सूफी-संतों के शांति प्रयासों के बीच कर्नाटक का माहौल खराब करने की कौन कर रहा है कोशिश ?

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 30-07-2022
सूफी-संतों के शांति प्रयासों के बीच कर्नाटक का माहौल खराब करने की कोशिश
सूफी-संतों के शांति प्रयासों के बीच कर्नाटक का माहौल खराब करने की कोशिश

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली
 
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एनएसए अजीत डोभाल और विभिन्न इस्लामिक संगठनों के रहनुमा जब देश की शांति, समृद्धि और विकास के लिए कट्टरवाद के विरूद्ध कदम उठाने और गंगा-जमुनी तहजीब और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए सभी मजहब के लोगों में भाईचारगी बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. इसके उलट कर्नाटक में कुछ संगठन और कई पत्रकार ऐसे प्रयासों में पलीता लगाने में व्यस्त हैं.

हाल में बीजेपी के युवा कार्यकर्ता और दो मुस्लिम युवकों की हत्या को जिस तरह एक तरफा रंग देने की कोशिश की जा रही है, वह निश्चित ही कर्नाटक और देश के लिए शुभ संकेत नहीं.
 
इस गरमाते मामले पर पानी डालने की बजाए एक समुदाय,विशेषकर मुसलमानों को भड़काने की कोशिश की जा रही है. सोशल मीडिया पर एनआईए जांच, मारे गए भाजपा युवा कार्यकर्ता के घर मुख्यमंत्री बोमई के जाने और सरकारी मुआवजा के मुद्दे को जिस प्रकार उठाया जा रहा है.
 
उससे साबित करने की कोशिश की जा रही है कि कर्नाटक ही नहीं देश की सरकार एक समुदाय विशेष के लिए काम कर रही है.इसके विपरीत स्थिति यह है कि भाजपा युवा मोर्चा के कार्यकर्ता प्रवीण की हत्या के बाद पार्टी के विधायक एवं सांसद ने प्रदेश सरकार से एनआईए घटना की जांच की मांग उठाई थी.
 
इसके बाद ही इसपर संज्ञान लिया गया. दूसरी तरफ अब तक कर्नाटक के न तो किसी मुस्लिम संगठन ने और न ही प्रदेश के मुस्लिम विधायकों ने मुख्यमंत्री के पास प्रतिनिधिमंडल की शक्ल में जाकर मारे गए मुस्लिम नौजवानों मोहम्मद फैजल और मोहम्मद मसूद की हत्या की उच्च स्तरीय जांच की मांग उठाई है.
 
बताया गया कि इस बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय को भी अब तक कोई पत्र नहीं लिखा गया है. हद यह कि इस मुद्दे पर मंगलुरू के पीस कमेटी के मुस्लिम सदस्यों ने यह कहकर मुख्यमंत्री बोमई के बहिष्कार का ऐलान कर दिया गया कि वे कट्टरपंथियों के हाथों मारे गए युवा बीजेपी नेता प्रवीण के घर गए और मृतकों के आश्रितों को 25 लाख रुपये देने का ऐलान किया, पर कथित तौर पर हिंदूवादी संगठनों के कुछ लोगों के हाथों मारे गए दोनों मुस्लिम युवक के परिजनों से उन्हांेने न मुलाकात की और न ही मुआवजा का ऐलान किया.

चूंकि कर्नाटक में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं, इस लिए इस मामले में मुख्यमंत्री अपना परंपरागत वोट बिगड़ने की आशंका के चलते फिलहाल मुस्लिम युवकों के घर जाने का जोखिम नहीं लेना चाहते हों, पर यह सवाल अपनी जगह कायम है कि मुख्यमंत्री के पास नहीं जाने की इस्लामिक रहनुमाओं और मुस्लिम  सियासतदानों की क्या मजबूरी है ?


स्कूल में हिजाब से शुरू हुआ विवाद अब तक कई मुद्दों को लेकर कर्नाटक में तनाव चरम पर है. चिंताजनक यह है कि इस तनाव को कम करने के लिए सामाजिक स्तर उस तरह से प्रयास नहीं हो रहे हैं, जैसा कि होना चाहिए. इस मामले में मुस्लिम वर्ग भी कम दोषी नहीं है.
 
इसके अलावा तनाव को बढ़ाने में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. संगठन के कर्नाटक इकाई के महासचिव मजीद थंबे ने ट्विटर पर एक पोस्टर बनाकर शेयर किया है जिससे साबित करने की कोशिश की गई है कि मुस्लिम युवक और बीजेपी नेता प्रवीण की हत्या की जांच और बाद की कार्रवाई में ईमानदारी नहीं बरती जा रही है.
 
वैसे, यहां उल्लेखनीय है कि खुद को मुस्लिम और वंचितों का हितैषी बताने वाला यह संगठन अपने इस तरह की हरकतों के कारण पहले भी सुर्खियां बटोर चुका है.कर्नाटक के मंत्री केएस ईश्वरप्पा इसे ‘ एक वाहियात संगठन बता चुके हैं. साथ ही इस पर बैन लगाने पर विचार किए जाने की भी बात कही हैै. 
 
दरअसल,बेंगलुरु हिंसा की जांच जब आगे बढ़ी तो इस पार्टी रूपी संगठन का नाम सबसे पहले सामने आने आया.सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया ने अपनी एक वेबसाइट बना रखी है, जिसमें वो खुद को पूरे देश में फैला हुआ राजनीतिक संगठन कहती है.
 
पार्टी के उद्देश्यों में मुस्लिमों, वंचित वर्ग और अल्पसंख्यकों के हितों का ध्यान रखने की बात की गई है. ऐसा लगता है कि इस पार्टी ने दक्षिण भारत के अल्पसंख्यकों के बीच अपना प्रभाव बना लिया है.
 
न्यूज 18 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एडीपीआई के प्रमुख एम के फैजी   हैं, जो इस पार्टी के अध्यक्ष भी हैं. वो अपने फेसबुक पेज और पर्सनल फेसबुक अकाउंट पर एक्टिव रहते हैं. 
 
पिछले साल 5 नवंबर को जब अयोध्या में राम मंदिर के लिए भूमिपूजन हुआ तो उन्होंने नाराजगी भरे पोस्ट डाले थे. साथ ही चेतावनी दी थी कि ये जगह मस्जिद की है और यहां कुछ भी बन जाए, उसे ढहाकर भविष्य में मस्जिद ही बनाएंगे.
 
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया वेबसाइट पर आमतौर पर फैजी का चेहरा ही नजर आता है. वेबसाइट में उन्होंने अपने और पार्टी के बारे में जानकारी दी है. पार्टी के उद्देश्यों को देखकर लगता है कि ये पार्टी अल्पसंख्यकों के बीच पैठ बनाने के लिए बनाई गई है.
 
एसडीपीआई की वेबसाइट के अनुसार उसका मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन में है. हालांकि उसके ज्यादातर पदाधिकारी अल्पसंख्यक और दक्षिण भारतीय राज्यों के लगते हैं. पिछले 11 सालों में इस पार्टी ने लगातार दक्षिण भारतीय राज्यों में अपने कार्यक्रम भी आयोजित किए हैं.
 
एसडीपीआई का गठन 11 साल पहले 2009 में किया गया था. कुल मिलाकर ये फैजी का ही संगठन लगता है, जो इसके नेशनल पार्टी होने का दावा करता है. हालांकि उत्तर भारत में इसका नाम शायद ही किसी ने सुना हो. दक्षिण भारत के दो राज्यों में इसका आधार बढ़ रहा है.
 
ये राज्य हैं कर्नाटक और केरल. खुद को इस पार्टी का मुखिया बताने वाले फैजी केरल से ताल्लुक रखते है.फैजी की उम्र 50 साल के आसपास है. सफेद खिचड़ी बालों की इनकी फोटो फेसबुक पेज हर दूसरे-तीसरे दिन पोस्ट की जाती है
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एमके फैजी का पूरा नाम कालाचन मोइउद्दीन कुट्टी है. एसडीपीआई की वेबसाइट में अपना परिचय इस्लामिक स्कॉलर, राजनीतिक पर्यवेक्षक और पब्लिक स्पीकर के रूप में दिया है. उन्होंने खुद को भारत में जाना-माना मुस्लिम सियासी लीडर बताया है.
 
ये लिखा है कि वो देश में विभिन्न समुदायों के विकास के कार्यक्रमों में लगे हैं. मानवाधिकार के लिए काम करते हैं. जानकारी के अनुसार,फैजी केरल के जामिया नूरिया अरबिया से इस्लामिक शिक्षा में ग्रेजुएट हैं.
 
80 के दशक में मस्जिद में इमाम और धार्मिक टीचर के रूप में केरल में स्थानीय लोगों के बीच काम कर चुके हैं. एसडीपीआई की वेबसाइट कहती है कि इसकी स्थापना 21 जून 2009 को दिल्ली में हुई थी. करीब एक साल बाद चुनाव आयोग में रजिस्टर करा लिया.
 
एसडीपीआई की वेबसाइट के दावे के अनुसार, देश के हर राज्य में लाखों लोग इसके कैडर हैं. संगठन के सदस्यों की संख्या बढ़ती जा रही है. एसडीपीआई ने वेबसाइट पर संगठन का मुख्य उद्देश्य जाहिर करते हुए लिखा है, हम भूख और डर से आजादी के लिए काम करते हैं,हम साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ हैं,हम भ्रष्टाचार और रिश्वत के खिलाफ हैं,हम सांप्रदायिक राजनीति और फासिस्ट ताकतों के खिलाफ हैं, जो देश को अलग धर्म और जाति के हिसाब से बांटता है,हम सभी भारतीय नागरिकों के सामाजिक न्याय और समानता के लिए काम करते हैं, हम ऐसा वेलफेयर देश बनाना चाहते हैं, जहां सभी को स्वास्थ्य, शिक्षा और खाना मुफ्त मिलेगा.हम किसानों और श्रमिकों के विकास के लिए काम करते हैं, हम सभी तरह की सामाजिक बुराइयों के खिलाफ हैं.

इत्तेफाक की बात यह है कि शनिवार को जब दिल्ली के कंस्ट्यूशनल क्लब में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की मौजूदगी में मौजूद सूफी-संत प्रस्ताव पास कर इस्लामिक संगठन पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे थे, ऐसी ही मांग कर्नाटक में एसडीपीआई को लेकर जोर पकड़ने लगी है.