आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
राजधानी दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी-दिल्ली) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली का शीतकालीन वातावरण, विशेष रूप से दिसंबर और जनवरी के चरम प्रदूषण वाले महीनों के दौरान, पर्याप्त नमी और संतृप्तता के अभाव के कारण सुसंगत क्लाउड सीडिंग के लिए जलवायु विज्ञान के लिहाज से अनुपयुक्त है।
आईआईटी के वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र द्वारा जलवायु संबंधी आंकड़ों (2011-2021) को एकीकृत करके किए गए एक व्यापक विश्लेषण पर आधारित यह रिपोर्ट, ऐसे समय में आई है जब दिल्ली सरकार ने आईआईटी-कानपुर के सहयोग से बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग और मयूर विहार में दो क्लाउड-सीडिंग परीक्षण किए, लेकिन बारिश नहीं हुई।
संस्थान ने इससे पहले 2017-18 में कानपुर में सफल परीक्षण किए थे, लेकिन दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में यह इस तरह का पहला प्रयोग था।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘हालांकि दिल्ली की सर्दियों के दौरान विशिष्ट वायुमंडलीय परिस्थितियों में क्लाउड सीडिंग सैद्धांतिक रूप से संभव है, लेकिन एक सुसंगत और विश्वसनीय वायु-गुणवत्ता हस्तक्षेप के रूप में इसकी व्यावहारिक उपयोगिता सीमित है। आवश्यक वायुमंडलीय परिस्थितियां दुर्लभ हैं और अक्सर प्राकृतिक वर्षा के साथ मेल खाती हैं, जिससे संभावित सीमांत लाभ सीमित हो जाता है।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘सफल होने पर भी प्रेरित वर्षा प्रदूषण के स्तर में उछाल आने से पहले केवल एक संक्षिप्त राहत (आमतौर पर एक से तीन दिन) प्रदान कर सकती है। उच्च परिचालन लागत, एरोसोल युक्त वातावरण में निहित वैज्ञानिक अनिश्चितताएं और अंतर्निहित उत्सर्जन स्रोतों पर किसी भी प्रभाव की अनुपस्थिति को देखते हुए, दिल्ली के प्रदूषण प्रबंधन के लिए क्लाउड सीडिंग को प्राथमिक या रणनीतिक उपाय के रूप में अनुशंसित नहीं किया जा सकता है।’’
रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिक से अधिक, यह घोषित वायु-गुणवत्ता आपात स्थितियों के दौरान एक उच्च-लागत वाले, रणनीतिक हस्तक्षेप के रूप में काम कर सकता है, जो कड़े एमएसआई-आधारित उपयुक्तता मानदंडों को पूरा करने वाले पूर्वानुमान पर निर्भर करता है।
इसमें कहा गया है कि अंततः, अध्ययन इस बात पर जोर देता है कि उत्सर्जन में निरंतर कमी दिल्ली में लंबे समय से जारी वायु प्रदूषण संकट का सबसे व्यवहार्य और टिकाऊ समाधान है।
दशकीय विश्लेषण (2011-2021) इंगित करता है कि दिसंबर और जनवरी जैसे सर्दियों के मुख्य महीने सबसे गंभीर प्रदूषण प्रकरणों और सबसे शुष्क जलवायु परिस्थितियों के साथ आते हैं। ’’