कश्मीरः ‘सिंगिंग सर’ अपने पैसे से गरीब छात्रों के कटवाते हैं बाल, करते हैं जूतों की व्यवस्था
आवाज द वॉयस /श्रीनगर
गवर्नमेंट मिडिल स्कूल, वैएंदर. एक क्लास में खचाखच भरे बच्चे शोर मचा रहे हैं. क्लास के अंदर, जुलाई की सुबह की धूप एक असामान्य हलचल पैदा कर रही थी. छात्र-छात्राएं आपस में खिलखिलाकर हंस रहे थे. तभी शिक्षक जुबैर अहमद खान कक्षा में प्रवेश करते हैं. उनके साथ एक अन्य व्यक्ति से परिचय करवाते हैं.बच्चों से जुबैर बोले-चाचा को नमस्ते कहो! आज, तुम बाल कटवाओगे.
यह सुनते ही बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं था. वे महीनों से बिना बाल कटवा रह रहे थे. दक्षिण कश्मीर के इस सुदूरवर्ती इलाके में छात्रों पर गरीबी, दुर्गमता और आर्थिक पिछड़ेपन का व्यापक प्रभाव है.
अधिकांश छात्र आदिवासी परिवारों से हैं जिनके पास छोटी-छोटी जरूरतांे के लिए भी पैसे नहीं होते. कुछ छात्रों को स्कूल पहुंचने के लिए 12 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. स्थिति ऐसी है कि वे भीषण गर्मी में भी प्लास्टिक के जूते पहनते हैं.
जुबैर अहमद खान बोले-मैं उन्हें महीनों से देख रहा था. उनके लंबे बाल उलझे और गंदे रहते थे. मैं समझ गया कि उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी भी नहीं कि बाल कटवा सकें. इसलिए मैंने अपने स्टाफ से सलाह ली और तय किया कि हम उनके बाल कटवाएंगे.
चूंकि स्कूल तराई में स्थित है, इसलिए वहां कोई नाई नहीं रहता. खान कोकरनाग शहर गए और एक नाई को काम पर रखा. वह बताते हैं- नाई को भुगतान मैं करता हूं और उसे स्कूल मैं ही लाता हूं.
वह बताते हैं-स्कूल के पास एक नाला है. वहां एक कुर्सी रखी जाती है. छात्रों को एक-एक करके वहां बुलाया जाता और बाल कटवाया जाता है.खान छात्रों को स्नान भी कराते हैं.
स्कूल में 128 बच्चे हैं. इसमें 61 लड़के और 67 लड़कियां हैं. सभी 61 लड़कों के बाल कटवाए जाते हैं.इसके बदल खान नाई को अपनी जेब से भुगतान करते हैं. वह बताते हैं-मुझे उनमें अपने बचपन दिखता है. वे बेहतर के लायक हैं. मेरे वेतन से थोड़ी सी रकम देना कोई बड़ी बात नहीं. मैं चाहता हूं कि वे समृद्ध हों.
आज भी बच्चे बाल कटवाने के बाद बेहद खुश नजर आए. छात्रों ने कहा-हर महीने हमारे कटवाते हैं. हम इसके लिए 50 रुपये नहीं दे सकते. हम चाहते हैं कि सर हर महीने बाल कटवाएं.
खान को शिक्षा विभाग का ट्रेंडसेटर माना जाता है. पिछले साल वह अपनी अनूठी गायन-शैली से इंटरनेट सनसनी बन गए थे. छात्रों को प्रेरित करने के लिए नेटिजन्स ने उन्हें सिंगिंग सर का खिताब दे दिया.
जुबैर की सबसे खास बात यह है कि वह अपने वेतन का कुछ हिस्सा छात्रों पर खर्च करते हैं ताकि वे खुद को उपेक्षित या वंचित महसूस न करें.कुछ हफ्ते पहले, उन्होंने और उनके सहयोगियों ने छात्रों के लिए 128 जूतों की व्यवस्था की.
वह कहते हैं-स्कूल में हम पांच शिक्षक हैं. हमने पैसे जमा किए और छात्रों के लिए आरामदायक चमड़े के जूते खरीदे. वे चिलचिलाती गर्मी में प्लास्टिक के जूतों का इस्तेमाल कर रहे थे. उनके माता-पिता चमड़े के स्कूल के जूते नहीं खरीद सकते.