अमीना माजिद / नई दिल्ली
“अल्लाह मेरे रिज्क की बरकत न चली जाए, दो रोज से घर में मेहमान नहीं है.” इस शेर से पूरी दुनिया मशहूर होने वाले डॉ माजिद देवबंदी उर्दू शायरी का एक बहुत बड़ा नाम हैं, जिनकी राष्ट्रपति अवॉर्ड सहित की पुरस्कारों से नवाजों जा चुका है. उनकी अभी तक 9 किताबें आ चुकी है, जिसमें 2 नस्र की किताबें हैं, पहली किताब ख्वाजा हसन निजामी पर है, जो बीए के छात्रों को पढ़ाई जाती है और 7 शायरी की है. 2 मई को दिल्ली की गालिब अकादमी में डॉ माजिद देवबंदी की 10वीं किताब का इजरा हुआ, जो उनकी नस्र की तीसरी किताब है. जिसका शीर्षक “मेरी काविशें” हैं.
“मेरी काविशें” उर्दू अदब और शायरी से जुड़ी अहम शख्सियतों से जुड़े 32 मजमून हैं, जिनमें अल्लामा इकबाल से लेकर दाग देहलवी तक पर मजमून मौजूद हैं. किताब के इजरे के मौके पर सलमान खुशीद, मीम अफजल, एसएम खान और अखतरुल वासे जैसी शख्सियतें मौजूद थीं, जिन्होंने किताब के बारे में अपने खयालात जाहिर किए और उर्दू से अपनी दिलचस्पी के बारे में खास बाते बताईं.
पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने डॉ माजिद देवबंदी की किताब की तारीफ करते हुए कहा कि वो जब भी किसी मुशायरे में जाते हैं, तो उनकी नजरें मजीद देवबंदी साहब को ही ढूंढती हैं, क्योंकि वो उनकी शायरी को बेहद पसंद करते हैं. किताब के बारे में उन्होंने कहा कि इस किताब में उनकी जिंदगी के तजुर्बे देखने को मिलेंगे और नौजवानों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा.
उर्दू से अपनी दिलचस्पी को लेकर उन्होंने बताया कि उन्हें जब जबान को और अच्छे से सीखने का मौका मिला, तो वे उसका पूरी तरह से फायदा नहीं उठा पाए. जिन स्कूलों में उन्होंने पढ़ाई की, वहां हर जगह उर्दू नहीं थी. जो भी कुछ उन्होंने सीखा है, मजीद साहब जैसे अपने दोस्तों से सीखा है. उनके हिसाब से तालीमी निजाम में उर्दू को अहमियत मिलनी बहुत जरूरी है.
पद्मश्री प्रो. अख्तर-उल-वासे ने कहा कि माजिद जहां भी रहे, अपने आत्मविश्वास और ईमानदारी से अपनी पहचान बनाने में सफल रहे. शायरी में अल्लामा इकबाल के विचारों के प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाया है, लेकिन गद्य लेखन में भी वे कम नहीं हैं. उनका कहना है कि उर्दू जबान अपने चाहने वालों और बोलने वालों के जरिए आगे बढ़ती है. उर्दू की तरक्की के लिए जरूरी है कि उर्दू वाले, खुद उर्दू की तरफ आएं.
मुस्लिम पोलिटिकल काउंसिल की प्रेजीडेंट तस्लीम रहमानी ने पिछले 20 वर्षों के समारोहों और उनके साथ किए गए कई साहित्यिक कार्यों के बारे में कहा कि माजिद साहब में जुनून की हद तक काम करने का जुनून है, वो उन्हें सफल बनाता है. उनका कहना है कि माजिद साहब ने दाग, अल्लामा इकबाल और आज के शायरों को भी साथ लिया है और मेरी काविशें को एक दस्तावेज के रूप से देखा जाएगा.
उर्दू के मुस्तकबिल के बारे में उनका कहना है कि उर्दू को लोग पढ़ें, बोलें रोजाना के इस्तेमाल में लाएं, तो उर्दू का मुस्तकबिल बहुत रोशन है. अगर अपने दस्तखत उर्दू में करने लगें और अपने बच्चों को उर्दू सिखाएं, तो उर्दू जिंदा रहेगी.
राष्ट्रपति के पूर्व ओएसडी एसएम खान ने किताब का जिक्र करते हुए कहा कि माजिद देवबंदी की शायरी अंग्रेजी की एक किताब में इस्तेमाल की गई है और कहा कि उनकी शायरी लोगों को जोड़ने का काम करती है. उन्होंने माजिद देवबंदी के एक शेर पढ़ा “सारे जहां में मिसाल थी हमारे इत्तेहाद की, अलग-अलग हुए तो हम जरा से होके रह गए”. उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान की खूबसूरती इत्तेहाद में है. इसलिए एक साथ मिलकर चलना बहुत जरूरी है.
पूर्व सांसद मीम अफजल ने कहा कि वो पिछले तीस सालों से माजिद देवबंदी को देख रहे हैं. आज उनकी गिनती देश के सबसे मशहूर शायरों में होती है, लेकिन कभी लगा ही नहीं कि वो इतने महान हैं. गंभीरता और अपने बड़ों का आदर करने के स्वभाव ने उन्हें और ज्यादा बड़ा बना दिया है.
इस कार्यकर्म की शुरुआत आदिबा माजिद के खूबसूरत नात के साथ हुई, जिसके बाद वहां मौजूद लोगों ने किताब का इजरा किया और अपने खयालात जाहिर किए. बुक रिलीज के बाद एक मुशायरे का भी आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता तालिब रामपुरी ने की, जबकि निजामत मशहूर नाजिम मोईन शादाब ने की.
दिल्ली और बाहर से बहुत से शायरों ने इसमे हिस्सा लिए, जिसमें तालिब रामपुरी, डॉ. माजिद देवबंदी, डॉ. रहमान मसवर, गफरान अशरफी, रियाज सागर, इजाज अंसारी, मोईन शादाब, वारिस वारसी, शराफ नानपारवी, इरफान आजमी, अनवर हक शादान, इरशाद अजीज बीकानेरी, हशमत भारद्वाज शामिल रहे. कार्यक्रम में मिर्जा हमदम, सुरिंदर शजर, मिर्जा अनस बेग, अब्दुल रब हम्माद, रिजवान अमरोही, डॉ. वसीम राशिद, डॉ. सपना एहसास, रेशमा जैदी और सरिता जैन आदि मौजूद रहे.
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