नई दिल्ली
विशेषज्ञों ने यहां कहा कि दुनिया भर में कुष्ठ रोग के 53 प्रतिशत मामले भारत में हैं. उन्होंने इस रोग से प्रभावित व्यक्तियों की मदद के लिए कानूनी सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया.
कुष्ठ रोग/हैन्सन रोग माइकोबैक्टीरियम लैप्रे के कारण होने वाला एक संक्रामक रोग है, जो हाथ, पैर और शरीर के आसपास की त्वचा के क्षेत्रों में गंभीर, विकृत त्वचा के घाव और तंत्रिका क्षति का कारण बनता है.
राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित एक कार्यक्रम में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एस. शिवसुब्रमण्यम ने कहा, "दुनिया भर में कुष्ठ रोग के 53 प्रतिशत मामले भारत में हैं. भेदभाव को खत्म करने और प्रभावित व्यक्तियों की सहायता करने के लिए समुदाय आधारित पुनर्वास स्थापित करना महत्वपूर्ण है."
हालांकि कुष्ठ रोग इतना संक्रामक नहीं है, लेकिन अनुपचारित कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति के नाक और मुंह से निकलने वाली बूंदों के बार-बार संपर्क में आने से यह फैल सकता है. हालांकि, जागरूकता की कमी के कारण, इस बीमारी से काफी कलंक जुड़ा हुआ है, विशेषज्ञों ने मिथकों को तोड़ने और प्रभावित व्यक्तियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने की वकालत करके कलंक को मिटाने का आह्वान किया.
दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी) के सचिव सह दिव्यांगजनों के लिए मुख्य आयुक्त (सीसीपीडी) राजेश अग्रवाल ने कहा, "कुष्ठ रोग के कारण छुआछूत जाति-आधारित भेदभाव से भी बदतर है, क्योंकि पूर्व में व्यक्ति के अपने परिवार के सदस्य भी प्रभावित व्यक्ति से दूरी बनाए रखते हैं."
उन्होंने कहा, "कानूनी सुधार आवश्यक हैं, और मामलों का जल्द पता लगाने के लिए सतर्कता बनाए रखी जानी चाहिए," उन्होंने उपचार के बाद पुनर्वास उपायों के महत्व पर भी जोर दिया.
विशेषज्ञों ने कुष्ठ रोग से जुड़े कलंक और भेदभाव को तोड़ने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित किया.
सीसीपीडी के आयुक्त एस गोविंदराज ने कहा, "भारत में अभी भी 750 कुष्ठ कॉलोनियां हैं जो मुख्यधारा के समाज से अलग-थलग हैं." कुष्ठ रोग विशेषज्ञ डॉ. शिवकुमार ने कहा, "भारत के 700 से अधिक जिलों में से 125 जिलों में अभी भी कुष्ठ रोग के मामले काफी अधिक हैं. ये जिले 14 राज्यों में फैले हुए हैं, जिनमें छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक 24 जिले हैं." विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, भारत का लक्ष्य 2030 तक कुष्ठ रोग के मामलों को शून्य करना है.
हालांकि, सरकार का लक्ष्य एसडीजी से तीन साल पहले 2027 तक कुष्ठ मुक्त भारत बनाना है. विशेषज्ञों ने कहा कि कुष्ठ रोग से निपटने में अज्ञानता सबसे बड़ी चुनौती है. कुष्ठ रोग का समय पर पता लग जाने पर इसका इलाज सबसे आसान है और स्पष्ट किया कि यह कोई विकृति या विकलांगता नहीं है.