आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
ह्यूस्टन मेथोडिस्ट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक नई रिसर्च में खुलासा किया है कि मोटापा सीधे तौर पर अल्ज़ाइमर जैसी गंभीर मस्तिष्क बीमारी को बढ़ा सकता है। अध्ययन में पाया गया है कि शरीर की चर्बी से निकलने वाले सूक्ष्म संदेशवाहक कण, जिन्हें एक्स्ट्रासेल्यूलर वेसिकल्स (Extracellular Vesicles) कहा जाता है, मस्तिष्क में हानिकारक संकेत पहुंचाकर एमिलॉयड-बी प्लाक्स के जमाव को तेज कर सकते हैं — जो अल्ज़ाइमर की मुख्य पहचान है।
यह वेसिकल्स खून और दिमाग के बीच की सुरक्षात्मक दीवार (ब्लड-ब्रेन बैरियर) को पार करने में सक्षम हैं, जिससे वे शरीर की चर्बी और मस्तिष्क के बीच खतरनाक कड़ी साबित होते हैं। यह अध्ययन “Decoding Adipose-Brain Crosstalk” शीर्षक से प्रतिष्ठित जर्नल Alzheimer’s & Dementia में 2 अक्टूबर को प्रकाशित हुआ।
अमेरिका की लगभग 40 प्रतिशत आबादी मोटापे से ग्रस्त है और 70 लाख से अधिक लोग अल्ज़ाइमर से पीड़ित हैं। अध्ययन का नेतृत्व डॉ. स्टीफन वोंग, ह्यूस्टन मेथोडिस्ट में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के चेयर ने किया। उनके साथ डॉ. ली यांग और डॉ. जियानटिंग शेंग ने शोध कार्य में प्रमुख भूमिका निभाई।
शोधकर्ताओं ने मोटे और सामान्य व्यक्तियों के शरीर से लिए गए फैट सैंपल और चूहों पर किए गए परीक्षणों में पाया कि इन वेसिकल्स में मौजूद लिपिड्स (वसा तत्व) अलग-अलग प्रकार के होते हैं। ये अंतर एमिलॉयड-बी के जमा होने की गति को प्रभावित करते हैं।
डॉ. वोंग ने कहा, “हालिया अध्ययनों ने दिखाया है कि मोटापा अमेरिका में डिमेंशिया का सबसे बड़ा परिवर्तनीय जोखिम कारक बन चुका है।”
शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि इन सूक्ष्म संदेशवाहकों के जरिए होने वाले हानिकारक संचार को रोका जाए, तो मोटापे से ग्रस्त लोगों में अल्ज़ाइमर के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है। भविष्य के अध्ययन इस बात पर केंद्रित होंगे कि दवाओं की मदद से इस प्रक्रिया को कैसे धीमा या रोका जा सकता है।