मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली
जश्न-ए-रेख्ता सिर्फ साहित्या, संगीत और संस्कृति से नहीं है. रंगों से भी है. वह भी खास चुनिंदा रंगों से. रंगों की भीड़ से कुछ ऐसे रंग उठाकर जश्न-ए-रेख्ता की महफिल सजाने में इस्तेमाल किए गए हैं, जिसे देखते ही लोगों पर अजीब सी कैफियत तारी हो जाती है.
इंद्रधुष में सात रंग होते हैं. जश्न-ए-रेख्ता की महफिल सजाने के लिए इससे अलग रंगों का इस्तेमाल किया गया है. बेहद गहरा पर आपस में मिक्स. जश्न-ए-रेख्ता के रंग सिंबॉलिक हैं-पीले,हरे,लाल,गुलाबी,ब्ल्यू. इन्ही रंगों को ‘उर्दू के मेले’ को सजाने में भरपूर इस्तेमाल किया जाता है.
दिल्ली के ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम के गेट नंबर तीन-चार से घुसकर जैसे ही आप सुरक्ष चेकिंग और क्यूआर कोर्ड जांच से बाहर आते हैं, कुछ खास रंग आपके स्वागत में तैयार मिलते हैं. जैसे ये रंग आप पर उंडेल दिए गए हांे. हर तरफ-तरफ वही खास रंग. रंग भी ऐसा, जो दिवाना बना दे.
आपको स्टाल, पंडाल, पेड़-पौधे, स्टेज, रास्ते पर वही खास रंग-पीला,हरा,लाल,गुलाबी,ब्ल्यू देखने को मिलेगा. कहीं गडमड यानी मिक्स. कहीं पृथक. जश्न-ए-रेख्ता का मुख्य मंच ‘महफिल-खाना को बनाने और सजाने में गहरे गुलाबी और लाल रंग का इस्तेमाल किया गया है.
सफेद और काले रंग तख्तियां लिखने के लिए इस्तेमाल किए गए हैं. वह भी इतनी खूबसूरती से कि उनके करीब जाने और फोटो खिंचवाने के लिए दिल मचल उठता है.
जश्न-ए-रेख्ता में दाखिल होने पर चारों तरफ से ‘अनसुनी आवाज’ में रंग पुकारने मिलेंगे. महफिल में पहुंचने पर इंसानी कैफियत होती-इधर जाउं या उधर. यह करूं या वो.
इनकी सुनूं या उनकी. जश्न-ए-रेख्ता की महफिल में कुछ खास रंगों को देखकर मन मचल उठता है. इन रंगों का असर ऐसा है कि बूढ़े, जवान बचे, लड़के लड़कियां सब चहकते-दमकते मिलेंगे. हर तरफ सजे-संवरे खिलखिलाते चेहरे.
जश्न-ए-रेख्ता का प्रवेश द्वारा बहुत कुशादा यानी चौड़ा है. इसके बाद करीब पांच सौ मीटर चलकर मुख्य महफिल तक पहुंचा जाता है. यह रास्ता खुश रंगांे से अटा पड़ा है.
रास्ते के उपर कपड़े के सुंदर पताकों और बांस की पतली कमानियों से बने झालर लगाए गए हैं. रात में इन्ही झालरों से बल्ब जब चमकते हैं, उसकी रोशनी आप पर पड़ती है तो कदम अपने आप ठिक जाते हैं.
फिर उंगलियां मोबाइल पर चलने लगती हैं. आप अलग-अगल कोण से तस्वीरें उतारने को मजबूर हो जाते हैं. जश्न-ए-रेख्ता में सेल्फी लेने के लिए अलग जगह मुकर्रर है. मगर सेल्फी लेने का सिलसिला जाने के इसी रास्ते से शुरू हो जाता है.
जश्न-ए-रेख्ता की महफिल की दाईं तरफ सल्फी प्वाइंट है. र्बाइंं तरफ रेख्ता वालों के बुक स्टॉल हैं. इससे चंद कदम की दूरी पर महफिल-खाना मंच है. इधर आपको कोई पेड़ नहीं मिलेगा.
बाईं तरफ इल्म-ओ-अदब का मंच बनाया गया है. आश्चर्य की बात यह है कि मंच से ज्यादा उतावली भीड़ इससे लगे पेड़ों के करबी देखने को मिलेगी. सारे पेड़ उम्दा और खास तरह के झालरों से सजाए गए हैं. यहां पहुंचने वाले हरेक नवजवान दिलों के लिए ये पेड़ सेल्फी लेने के काम आ रहे हैं.
इन पेड़ों को सजाने पर लंबा-चौड़ा खर्च नहीं किया गया है. लटकते लाल-पीले धागे से कुछ कागज के टुकड़े और फुदने लटकाए गए हैं. बांस की पतली तीलियों से बने टोकरीनुमा छोटे-छोटे झालर भी हैं.
कहीं इन्हीं बांस की तीलियों से बनी धनुषकार की कृतियां लटकाई गई हैं, जिसके आगे युवा चेहरे फोटो खिंचवाना ज्यादा पसंद करते हैं. इसके अलावा कचकड़े जैसे धातू से बने गोल्डन रंग के मेहराब भी पेड़ों से लटकाए गए हैं.
इनमें से कुछ की आकृतियां मस्जिद के गुंबद के उपरी हिस्से जैसी हैं, जबकि कुछ मंदिरांें की छोटी घंटियों जैसी.रास्ते के बीच-बीच में रोशनी के खंबे हैं. रात को इससे निकलने वाली तेज रोशनी पूरे परिसर को जग-मग रखती है. मगर जश्न-ए-रेख्ता वालों ने खंबों को भी खंबा नहीं रहने दिया.
उसके उपर से लेकर दूर तक लाल, गुलाबी, नीले और पीले रंग के कपड़ों की लड़ियां लगी हुई हैं. इनमें छोटे-छोटे कपड़ों के टुकड़े का इस्तेमाल किया गया है, जबकि मुख्य रास्ते का हिस्सा चौड़े-चौड़े कपड़ों से सजाया गया है. वही खास रंग आपको यहां के खाने-पीने के स्टॉल पर भी दिख जाएंगे.
फूड कोर्ट के ‘बिहारी चिकिन’ स्टॉल पर ‘लिट्टी-चिकन काम्बो’ खाते अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ सहरसा के मुस्तकीम और फरजाना मिले. उनसे जब इन खास रंगों के बारे में बात की गई तो बोले-इन रंगों और रोशनियां की वजह से अजीब दिलकशी सी चारों तरफ पसरी है.
बुक स्टॉलों के बीच रेख्ता वालों का एक अलग सेल्फी स्पॉट है. जिसके बीचो-बीच जश्न-ए-रेख्ता लिखा हुआ है. जामिया की अपनी सहपाठी अंजुमन रिजवी के साथ सेल्फी लेते मेरठ केअरशद कुरैशी से जब इन खास रंगों पर बात की गई तो, बोले-अच्छा ध्यान दिलाया आपने.
हम लोग कई बार आपस में पूछ चुके हैं कि यहां आने पर एक अजीब सी कशिश क्यों है. दरअसल, इन खास रंगों का ही जादू लगता है.