.
आज़मी ने जमीयत उलेमा, महाराष्ट्र की कानूनी सहायता समिति के प्रमुख के रूप में कई गरीब लोगों के मामले लड़े हैं. उनके सहयोग से ही वर्षों से जेल में बंद लोगों की रिहाई संभव हो सकी। उन्होंने आतंकवाद के झूठे मामलों में फंसे युवाओं की रिहाई के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. इसके लिए उन्हें धमकियां भी मिलीं.
वह महाराष्ट्र अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य भी थे. आरोपों या धमकियों से निडर होकर, आज़मी कहा करते थी, "मैं शोषण के पीड़ितों को न्याय दिलाने के अपने जुनून को नहीं रोकूंगा, जिन्हें अगर अकेला छोड़ दिया गया, तो पुलिस द्वारा पक्षपातपूर्ण जांच का शिकार होना पड़ेगा."
वे कहते थे कि मैं अपनी जान जाने से नहीं डरता. मेरा मानना है कि मेरी मृत्यु का समय, स्थान और घटनाएँ पहले से ही निर्धारित हैं और मैं किसी समय उनसे मिलू
सकता हूं. तो मुझे समाज के दबे-कुचले वर्ग की मदद करने से क्यों बचना चाहिए? आतंकी संदिग्धों के बचाव के खतरे का उनके पास एक सरल लेकिन शक्तिशाली जवाब था.
पांचवीं कक्षा तक नगरपालिका स्कूल में पढ़ाई की और फिर दारुल उलूम इस्लामिया में तीन साल तक धार्मिक शिक्षा प्राप्त की. लेकिन केवल इतनी पारंपरिक शिक्षा ही उनकी बुनियादी क्षमताओं का मुकाबला नहीं कर सकी. उन्होंने 1970 में भिवंडी और जलगांव दंगों के दौरान सामाजिक कार्य शुरू किया। तब लगभग 300 मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया था.
आज़मी ने पाया कि उनके परिवार दुःखी थे, पहला तो दंगों के कारण हुए भौतिक नुकसान और दूसरा अपने प्रियजनों की गिरफ्तारी के कारण. यह पहली बार था कि जमीयत ने ऐसे शोक संतप्त लोगों को उनके प्रियजनों को जेल से रिहा करने में मदद करने की पेशकश की. फिर, 1993 के विस्फोटों के बाद, जमीयत प्रतिनिधि के रूप में, आज़मी मुंबई में सिलसिलेवार विस्फोटों की जाँच के लिए स्थापित आयोग की सहायता की.
आयोग ने अपने निष्कर्षों में रिपोर्ट की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रदान करने के लिए जमीयत उलमा की प्रशंसा की. आज़मी ने आयोग की प्रति का उर्दू में अनुवाद किया और उसे देश के उर्दू पाठकों के लिए उपलब्ध कराया.