जामिया मिल्लिया का गणतंत्र दिवस मुशायरा क्यों है अहम ?

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 31-01-2023
जामिया मिल्लिया का गणतंत्र दिवस मुशायरा क्यों था अहम ?
जामिया मिल्लिया का गणतंत्र दिवस मुशायरा क्यों था अहम ?

 

आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली

भारत के गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 26 जनवरी  को जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय दिल्ली के इंजीनियरिंग और पॉलिटेक्निक सभागार में एक मुशायरा का आयोजन किया गया था. इसमें भारत की कई प्रमुख हिंदी और उर्दू साहित्यिक आवाजें शामिल हुईं, जिनमें प्रो अशोक चक्रधर, प्रो अहमद महफूज, दिनेश रघुवंशी, सलमा शाहीन, डॉ. अहमद नसीब खान, अलीना इतरत रिजवी, माजिद देवबंदी, शहपर रसूल, खालिद मुबशिर, खालिद महमूद, चंद्रदेव यादव, दुर्गा प्रसाद, शाहिद अंजुम, मोईन शादाब और खान एम रिजवान उल्लेखनीय रहे.

इस दौरान भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों और भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों, विविधता और एकता को याद करते हुए देशभक्ति कविताएं पढ़ी गईं. यह आयोजन ऐसे समय हुआ जब भारत के कई विश्वविद्यालय ऐसे मुद्दों पर छात्र अशांति का सामना कर रहे हैं जो छात्रों को शिक्षा के मूल लक्ष्य से विचलित करते हैं.

यह एक अच्छी तरह से उपस्थित कार्यक्रम था, जिसकी अध्यक्षता वाइस चांसलर प्रोफेसर नजमा अख्तर ने की थी. विश्वविद्यालय के इतिहास में इस पद को संभालने वाली पहली महिला प्रोफेसर अख्तर ने जामिया मिलिया को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है.

विश्वविद्यालय आज भी अपने छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने, एक सहायक और समावेशी सीख के माहौल को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहा है.जामिया मिल्लिया इस्लामिया से यह सकारात्मक संदेश आया कि एक मुखर अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय के शांतिपूर्ण और प्रगतिशील माहौल को हाईजैक करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

विश्वविद्यालय ने हमेशा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करके और जानकार और कुशल पेशेवरों को तैयार करके राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यह देश के विकास में योगदान देने वाले सूचित और सामाजिक रूप से जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए अनुसंधान भी करता है और सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देता है.

जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना 1920में दिल्ली में एक गैर-सरकारी, धर्मनिरपेक्ष विश्वविद्यालय के रूप में हुई थी. यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की प्रतिक्रिया के रूप में स्थापित किया गया था.

इसने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए युवाओं को शिक्षित और सशक्त बनाकर स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. स्वतंत्रता के बाद के युग में, जामिया समावेशी और न्यायसंगत समाज के लिए एक मॉडल के रूप में सेवा करते हुए, शिक्षा, अनुसंधान और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में उत्कृष्टता का केंद्र बना हुआ है.

जामिया मिलिया इस्लामिया ने कई प्रसिद्ध पूर्व छात्र दिए हैं जिन्होंने राजनीति, कला, मीडिया और शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. कुछ उल्लेखनीय पूर्व छात्रों में सलमान खुर्शीद, भारत के पूर्व केंद्रीय मंत्री, शाहरुख खान, बॉलीवुड अभिनेता और फिल्म निर्माता शामिल हैं.

मुकुल कुमार, एयरोस्पेस इंजीनियर और नासा के पूर्व वैज्ञानिक, सईद अख्तर मिर्जा, फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक और नफीसा अली, अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकर्ता.जामिया मिलिया इस्लामिया को हाल ही में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग एजेंसियों द्वारा भारत में शीर्ष विश्वविद्यालयों में से एक के रूप में स्थान दिया गया है.

विश्वविद्यालय में एक जीवंत छात्र राजनीतिक संस्कृति है. यह अपनी मजबूत छात्र सक्रियता और राजनीतिक जुड़ाव के लिए जाना जाता है. महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और स्थानीय मुद्दों पर संवाद को आकार देने और छात्र अधिकारों और हितों की वकालत करने में विभिन्न छात्र समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

विचारों के मुक्त आदान-प्रदान के अवसर देने के बावजूद विश्वविद्यालय परिसर के भीतर अनुशासन की संस्कृति को बढ़ावा देने में सफल रहा है. वर्तमान विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों को अपने विचार व्यक्त करने, कार्यक्रमों और अभियानों को आयोजित करने और नेतृत्व कौशल बनाने और छात्रों के बीच देशभक्ति पैदा करने के लिए एक मंच दिया है.

कवि सम्मेलन में जब दिनेश रघुवंशी ने इस दोहे को पढ़ा, अपनी मिट्टी पे अगर नाज नहीं कर सकते, जिंदगी हम तेरा आगाज नहीं कर सकते या जब माजिद देबंदी ने कहा, जिस के दिल में वतन आजाद है, हम उसे अपनी जान कहते हैं, हॉल तालियों से गूंज उठा. देश के इस सबसे महत्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थान से एकजुटता और एकता का संदेश देने के लिए आयोजित इस आयोजन की असली परिणति यही थी.