हजरत अमीर खुसरो का 720 वां उर्स संपन्न, आखिरी दिन कव्वाली से महफिल रोशन

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 01-05-2024
हजरत अमीर खुसरो का 720 वां उर्स धूमधाम से संपन्न, आखिरी दिन कव्वाली से महफिल रोशन
हजरत अमीर खुसरो का 720 वां उर्स धूमधाम से संपन्न, आखिरी दिन कव्वाली से महफिल रोशन

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

बाइस ख्वाजाओं की चौखट कहे जाने वाले दिल्ली शहर में सूफी हजरत निजामुद्दीन औलिया के बाद सबसे ज्यादा शोहरत उनके मुरीद अमीर खुसरो को छोड़ कर किसी और के हिस्से में नहीं आई. यही कारण हे कि कई सौ साल बाद भी उनकी लिखी गजलें आज भी महफिलों कि जीनत बनती है.

ऐसा कहा जाता है कि सूफी कव्वाली सुनने वाले सिर्फ सुनते ही नहीं बल्कि उसमें डूब जाते हैं. इस आध्यात्मिक प्रकार के संगीत के जनक हजरत अबुल हसन अमीर खुसरो का 720 वां उर्स मंगलवार को बड़े ही धूमधाम के साथ संपन्न हो गया.
 
उर्स में देश के कोने-कोने और दुनिया के कई देशों से अकीदत के चादर लेकर भक्त पहुंचे. पाँच दिवसीय उर्स के आखिरी दिन कुल शरीफ, विशेष दुआ मिन्हाजुल इस्लाम निजामी ने कराई, जिसमें देश व दुनिया में शांति स्थापित के लिए दुआ मांगी गई. इसके अलावा हजरत अमीर खुसरो का शजरा भी पढ़ा गया. 
 
हाजरी देने का मौका मिलता है

पाँच दिवसीय उर्स में देश भर के मशहूर कव्वालों ने पहुंच कर अमीर खुसरो की कव्वाली सुनाई. जिसमें निजामी बंधू, निजामी ब्रदर्स, सागर निजामी का ग्रुरुप, मोहम्मद अहमद रामपुरी, शम्सुद्दीन कव्वाल जयपुर आदि शामिल है. शम्सुद्दीन कव्वाल जयपुर के एक कव्वाल ने बताया कि हजरत अमीर खुसरो ने ही कव्वाली का सिलसिला शुरू किया था इसलिए हमें इस दिन कई महीनों से इंतजार रहता है, यहां हाजिरी देने का मौका मिलता है.
 
हफ्तों पहले तैयारी की रूपरेखा होती है तैयार

दरगाह के ज्वाइंट सेक्रेटरी सैयद अल्तमश निजामी ने बताया कि हजरत अमीर खुसरो का 720 वां उर्स बड़ी धूमधाम के साथ समापन हो गया. उर्स की शुरुआत कुरान ए पाक की तिलावत से हुई, लोगों में लंगर, तबर्रुक का वितरण, कव्वाली का आयोजन पांचों दिन तक रहा.
 
अल्तमश निजामी ने आगे बताया कि अमीर खुसरो का उर्स हर साल इसी तरह मनाया जाता है. हर रोज हजारो लोगों में लंगर दिया जाता है. इसके लिए हफ्तों पहले मीटिंग होती है जिसमें तैयारी को लेकर रूपरेखा तैयार की जाती है.मालूम हो कि उर्स में पाकिस्तान से भी 70 जायरीन निजामुद्दीन पहुंचे थे और चादर चढ़ाई. 
 
सितार और तबला के आविष्कार का श्रेय अमीर खुसरो

अमीर खुसरो का मूल नाम अबुल हसन यमीनुद्दीन था. उनका जन्म 1253 ई. में एटा जिले के पटियाली कस्बे में हुआ था. उनके पिता का नाम अमीर सैफुद्दीन था. वह ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान की सीमा पर मुकाम कुश (वर्तमान शहर सब्ज़) से भारत चले आए और एक भारतीय अमीर, इमाद-उल-मुल्क की बेटी से शादी की.
 
खुसरो उनकी तीसरी संतान थे. खुसरो कवि होने के साथ-साथ एक महान संगीतकार भी थे. उन्हें सितार और तबला के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है. इसके अलावा उन्होंने भारतीय और फारसी रागो को मिलाकर नये रंगों का आविष्कार किया. 
 
ये लोग रहे पेश-पेश

उर्स में पेश पेश रहने वालों में दरगाह के प्रेसिडेंट फरीद निजामी, जनरल सेक्रेटरी सैयद काशिफ अली निजामी, ज्वाइंट सेक्रेटरी सैयद अल्तमश निजामी, सैयद सादिक निजामी, सैयद गुलाम निजामी, सिब्तैन निजामी आदि के नाम शामिल हैं.