स्टॉकहोम काउंटी (स्वीडन)
एक नई स्टडी में यह सामने आया है कि बचपन में कैंसर से बचे हुए व्यक्ति, भले ही अब वयस्क हो चुके हों, उन्हें गंभीर कोविड-19 होने का खतरा सामान्य लोगों की तुलना में कहीं अधिक है – और यह खतरा कैंसर के इलाज के दशकों बाद तक बना रह सकता है। यह शोध प्रतिष्ठित करोलिंस्का इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने किया है।
मेडिकल साइंस की प्रगति के चलते अब कैंसर से पीड़ित अधिकतर बच्चों का जीवन बचाया जा सकता है, लेकिन इस अध्ययन ने स्पष्ट किया है कि इलाज समाप्त हो जाने के बाद भी स्वास्थ्य संबंधी जोखिम पूरी तरह समाप्त नहीं होते।
शोधकर्ताओं ने स्वीडन और डेनमार्क के रजिस्ट्रियों में दर्ज 13,000 से अधिक ऐसे लोगों का अध्ययन किया, जिन्हें 20 वर्ष की उम्र से पहले कैंसर हुआ था और जो महामारी की शुरुआत के समय कम से कम 20 साल के हो चुके थे। इन लोगों की तुलना उनके सगे भाई-बहनों और जनसंख्या से यादृच्छिक रूप से चुने गए समान उम्र और लिंग के लोगों से की गई।
बचपन में कैंसर झेल चुके लोग कोविड-19 से संक्रमित कम हुए,
लेकिन जब वे संक्रमित हुए, तो उनके लिए बीमारी 58% अधिक गंभीर साबित हुई।
गंभीर कोविड-19 से तात्पर्य है: अस्पताल में भर्ती होना, आईसीयू में इलाज या संक्रमण से मौत।
शोधकर्ता जेवियर लौरो, जो करोलिंस्का इंस्टीट्यूट के पर्यावरण चिकित्सा संस्थान में पोस्टडॉक्टरल रिसर्चर हैं और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक हैं, कहते हैं:
"ज़रूरी बात यह है कि इन लोगों में संक्रमण की दर भले ही कम रही हो, लेकिन जब वे बीमार पड़े, तो परिणाम कहीं ज़्यादा गंभीर थे।"
यह जोखिम उन समयों में और अधिक स्पष्ट रहा, जब वायरस के नए वैरिएंट – जैसे अल्फा और ओमिक्रॉन – तेजी से फैल रहे थे। दिलचस्प रूप से, स्वीडन में, जहाँ महामारी को लेकर अधिकतर अनुशंसाओं पर जोर था, वहाँ यह जोखिम डेनमार्क की तुलना में अधिक देखा गया, जहाँ सख्त पाबंदियाँ जल्द लागू की गईं।
जेवियर लौरो का मानना है कि इस अध्ययन से यह स्पष्ट है कि बचपन में कैंसर झेल चुके वयस्कों को भविष्य की महामारियों या स्वास्थ्य संकटों में "जोखिम समूह" माना जाना चाहिए।
इसका अर्थ है कि उन्हें टीकाकरण में प्राथमिकता, विशेष सुरक्षा या सावधानीपूर्ण निगरानी की ज़रूरत हो सकती है, खासकर तब जब संक्रमण का खतरा अधिक हो।
निष्कर्ष: यह अध्ययन उन स्वास्थ्य जोखिमों की ओर इशारा करता है, जो बचपन में गंभीर बीमारियों से गुजरने के बाद भी जीवन भर बने रह सकते हैं – और ऐसे लोगों के लिए स्वास्थ्य नीतियों में विशेष स्थान तय करना अब और भी ज़रूरी हो गया है।