हक मेहर कितने प्रकार के होते हैं?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 27-04-2024
हक मेहर कितने प्रकार के होते हैं?
हक मेहर कितने प्रकार के होते हैं?

 

राकेश चौरासिया

इस्लामिक विवाह यानी निकाह लड़का और लड़की के बीच अनुबंध की तरह होता है. इस एग्रीमेंट में लड़का अपनी रबैतुल बैत यानी पत्नी को एक निश्चित रकम देने का लिखित वायदा करता है. हक मेहर के दो मुख्य प्रकार होते हैं.

1. मेहर-ए-मुस्सम (निश्चित मेहर)

  • यह वह राशि है जो शादी के अनुबंध में स्पष्ट रूप से निर्धारित की जाती है.
  • यह राशि पति द्वारा पत्नी को विवाह के समय या उसके बाद कभी भी दी जा सकती है.
  • मेहर-ए-मुस्सम की कोई न्यूनतम या अधिकतम सीमा नहीं होती है.
  • यह पति और पत्नी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा, सौंदर्य, और परिवार की परंपराओं आदि के आधार पर तय की जाती है.

2. मेहर-ए-मिस्ल (अनिश्चित मेहर)

  • यदि विवाह अनुबंध में मेहर की राशि स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं की गई है, तो पत्नी ‘मेहर-ए-मिस्ल’ की हकदार होती है.
  • मेहर-ए-मिस्ल का निर्धारण पत्नी की सामाजिक स्थिति, सौंदर्य, शिक्षा, पति की क्षमता, और उसके परिवार की समान सामाजिक स्थिति वाली अन्य महिलाओं को मिलने वाले मेहर के आधार पर किया जाता है.
  • यदि पति और पत्नी मेहर-ए-मिस्ल की राशि पर सहमत नहीं हो पाते हैं, तो इस मामले का फैसला काजी द्वारा किया जाता है.

मुस्लिम महिलाओं के दीगर हकूक

  • हक-ए-खर्चः पति का दायित्व है कि वह पत्नी और उसके बच्चों का भरण-पोषण करे. इसमें भोजन, कपड़े, आवास, शिक्षा, और चिकित्सा देखभाल आदि शामिल हैं.
  • हक-ए-स्कून: पत्नी को पति से उचित व्यवहार और सम्मान पाने का अधिकार है.
  • हक-ए-इद्दत: यदि पति की मृत्यु हो जाती है, तो पत्नी को ‘इद्दत’ की अवधि के लिए पति के घर में रहने का अधिकार है. इद्दत की अवधि 4 महीने और 10 दिन होती है.
  • हक-ए-मिरस: पत्नी को पति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकार है.
  • यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये हक़ सभी मुस्लिम समुदायों में समान रूप से लागू नहीं होते हैं. विभिन्न समुदायों में मेहर और अन्य हकूक से संबंधित अलग-अलग रीति-रिवाज और परंपराएं हो सकती हैं.

हक मेहर से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें

  • मेहर एक वैध ऋण है, जिसे पति अपनी पत्नी को चुकाने के लिए बाध्य है.
  • यदि पति मेहर का भुगतान करने में विफल रहता है, तो पत्नी उसे कानूनी कार्रवाई कर सकती है.
  • मेहर का त्याग करना या कम करना वैध नहीं है.
  • पत्नी अपनी इच्छानुसार मेहर का उपयोग कर सकती है.
  • मुस्लिम विवाह में मेहर एक महत्वपूर्ण अवधारणा है. यह पत्नी के अधिकारों और उसकी वित्तीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने में मदद करता है.

 

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