आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
हिंदी सिनेमा की क्लासिक फिल्मों में शुमार ‘शोले’ आज भी दर्शकों के दिलों में उतनी ही ताज़ा है, जितनी 15 अगस्त 1975 को रिलीज़ के समय थी. रमेश सिप्पी निर्देशित इस फिल्म को कालजयी बनाने में इसकी दमदार पटकथा और अविस्मरणीय डायलॉग्स का बड़ा योगदान है, जिन्हें सलिम-जावेद की जोड़ी ने लिखा था. फिल्म के जय-वीरू (अमिताभ बच्चन-धर्मेंद्र), ठाकुर (संजीव कुमार), गब्बर (अमजद खान), बसंती (हेमा मालिनी) और राधा (जया बच्चन) जैसे किरदार भारतीय सिनेमा में हमेशा के लिए अमर हो गए.
‘शोले’ इस शुक्रवार को अपना स्वर्ण जयंती वर्ष मना रही है, और इस मौके पर उन डायलॉग्स को याद करना लाज़मी है, जिन्होंने इसे अमर बना दिया.
“कितने आदमी थे?”
गब्बर सिंह का यह संवाद डकैत सरदार की निर्ममता और हुक्मरानी को दर्शाता है, जब वह अपने गुर्गों का मज़ाक उड़ाते हुए पूछता है कि वे जय और वीरू को पकड़ने में क्यों नाकाम रहे.
“तेरा क्या होगा कालिया?”
इसी सीन में गब्बर अपने दाहिने हाथ कालिया पर बंदूक तानता है और मज़ाकिया अंदाज़ में यह डायलॉग कहता है. उसके चेहरे की खुशी और गुर्गों के डर का मिश्रण इस सीन को यादगार बनाता है.
“जो डर गया, समझो मर गया”
गब्बर अपने गुर्गों के साथ रूसी रूलेट जैसा खेल खेलते हुए यह पंक्ति कहता है, और फिर निर्दयता से तीनों को गोली मार देता है.
“ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर”
ठाकुर बलदेव सिंह को गिरफ्तार करते समय गब्बर का बदले की भावना से भरा यह संवाद, फिल्म की कहानी का एक अहम मोड़ है। यह वही पल है जब गब्बर ठाकुर के हाथ काटकर अपनी दुश्मनी पूरी करता है.
“लोहा लोहे को काटता है”
ठाकुर, जय और वीरू को गब्बर से लड़ने के लिए मनाने के दौरान यह रूपक इस्तेमाल करते हैं, यह मानते हुए कि अपराधी को हराने के लिए कभी-कभी उसी की तरह सोचने वाला चाहिए.
“बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना”
वीरू का यह संवाद उसकी बहादुरी और प्रेम को दर्शाता है, जब वह गब्बर की धमकी के बावजूद बसंती को नाचने से मना करता है.
“इतना सन्नाटा क्यों है भाई?”
इमाम चाचा (ए. के. हंगल) का यह दिल दहला देने वाला डायलॉग तब आता है जब उन्हें अभी तक अपने बेटे की मौत की खबर नहीं दी गई होती। यह दृश्य फिल्म का भावनात्मक शिखर है.
“तुम्हारा नाम क्या है, बसंती?”
जय का यह हल्का-फुल्का लेकिन चुटीला संवाद बसंती की लगातार बोलने की आदत पर तंज है और फिल्म के हास्य पक्ष को मजबूत करता है.
“हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं”
असरानी द्वारा निभाया गया यह कॉमिक किरदार चार्ली चैपलिन की ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ से प्रेरित था। यह डायलॉग उनकी हास्यपूर्ण लेकिन यादगार शख्सियत को परिभाषित करता है.
“अरे ओ सांभा, कितना इनाम रखी है सरकार हम पर?”
गब्बर का यह संवाद उसके अपराधों पर गर्व और अपनी कुख्याति का आनंद लेने की प्रवृत्ति को दर्शाता है. ‘शोले’ के ये डायलॉग्स न केवल किरदारों को अमर बनाते हैं, बल्कि यह भी साबित करते हैं कि सही लेखन और अदाकारी के मेल से सिनेमा पीढ़ियों तक जीवित रह सकता है। 50 साल बाद भी ये पंक्तियां दर्शकों के ज़हन में गूंजती हैं. शायद यही सच्ची सफलता की पहचान है.