आवाज-द वॉयस/ नई दिल्ली
अफगानिस्तान में जहां महिलाएं मानवाधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं. उसी देश की एक 27 वर्षीय छात्रा रजिया मुरादी देश ने एक भारतीय कॉलेज में मास्टर कार्यक्रम में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए स्वर्ण पदक जीता है. वीओए के अनुसार, उन्होंने यह पदक उन सभी अफगान महिलाओं को समर्पित किया है, जिन्हें उच्च शिक्षा से वंचित रखा गया है. अफगानिस्तान को 2021 में तालिबान ने अपने कब्जे में ले लिया था और जहां महिलाओं के लिए अपने सपनों का पीछा करना सामान्य से कहीं अधिक कठिन हो गया है.
जब वह अफगानिस्तान के बामियान इलाके में पल रही थी, तब उसका भविष्य उज्ज्वल था. उन्होंने बताया कि उन्होंने दिन में काम करते हुए और रात में कक्षाओं में भाग लेते हुए अपनी स्नातक की डिग्री हासिल की. जीवन शांतिपूर्ण और सामान्य था. उच्च शिक्षा तक महिलाओं की पूरी पहुंच थी. बहुत कुछ सीखना चाहती थीं लड़कियां. परिवार अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे.
वह दो साल पहले पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर डिग्री हासिल करने के लिए स्कॉलरशिप पर भारत आई थीं. वह उन हजारों अफगानों में से एक थीं, जिन्होंने 2001 से पिछले बीस वर्षों में भारतीय कॉलेजों में भाग लिया है. वह वापस जाना चाहती थीं और नौकरी पाने के लिए नीति निर्माण में अपनी डिग्री का उपयोग करना चाहती थीं, ताकि वह इनमें से कई युवा छात्रों की तरह अफगानिस्तान को आधुनिक बनाने में मदद कर सके.
अगस्त 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर फिर से कब्जा कर लिया, तो सब कुछ नाटकीय रूप से बदल गया. कई अन्य महिलाओं की तरह, वह इस डर से पंगु हो गई थीं कि देश उस उदास समय में वापस आ सकता है, जिससे बड़ी पीढ़ी बहुत परिचित थी.
इस महीने मुरादी ने पश्चिमी गुजरात राज्य में वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय में अपने कार्यक्रम में उच्चतम ग्रेड प्वाइंट औसत के लिए स्वर्ण पदक प्राप्त किया. यह उनके लिए अत्यधिक गर्व और गहन पीड़ा दोनों का क्षण था. उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस उपलब्धि को उन सभी महिलाओं को समर्पित करती हूं जिनके पास यह अवसर नहीं है कि मुझे पढ़ाई करनी है.’’ ‘‘और किसी समय, मेरे जैसी लड़कियां इस मौके को किसी तरह से वापस पाना चाहती हैं. यह पदक इस बात की पुष्टि है कि महिलाएं कुछ भी हासिल कर सकती हैं.’’ मुरादी का कहना है कि वह खुद को उन अफगान महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने के रूप में देखती हैं, जिनकी शिक्षा तक पहुंच नहीं है.
तालिबान ने पहले लड़कियों को माध्यमिक विद्यालयों में जाने से मना कर दिया था, जिससे लाखों लड़कियों को छठी कक्षा तक अपनी शिक्षा जारी रखने से रोका गया. दिसंबर में महिलाओं के विश्वविद्यालयों में जाने पर प्रतिबंध लगाकर तालिबान ने महिला शिक्षा को दूसरा झटका दिया.
जब से यह संगठन सत्ता में आया है, तब से कट्टरपंथी इस्लामवादियों द्वारा महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया है. महिलाओं को अब अकेले यात्रा करने, बिना पुरुष रिश्तेदार के पार्कों में जाने या सार्वजनिक स्थानों पर व्यायाम करने की अनुमति नहीं है. मुरादी जैसी अफगान महिलाओं के लिए कोई भी आशा कि तालिबान एक अधिक उदार शासन के अपने शुरुआती वादों को बनाए रखेगा, धराशायी हो गया है.
मुरादी ने कहा, ‘‘मैं अंदर से टूटी हुई महसूस कर रही हूं. 1990 के दशक में जो कुछ भी हुआ, वह दोहराया गया है. जिस उम्मीद के साथ मैं भारत आई थी, वह नष्ट हो गई. वापस जा सकूंगी और अपने परिवार से मिल सकूंगी या नहीं. मैं हर समय इन्हीं विचारों से जूझती रहती हूं.’’
जब उसका देश उथल-पुथल में था, तब उसके लिए अपने मास्टर की पढ़ाई करना मुश्किल था. उसने अपने परिवार के लिए चिंता व्यक्त की, लेकिन दावा किया कि उसने अपने संयम को बनाए रखने का प्रयास किया है, क्योंकि वह बहुत कुछ नहीं कर सकती थीं, लेकिन आभारी हैं कि वह उन कुछ अफगान महिलाओं में से एक थीं, जो अभी भी शिक्षा प्राप्त कर रही हैं.
उन्होंने यह भी कहा, ‘‘मुझे अपने तनाव का प्रबंधन करना था. हर बार जब मैंने अफगानिस्तान के बारे में सोचा, तो मैंने खुद से कहा कि यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं इस अवसर का लाभ उठाऊं, जो मेरे देश की अन्य लड़कियां अब लाभ नहीं उठा सकती हैं. इसलिए, मुझे इस पर ध्यान देना चाहिए. मेरी पढ़ाई और मेरी क्षमता का निर्माण अगर मैं भविष्य में बदलाव लाना चाहता हूं.’’
मुरादी वर्तमान में उसी कॉलेज में लोक प्रशासन में पीएचडी कर रही हैं. तालिबान के लिए अपने संदेश में, उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि तालिबान को महिलाओं को शिक्षा से वंचित करने के बारे में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. यदि वे शासन करना चाहते हैं, तो वे महिलाओं की उपेक्षा नहीं कर सकते. महिलाएँ विरोध करेंगी, और किसी बिंदु पर, वे अपने अधिकारों के लिए खड़े होकर पूछेंगी . अन्यथा, देश की आधी आबादी बेकार हो जाएगी.’’