दिवाली ही नहीं, शरद पूर्णिमा में भी होती है लक्ष्मी पूजा, कहते हैं कोजागरा

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 05-10-2025
Lakshmi Puja is not only performed on Diwali, but also on Sharad Purnima, it is called Kojagara.
Lakshmi Puja is not only performed on Diwali, but also on Sharad Purnima, it is called Kojagara.

 

fमंजीत ठाकुर

उधर अमेरिका में ट्रंप उखड़े, दबाकर टैरिफ लगाया. भारतीयों को वीजा वगैरह में परेशान करने लगे, लगा कि हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था के पैर उखड़े. ऐसे में, भारत के नेतृत्व ने बारं-बार आत्मनिर्भर होने का मंत्र दिया है. अर्थ है तो सब है. बिना अर्थ के सब व्यर्थ है.इसलिए इस इतवार की रात शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी को पूजना जरूरी है.

लक्ष्मीपूजा! दशहरे के बाद वाली पूर्णिमा को लक्ष्मीपूजा? आपके मन में सहज प्रश्न उठेगा कि अगर लक्ष्मी पूजा शरद पूर्णिमा को, तो दिवाली की रात को किस देवी की पूजा होगी? उस दिन नहीं होगी लक्ष्मी पूजा? 

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यही हमारे हिंदुस्तान की खासियत है, जहां कोस-कोस पर पानी और हर दो कोस पर बानी बदल जाती है. शरद पूर्णिमा को भी होती है लक्ष्मी पूजा. कैसे और कहां इसके लिए इस लेख को आगे पढ़ते चलिए.

बहरहाल, इस शरद की पूनम की रात आप चाहें तो अपनी छत पर या आंगन में खड़े होकर चांद की निहारिए. आप चलेंगे तो चांद चलेगा, आप भागेंगे तो चांद साथ भागेगा, इसी को तो कविताई में कहा है किसी नेः

'चलने पर चलता है सिर पर नभ का चन्दा.
थमने पर ठिठका है पाँव मिरगछौने का.

कभी धान के खेतों में फूटती बालियों के बीच खड़े होकर चांद को निहारा है आपने? खेतिहर इलाकों में जाइए तो धान की बालियों से निकलती सुगंध से मतवाले हो जाइएगा. दूर-दूर तक छिटकी हुई चाँदनी थी और अपूर्व शीतल शान्ति. बस यों कहिए कि 'जाने किस बात पे मैं चाँदनी को भाता रहा, और बिना बात मुझे भाती रही चाँदनी.
बहरहाल, शरद पूर्णिमा में लक्ष्मी पूजन की पहली परंपरा में चर्चा मिथिला की. 

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मिथिला में नवविवाहित वर-वधू के लिए शरद पूर्णिमा का बड़ा महत्व है. चांदनी रात में गोबर से लिपे और अरिपन (अल्पना) से सजे आंगन में माता लक्ष्मी और इन्द्र के साथ कुबेर की पूजा और अतिथिय़ों का पान-मखान से सत्कार और वर-वधू की अक्ष-क्रीड़ा (जुआ खेलना) कोजागरा पर्व का विशेष आकर्षण है.

नव विवाहित जोड़ों के आनंद के लिए दोनो को कौड़ी से जुआ खेलाया जाता है. चूंकि वधू अपनी ससुराल में नई होती है, जहां वर पक्ष की स्त्रियां अधिक होती हैं, इसलिए मीठी बेइमानी कर वर को जिता भी दिया जाता है.

लक्ष्मी-पूजन के बाद नवविवाहित जोड़े पूरे टोले भर के लोगों को पान-मखान बांटते हैं. कोजागरा के भार (उपहार) के रूप में वधू के मायके से बोरों में भरकर मखाना आता है.

मखाने मिथिलांचल के पोखरों में ही होते हैं. दुनिया में और कहीं नहीं. इनके पत्ते कमल के पत्तों की तरह गोल-गोल मगर काँटेदार होते हैं. उनकी जड़ में रुद्राक्ष की तरह गोल-गोल दानों के गुच्छे होते हैं, जिन्हें आग में तपाकर उसपर लाठी बरसाई जाती है, जिससे उन दानों के भीतर से मखाना निकलकर बाहर आ जाता है. बड़ी श्रमसाध्य प्रक्रिया है, जिसे मल्लाह लोग ही पूरा कर पाते हैं.

और आज के जमाने में जब मखाना के विकास के लिए हाल ही में मखाना बोर्ड और अनुसंधान केंद्र भी बन गया है और दिल्ली-एनसीआर में मखाना दो हजार रुपए किलो तक मिलने लगा है. ऐसे में मखाना सहज ही लक्ष्मी जी का प्रतीक बन गया है. किसान भी खुश और व्यापारी भी.

बहरहाल, शरद के चंद्रमा की इस भरपूर चांदनी का मजा सिर्फ मिथिलांचल में ही नहीं लिया जाता बल्कि मध्य प्रदेश, गुजरात, बंगाल और महाराष्ट्र में भी इस दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है. इन इलाकों में खीर के पात्र को रात भर चांदनी में रखकर सबेरे खाया जाता है. कहते हैं, शरद पूर्णिमा की रात में खुले आकाश के नीचे चांदी के पात्र में खीर रखने से उसमें अमृत का अंश आ जाता है.

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असल में शरद पूर्णिमा या कोजारगी पूर्णिमा या कुआनर पूर्णिमा एक फसली उत्सव है. आसिन (आश्विन) के महीने में जब खेती-बाड़ी के सारे कामकाज खत्म हो जाते हैं, मॉनसून का बरसता दौरे-दौरा समाप्त हो जाता है, तब यह उत्सव आता है और इसे कौमुदी महोत्सव भी कहते हैं. कौमुदी का अर्थ चांदनी होता है. यह उत्सव गोपियों के साथ कृष्ण के रास का उत्सव है.

दंतकथाएं कहती हैं कि एक राजा अपने बुरे दिनों में दरिद्र हो गया और उसकी रानी ने जब कोजागरा की रात को जागकर लक्ष्मी पूजन किया तो राजा की समृद्धि लौट आई. कोजागरा की रात देवताओं के राजा इंद्र को भी पूजा जाता है.

अब कई लोगों का यह भी विश्वास है कि इन दिनों चांद धरती के ज्यादा नजदीक होता है और औषधियों के देवता चंद्र इन दिनों अपनी चांदनी में देह और आत्मा को शुद्ध करने वाले गुण भर देते हैं.

वेद कहते हैं कि चन्द्रमा का उद्भव विराट पुरुष के मन से हुआ -'चन्द्रमा मनसो जात:, चक्षो: सूर्यो अजायत (पुरुषसूक्त). चन्द्रमा और सूर्य, इन्हीं दोनो से तो सृष्टि है. चन्द्रमा हमारे जीवन को कई रूपो…

लेखक आवाज द वाॅयस के सोशल मीडिया संपादक हैं