छत्तीसगढ़ की 'पद्मश्री दीदी' : शमशाद बेगम ने बदली हजारों महिलाओं की तकदीर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 06-10-2025
Padma Shri Shamshad Begum: Education, empowerment and founder of Mahila Commando
Padma Shri Shamshad Begum: Education, empowerment and founder of Mahila Commando

 

त्तीसगढ़ के छोटे से कस्बे से बालों से शुरू हुई एक साधारण महिला की यात्रा ने सैकड़ो महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया पढ़िए शमशाद बेगम पर डी चेंज मेकर्स श्रृंखला के तहत छत्तीसगढ़ की पहली विस्तृत रिपोर्ट जिसे रायपुर से लिखा है मंदाकिनी मिश्रा ने.

पद्मश्री सम्मान से सम्मानित शमशाद बेगम ने यह साबित किया कि सच्ची नीयत और सामुदायिक समावेशिता से बड़े परिवर्तन संभव हैं. शमशाद बेगम पृष्ठभूमि में एक सरल, आर्थिक रूप से सीमित परिवार से आई थीं. लेकिन माता-पिता, विशेषकर उनकी मां ने कार्य और शिक्षा के बीच संतुलन बनाते हुए छह बच्चों की पढ़ाई को प्राथमिकता दी.
यह प्रेरणा उनके सामाजिक समर्पण की बुनियाद बनी. भारत के विकास में मुस्लिम महिलाओं की योगदान में 100 महिलाओं को नामांकित किया गया, जिसमें एक नाम पद्मश्री शमशाद बेगम का भी है.
 
1990 में गुंदरदेही ब्लॉक में National Literacy Mission Programme से जुड़कर शमशाद ने महिलाओं की साक्षरता के लिए एक जनांदोलन छेड़ा.
 
मात्र छह महीनों में, 18,265 अशिक्षित महिलाओं में से लगभग 12,269 को साक्षर बनाया गया-एक अद्वितीय उपलब्धि. सिर्फ़ एक अभियान ही नहीं, उन्होंने महिला समूहों को निरंतरता दी- महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए समूहों के साथ जुड़ाव, बचत, और आर्थिक गतिविधियों की शुरुआत की. 
 
शमशाद बेगम द्वारा स्थापित 1,041 Self‑Help Groups ने सामूहिक बचत और सहकारी उद्यमों के माध्यम से लगभग ₹2 करोड़ की बचत को सक्रिय किया.
 
इन समूहों ने साबुन निर्माण, बैलगाड़ी के पहिये, किराना दुकान जैसी गतिविधियाँ भी शुरू कीं. इन प्रयासों का समर्थन स्थानीय प्रशासन एवं ग्रामीण समुदाय ने भी किया.
 
महिला भवन की नींव समुदाय की महिलाओं के लिए एक सुरक्षित स्थान और नेतृत्व केंद्र के रूप में डाली गई- एक महत्वपूर्ण पहल जो महिलाओं को संगठित और प्रेरित करने में सहायक रही.
 
ऐसे बनाया महिला कमांडो, 100 महिलाओं से हुई शुरुआत, अब 14 जिलों में वर्ष 2006 में सामाजिक कुरीतियों को दूर करने व शासन की लाभकारी योजनाओं को जन-जन तक पहुंचने सक्रिय कर्मठ स्वयं से भी महिलाओं का संगठन गांव-गांव में बनाया. 
 
उन्हें महिला कमांडो यानी Special Police Officer (SPO) का नाम दिया. इन महिलाओं ने शराबबंदी, घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, और मानव तस्करी जैसे सामाजिक बुराइयों को रोकने में सक्रिय भूमिका निभाई। साथ ही उन्हें पुलिस विभाग से जोड़कर पुलिस मित्र बनाया उन्हें सुरक्षा की प्रशिक्षण दिलवाया गया. 
 
गुंडरदेही से 100 महिलाओं से शुरुआत की गई थी. अब छत्तीसगढ़ में 14 जिलों में महिला कमांडो स्वयंसेवी के रूप में कम कर रही है. इन महिला कमांडो को शासन से कोई मानदेय नहीं मिलता ना ही हमारी संस्था को किसी प्रकार की राशि मिलती है फिर भी समाज को अपराध मुक्त नशा मुक्ति सामाजिक कुरीतियों को दूर करने महिला कमांडो अपने-अपने गांव में सेवाएं दे रही हैं. 
 
यह सेना धीरे‑धीरे बढ़ी-अब यह 30 जिलों में लगभग 15,000 से 65,000 महिलाओं का नेटवर्क बन चुकी है, जिन्हें लाल साड़ी, टोपी, सीटी और टार्च देकर गस्त के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. जागरूकता कार्यक्रम से इनसे 20% शराब बिक्री और 23% घरेलू हिंसा में कमी देखने को मिली। यह महिला कमांडो अपना ड्रेस स्वयं खरीदनी है. टॉर्च, लाठी, रजिस्टर उन्हें जन सहयोग से प्रदान किया जाता है, जिसमें कलेक्टर एसपी भी सहयोग करते हैं.
 
ऐसे जागी इच्छा, 1990 में मिला पहला प्लेटफार्म महिला सशक्तिकरण शिक्षा व समाज की सेवा की शुरुआत 1990 में दुर्ग जिला में प्रारंभ राष्ट्रीय साक्षरता मिशन से हुई. शमशाद बेगम और उनके 7 भाई बहनों की पढ़ाई बहुत मुश्किल से हुई. माता स्व. आमना बी ने परिवार से लड़कर अपने जेवर, गहने बेचकर और कपड़े सिलकर हम 7 भाई-बहनों को शिक्षित किया. उसी समय से यह पीड़ा मेरे मन में थी कि क्यों बेटियों को पढ़ने-लिखने से रोका जाता है? क्यों उन्हें आगे बढ़ने नहीं दिया जाता है. 
 
उसी समय मैंने संकल्प लिया कि मुझे कभी अवसर मिलेगा तो अवश्य महिलाओं की शिक्षा, सशक्तिकरण के लिए कार्य करूंगी. और फिर 1990 में साक्षरता अभियान में काम करने का मुझे बहुत अच्छा प्लेटफार्म मिला. इसके बाद 25 महिलाओं को घर में कक्षा लगाकर पढ़ने लगी. 
 
महिला मंडल से जुड़ी और गुंडारदेही विकासखंड की स्वयंसेवी उप संयोजक बनी. इस ब्लॉक के 163 ग्रामों में 18,000 निरक्षर थे, जिसमें 12265 महिलाएं व 6000 पुरुष निरीक्षकों को साक्षर बनाने गांव- गांव जाकर अभियान शुरू किया. कई कठिनाइयां-चुनौतियों और सभी प्रयासों से 1990 में गुंडारदेही विकासखंड की साक्षरता दर 52% थी जो बढ़कर 75% हो गई. यह मेरी बड़ी सफलता थी.
 
लखपति बन चुकी महिलाएं अब अपने परिवार को भी रोजगार से जोड़ रहीं
 
यह महिला कमांडो स्वच्छता अभियान, पर्यावरण संरक्षण, पानी बचाने, मतदाता जागरूकता, सड़क दुर्घटना रोकने की समझाइश देना, बालिका शिक्षा के लिए प्रोत्साहन करना, बाल विवाह रोकना आदि जैसे कार्य करती है. 
 
साथ ही बालिका शिक्षा प्रोत्साहन के लिए 2010 से अब तक 10,000 बालिकाओं को कॉपी, पेन, पहाड़ा, कंपास बॉक्स आदि दानदाताओं से लेकर उन्हें प्रदान करती हैं. जन भागीदारी से महिला कमांडो को गांव-गांव में सिलाई का प्रशिक्षण दिलाया जा रहा है, ताकि महिलाएं आत्मनिर्भर बन सके. इसके अलावा महिलाएं गोबर का दिया और दोना पत्तल का व्यवसाय कर लखपति दीदी बन रही हैं. साथ ही अपने घर के पुरुषों को भी रोजगार से जोड़ रही हैं.
 
पद्मश्री के अलावा ये सम्मान भी
2012 में भारत सरकार ने उनके अद्वितीय योगदान को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया. इसके अलावा उन्हें जांकी देवी बजाज पुरस्कार, भगवान महावीर पुरस्कार, नारी शक्ति सम्मान, मिनीमाता सम्मान जैसी अनेक राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय सम्मान दिए गए. 2025 में उन्हें कोसल पुत्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया, जिसमें उनके जीवन और कार्यों को दस्तावेज रूप में पेश किया गया.  
 
शमशाद बेगम आज भी सक्रिय हैं-महिला कमांडो को मार्गदर्शन, रणनीतिक सहयोग और नए जिलों में विस्तार प्रदान कर रही हैं. साथ ही Sahyogi Jankalyan Samiti और NABARD जैसे संस्थानों के माध्यम से महिलाओं को नेतृत्व कौशल, अधिकारों की जानकारी, बचाव व्यवहार और न्याय प्रक्रियाओं का प्रशिक्षण देती हैं.
 
शमशाद बेगम बोलीं-सफर आसान नहीं, लेकिन जिद थी महिलाओं को आगे करने की शमशाद बेगम बताती हैं कि मुस्लिम परिवार की महिला होने के नाते बहुत से चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा. बच्चे छोटे-छोटे थे.
 
 
लोगों के ताने सुनने पड़े, पर मैंने नजरअंदाज करते हुए अपने संकल्प को पूरा करने के लिए आगे बढ़ते चली गई. 1995 में गुंडरदेही विकासखंड की परियोजना संयोजक बनाया गया.
 
इस दौरान गांव में 12,265 में से 10265 महिलाएं साक्षर हुई और 4000 पुरुष भी साक्षर हुए. उन्हीं महिलाओं को स्वसहायता समूह से जोड़ा गया और उनकी छोटी-छोटी बचत उनके घर में काम आने लगी.
 
इससे लगभग 3500 समूह बनाकर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया गया.  उन्होंने बताया कि माता मृत्यु दर व शिशु मृत्युदर को रोकने के लिए साल 2000 में पायलट प्रोजेक्ट के माध्यम से मितानिन कार्यक्रम में 500 स्वयंसेवी मितानिनों और 20 प्रशिक्षकों का चयन स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक बनाने में सहयोग किया. इससे ये फायदा हुआ कि 80% टीकाकरण व संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला.