अब खून लिए बिना मापी जाएगी ब्लड में सोडियम की मात्रा, वैज्ञानिकों ने बनाई नई तकनीक

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 08-07-2025
Now the amount of sodium in blood can be measured without taking blood, scientists have developed a new technology
Now the amount of sodium in blood can be measured without taking blood, scientists have developed a new technology

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली 

 
अब शरीर से खून निकाले बिना ही ब्लड में सोडियम की मात्रा को मापा जा सकेगा. यह संभव हुआ है एक नई तकनीक की मदद से, जिसे वैज्ञानिकों ने टेराहर्ट्ज़ रेडिएशन और ऑप्टो-अकोस्टिक डिटेक्शन को मिलाकर विकसित किया है. यह तकनीक त्वचा के आर-पार जाकर शरीर में सोडियम की स्थिति को वास्तविक समय (रीयल-टाइम) में मापने में सक्षम है, वह भी पूरी तरह से नॉन-इनवेसिव यानी बिना किसी सुई या रक्त जांच के.

क्या है ये नई तकनीक?

टेराहर्ट्ज़ रेडिएशन, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम में माइक्रोवेव और इन्फ्रारेड के बीच आता है। यह कम ऊर्जा वाला होता है, जिससे यह जैविक ऊतकों (टिशूज़) के लिए सुरक्षित होता है. इस रेडिएशन की मदद से शरीर में मौजूद सूक्ष्म संरचनात्मक बदलावों का पता लगाया जा सकता है. वैज्ञानिकों ने इसमें ऑप्टो-अकोस्टिक डिटेक्शन को जोड़कर इसकी क्षमता को और बढ़ा दिया है.
 
इस तकनीक को विकसित करने वाले चीन की तिआंजिन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता डॉ. झेन टियान के अनुसार, “हमने पहली बार टेराहर्ट्ज़ वेव्स का उपयोग कर शरीर के अंदर सोडियम आयन की पहचान की है. यह एक बड़ा कदम है, जिससे यह तकनीक क्लिनिकल उपयोग के लिए व्यावहारिक बन सकती है.”
 
लाइव माइस और इंसानों पर सफल परीक्षण

शोधकर्ताओं ने सबसे पहले इस तकनीक को चूहों (माइस) पर आजमाया। उन्होंने चूहों के कान की नसों से 30 मिनट तक सोडियम की मात्रा को मिलीसेकंड टाइमस्केल पर सफलतापूर्वक मापा। इसके बाद यह तकनीक इंसानों के ब्लड सैंपल्स और हाथों की त्वचा पर भी आजमाई गई, जहां यह हाई और लो सोडियम स्तर के बीच फर्क करने में सक्षम रही.
 
टेस्ट के दौरान वैज्ञानिकों ने त्वचा को 8 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया ताकि पानी से आने वाले ऑप्टो-अकोस्टिक सिग्नल को कम किया जा सके. हालांकि, इंसानों पर किए गए परीक्षणों में कुछ मामलों में बिना ठंडा किए भी सटीक परिणाम मिले, जिससे यह उम्मीद बढ़ी है कि भविष्य में बिना किसी विशेष कूलिंग के भी इसे इस्तेमाल किया जा सकेगा.
 
मरीजों के लिए होगा गेमचेंजर

डॉ. टियान का मानना है कि यह तकनीक खासकर उन मरीजों के लिए क्रांतिकारी होगी जो किडनी रोग, डिहाइड्रेशन, एंडोक्राइन डिसऑर्डर, या न्यूरोलॉजिकल जटिलताओं से जूझ रहे हैं. रीयल-टाइम में सोडियम स्तर की निगरानी से डॉक्टर सही समय पर इलाज कर पाएंगे और मरीजों को गंभीर जटिलताओं से बचाया जा सकेगा.
 
वैज्ञानिक अब यह खोजने में जुटे हैं कि इंसानों के शरीर में कौन-से हिस्से इस तकनीक के लिए सबसे उपयुक्त होंगे — जैसे कि मुंह के अंदर का हिस्सा, जहां कूलिंग और सिग्नल डिटेक्शन दोनों आसानी से संभव हो सके. साथ ही, वे ऐसी तकनीकें भी विकसित कर रहे हैं जिससे भविष्य में ठंडा करने की आवश्यकता ही न रहे और डायग्नोस्टिक प्रक्रिया और भी आसान बन जाए.
 
यदि इस दिशा में सफलता मिलती है, तो यह तकनीक आने वाले वर्षों में हेल्थकेयर सिस्टम को पूरी तरह बदल सकती है.