गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र: साढ़े 25 लाख मतदाता 46 उम्मीदवारों के भाग्य का करेंगे फैसला

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 08-05-2024
Gurugram fight between Congress and BJP
Gurugram fight between Congress and BJP

 

राकेश चौरासिया / गुरुग्राम

गुड़गांव लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में अब तक 49 प्रत्याशियों ने नामांकन पत्र दाखिल किए हैं. नौ मई को नामांकन पत्र वापस लेने की प्रकिया के बाद आखिरी फैसला हो जाएगा कि मैदान में कौन-कौन बचा है. फिलवक्त के सूरते-हाल में भाजपा के राव इंद्रजीत सिंह, कांग्रेस के राज बब्बर, इनेलो के सोहराब खान और जजपा के राहुल यादव के बीच मुकाबला तय माना जा रहा है. 

हरियाणा सरकार ने 2016 में गुड़गांव का अधिकारिक नाम परिवर्तित करके गुरुग्राम कर दिया है. इस आधार पर कि, ‘गुड़गांव’ शब्द ‘गुरूग्राम’ का अपभ्रंश है. महाभारतकालीन किवदंतियों के अनुसार गुरुग्राम के रेलवे स्टेशन के पास जो तालाब है, उसके पास गुरू द्रोणाचार्य ने पांडवों को शिक्षा प्रदान की थी. कालांतर में धर्मराज युद्धिष्ठर ने यह गांव अपने गुरू द्रोणाचार्य को दान में दे दिया था. हालांकि वर्तमान गुड़गाांव इस स्थान से लगभग डेढ़ किमी दूर स्थित है.

इस ऐतिहासिक नगर में जब डीएलएफ ने दिल्ली की आवासीय मांग पूरी करने के लिए कालोनियां बसानी शुरू कीं, उसके बाद दिल्लीवासियों के बसने के लिए यह प्राइम लोकेशन बन गया. पिछले ढाई दशकों की विकास यात्रा के बाद, यहां साफ्टवेयर और आईटी इंडस्ट्रीज की बड़े पैमाने पर स्थापना होने के बाद यह शहर विश्व मानचित्र पर सिलिकॉन वैली की तरह छा गया. आज दुनिया के लोग भारत के दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई और मुंबई के बाद गुरूग्राम और बंगलुरू नगरों को सर्वाधिक जानते हैं.

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हरियाणा के 10 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक गुरुग्राम है और यहां 25 मई को मतदान व 4 जून को मतगणना होगी. इस लोकसभा क्षेत्र में गुरूगाम जनपद के पटौदी (एससी), बादशाहपुर, गुरूगाम, सोहना और नूंह जनपद के नूंह, फिरोजपुर झिरका तथा पुन्हाना विधानसभा क्षेत्र लगते हैं.

गुरूग्राम में कुल 25लाख 46 हजार 916 मतदाता हैं, जिनमें लगभग 20 प्रतिशत आबादी मुस्लिम वोटर्स की है. सर्वाधिक मुस्लिम आबादी पारंपरिक तौर पर नूंह, फिरोजपुर झिरका तथा पुन्हाना में रहती है. यहां के तीनों विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के विधायक हैं.

यह इलाका मेवात कहलाता है और यहां के लोगों को मेव मुस्लिम कहा जाता है, जिनकी धार्मिक परंपराएं, गोत्र और पाल हिंदुओं के हूबहू हैं. इसके अलावा औद्योगिकीकरण होने के बाद देश के विभिन्न के हिस्सों से रोजगार की तलाश में आए अन्य मुस्लिमों की आबादी गुरूग्राम शहर में भी है.

2008के परिसीमन के बाद से इस लोकसभा क्षेत्र में चुनाव काफी हद तक हिंदू बनाम मुस्लिम प्रत्याशी रहा और ज्यादातर हिंदू प्रत्याशी 80प्रतिशत आबादी के कारण कामयाब हुए.

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भाजपा ने निवर्तमान सांसद राव इंद्रजीत सिंह पर ही भरोसा कायम रखते हुए उम्मीदवार बनाया है, तो दूसरी ओर अप्रत्याशित रूप से, अभिनेता से नेता बने राज बब्बर को मैदान में उतार दिया है. स्थानीय तौर पर उनकी उम्मीदवारी से कांग्रेसियों को भी झटका लगा है.

उन्हें स्थानीय चर्चाओं में बाहरी या पैराशूट उम्मीदवार बताया जा रहा है. लोग पूछ रहे हैं कि कांग्रेस को यहां से कोई उम्मीदवार ही नहीं मिला. यहां से कांग्रेस ज्यादातर मुस्लिम उम्मीदवार को खड़ा करती रही है, तो इस बार आफताब अहमद को मौका क्यों नहीं दिया गया.

इन यक्ष प्रश्नों के साथ पहली नजर में, राज बब्बर को यहां से कामयाबी के लिए बहुत ही ज्यादा मशक्कत करनी होगी. उन्हें यहां के वोटर्स का भरोसा जीतना होगा कि जीतने के बाद वे यहां से नाता नहीं तोड़ लेंगे और उनके सुख-दुख में शरीक होते रहेंगे.

भाजपा और राव इंद्रजीत सिंह की जहां तक बात है, तो सबसे पहले यह जान लेना जरूरी है कि संघ और भाजपा ने यहां जमकर बागवानी की है. उन्होंने इस इलाके के जातियों में बंटे हिंदुओं को सोशल इंजीनियरिंग के जरिए एकजुट किया है.  भाजपा और संघ ने पिछले दो दशकों में यहां रैलियां, धार्मिक सभाएं, यात्राएं और जुलूस आदि का आयोजन करके हिंदुओं को एकता का भाव प्रतिपादित किया है.

इसका नतीजा यह है कि जिस भाजपा को 2009 के चुनाव में यहां केवल 16.6प्रतिशत वोट मिले थे, वह भाजपा 2014में यहां से जीती और उसे 49प्रतिशत वोट मिले. फिर 2019में भाजपा को 60.9प्रतिशत वोट मिले. यहां भाजपा लगातार मजबूत हुई है. विश्लेषक मानते हैं कि 2019के बाद यहां भाजपा और मजबूत हुई है.

गुरूग्राम में नूंह हिंसा के बाद धु्रवीकरण तेजी से हुआ है. इसके अलावा मोदी फैक्टर का भी राव इंद्रजीत सिंह को फायदा मिलेगा. यहां तीसरे नंबर पर अहीर समुदाय के 17.5प्रतिशत, पंजाबियों के 7.6प्रतिशत, ब्राह्मणों के 4.4प्रतिशत, गुर्जरों के 4.2प्रतिशत, राजपूतों के 4.2प्रतिशत तथा बनिया समाज के 2.8प्रतिशत मतदाता हैं. इनका ज्यादातर समर्थन भाजपा के खाते में जाता दिख रहा है.

जबकि राज बब्बर को पारंपरिक कांग्रेसी वोटर्स, 20प्रतिशत मुस्लिम, अनुसूचित जाति-जनजाति के 13  प्रतिशत, जाटों के 7प्रतिशत मतदाताओं का बड़ा हिस्सा मिलने की संभावना है.

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हालांकिख् आगरा में जन्मे बब्बर हैवीवेट कैंडीडेट माने जाते हैं. वे 5बार के सांसद और उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी रह चुके हैं. किंतु राव इंद्रजीत भी राजब्बर की तरह पांच बार के सांसद हैं. वे 2098, 2004और 2009में कांग्रेस की टिकट पर जीते थे, तो 2014और 2019में भाजपा की टिकट पर जीते हैं.

इसके अलावा उनकी वरीयता ये है कि उन्हें पहले की तरह मोदी फैक्टर का फायदा मिलेगा और उन पर बाहरी होने का ठप्पा नहीं लगा है. वोटर्स को एक आशा तो है कि कोई काम होने पर उन्हें राव इंद्रजीत सिंह से संपर्क साधने में कोई दिक्कत न होगी, क्योंकि वे इस इलाके के ही हैं.

मेवात से कांग्रेस प्रत्याशियों को सर्वाधिक समर्थन मिलता रहा है. वर्ष 2009 में मुस्लिम उम्मीदवार जाकिर हुसैन अच्छे मत लेकर दूसरे स्थान पर रहे हैं, तो वर्ष 2014के चुनाव में बतौर भाजपा उम्मीदवार राव इंद्रजीत सिंह ने 6लाख 44हजार मत लेकर जाकिर हुसैन को 2लाख 74मतों से हराया था. जाकिर हुसैन को भी पौने चार लाख मत लिए थे. गौरतलब है कि उस समय मुसलमानों के वोट भी इस सीट पर करीब पौने चार ही लाख थे.

लेकिन तमाम विरोधाभाषों के बावजूद मुस्लिमों और हिंदुओं में गोत्र व पालों के कारण भाईचारा भी है. यही कारण है कि 2019के चुनाव में राव इंद्रजीत सिंह को मुस्लिम बहुल मेवात से करीब 82हजार वोट मिले थे. इस बार यह वोट इसलिए बढ़ सकता है, क्योंकि मुस्लिम समाज के कई दिग्गज नेता अब तक भाजपा से जुड़ चुके हैं और उनसे अपने प्रत्याशी के पक्ष में मतदान कराने के लिए लक्ष्य भी निर्धारित कर दिए हैं.

उधर, इनेलो के सोहराब खान अकेले मुस्लिम उम्मीदवार हैं. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि वे मुस्लिम मतदाताओं के लिए दुविधा बन सकते हैं कि मुस्लिम मतदाता पारंपरिक रूप से कांग्रेस को वोट करें या अपने मुस्लिम भाई को. दुविधा की इस स्थिति में, अब तक के चुनावों में ज्यादातर दोयम दर्जे पर रही कांग्रेस को नुकसान हो सकता है.