दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम पुराने समय का कानून : उच्च न्यायालय

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 03-07-2025
Delhi Rent Control Act is an archaic law: High Court
Delhi Rent Control Act is an archaic law: High Court

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली 

दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम को ‘‘पुराने समय का कानून’’ करार दिया, जिसके ‘‘घोर’’ दुरुपयोग ने संपत्ति मालिकों को निराशाजनक परिस्थितियों में धकेल दिया है क्योंकि संपन्न किरायेदार ‘‘दशकों से अनुचित तरीके से परिसर पर कब्जा जमाए होते हैं.
 
न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंबानी अतिरिक्त किराया नियंत्रक (एआरसी) के 2013 के आदेशों के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे हैं. उक्त आदेशों में सदर बाजार स्थित एक संपत्ति के ब्रिटेन और दुबई स्थित मालिकों की बेदखली याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था और किरायेदारों के पक्ष में फैसला सुनाया गया था.
 
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘अदालत यह दर्ज करने के लिए बाध्य है कि किराया नियंत्रण रोस्टर का संचालन करते समय उसने पाया कि ऐसे बहुत से मामले हैं, जहां आर्थिक रूप से संपन्न किरायेदार दशकों तक अनुचित तरीके से परिसर पर कब्जा जमाए होते हैं तथा किराये के रूप में मामूली राशि का भुगतान करते हैं, जबकि इस प्रक्रिया में उनके मकान मालिकों को खराब वित्तीय स्थिति और निराशाजनक परिस्थितियों में धकेला जाता है, जो दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम नामक एक पुराने कानून के घोर दुरुपयोग के परिणामस्वरूप होता है.’
 
परिणामस्वरूप, उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को किरायेदारों को बेदखल करने की अनुमति दे दी. याचिकाकर्ताओं ने इस आधार पर परिसर को खाली कराने का अनुरोध किया था कि वे लंदन में दो रेस्तरां संचालित करते हैं और उन्हें भारत में कारोबार का विस्तार करने के लिए जगह चाहिए.
 
एआरसी ने बेदखली से इनकार करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता यहीं बसे हुए हैं और लंदन एवं दुबई में अपना कारोबार संचालित कर रहे हैं तथा उन्हें अपने ‘‘जीवनयापन’’ के लिए परिसर की आवश्यकता नहीं है.
 
इसने यह भी कहा था कि परिसर रेस्तरां चलाने के लिए बहुत छोटा है. उच्च न्यायालय ने बेदखली के आदेश को खारिज कर दिया और कहा कि ‘‘दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 14(1)(ई) के तहत बेदखली याचिका पर फैसला करते समय मकान मालिक का वित्तीय कल्याण या किरायेदार की माली हालत विचारार्थ नहीं थे.
 
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता एक पूरी तरह से विकसित, बैठने की जगह वाला रेस्तरां या भोजन पैक करने की सुविधा वाला छोटा सा रेस्तरां संचालित करने में सक्षम हैं या नहीं, यह पूरी तरह से उनका विशेषाधिकार है.