मुंबई. दिग्गज अभिनेत्री जीनत अमान ने फादर्स डे पर अपने दिवंगत पिता अमानुल्लाह खान और मां वर्धिनी सिंधिया को याद किया. उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें 'अमान' सरनेम कैसे मिला. जीनत अपने पिता की लिखी उर्दू कविताओं का अनुवाद और प्रकाशन करना चाहती हैं. जीनत ने इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर साझा की और लिखा कि कैसे उनके माता-पिता ने शादी की और कुछ साल बाद अलग हो गए.
अभिनेत्री ने लिखा, यह बहुमूल्य छवि एक फोटो स्टूडियो में ली गई थी, जब मैं छोटी सी बच्ची थी. मेरे पिता मेरे पीछे बैठे हैं, और एक रिश्तेदार सामने हैं. मेरे पिता अमानुल्लाह खान शाही घराने के थे. उनकी मां अख्तर जहां बेगम भोपाल सूबे के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान की चचेरी बहन थीं.
जीनत ने निखा, मेरे पिता को लोग अमान साहब कहा करते थे. वे आठ भाई-बहनों में से एक थे. वह भोपाल में बड़े इत्मीनान से जिंदगी गुजार रहे थे. उन्हें बेहद सुंदर माना जाता था. वह और उनके चचेरे भाई अल नासिर हिंदी सिनेमा में किस्मत आजमाने के लिए मुंबई चले आए. शहर में आयोजित एक पार्टी में अमान साहब की मुलाकात वर्धिनी सिंधिया से हुई. इसके बाद उनके बीच प्रेमालाप चला और उन्होंने जल्द ही शादी कर ली.
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अभिनेत्री ने आगे लिखा, "अप्रत्याशित रूप से इस शादी को परिवार की मंजूरी नहीं मिली, क्योंकि वह हिंदू थीं और मेरे पिता मुस्लिम परिवार से थे. एक संक्षिप्त अभिनय करियर के बाद अमन साहब लेखक बन गए. बतौर लेखक उन्हें प्रोजेक्ट मिले, उन्होंने 'मुगल-ए-आजम' और 'पाकीजा' के लिए पटकथा और संवाद लिखे. हालांकि वह एक लेखक के रूप में बेहद प्रतिभाशाली और सम्मानित थे, मुझे नहीं लगता कि उन्हें कभी भी उनका बकाया मिला."
जीनत ने लिखा, "मेरे जन्म के कुछ साल बाद मेरे माता-पिता ने अलग होने का फैसला किया. मैं अपनी मां के साथ रही और मेरे पिता बांद्रा में माउंट मैरी हिल पर बने एक बड़े बंगले में चले गए."
उन्हें याद आया कि जब वह पिता के साथ लंबी सैर पर जाते थे तो वह आइसक्रीम खिलाते थे. पिता को याद करते हुए उन्होंने लिखा, "वह मुझे कहानियां और उर्दू कविताएं सुनाते थे, जिनमें से कुछ उन्होंने विशेष रूप से मेरे लिए बनाई थीं. वह मेरी मां को और मुझे अंग्रेजी में सुंदर चिट्ठियां भी लिखते थे."
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"ये मेरे पिता की कुछ यादें हैं. उनका 41 साल की कम उम्र में ही निधन हो गया. उस समय मैं स्कूल में पढ़ती थी. काश, मुझे उनके साथ अधिक समय बिताने का मौका मिलता! उनकी कुछ चीजों में से जो मेरे दिल के करीब हैं, वे हैं उनकी उर्दू कविताएं. मैं उनकी लिखी कविताओं की किताब छपवाना चाहती हूं.
जीनत ने अखिर में लिखा, "मुझे उम्मीद है कि किसी दिन मेरे पिता की लिखी उर्दू कविताओं का अनुवाद और प्रकाशन होगा. अपने माता-पिता को याद कर हर कोई अपनी उम्र भूल जाता है, मैं भी. फादर्स डे पर मैं अपने पिता अमानुल्लाह खान यानी अमान साहब के बारे में सोच रही हूं, जिनका नाम मैंने अपने नाम में जोड़ लिया. मैंने सही किया न!!"