खैराबाद की मक्का दर्जी मस्जिद: एक अदना से व्यक्ति का अनूठा प्रयास जो जमींदोज हो रहा है
भारत में जब भी ऐतिहासिक,सुंदर वास्तुकला से सुसज्जित और प्राचीन मस्जिदों का जिक्र होता है, घूम-फिर कर बात दिल्ली की जामा मस्जिद, कोलकाता की नाखुदा और हैदराबाद की मक्का मस्जिद पर आकर सिमट जाती है, जबकि ऐसा है नहीं. देश में अनेक सुंदर, ऐतिहासिक और प्राचीन मस्जिदें हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. इनके बारे में बहुत कम लिखा-पढ़ा गया है. ऐसी ही कुछ मस्जिदों से पाठकों को रू-ब-रू कराने के लिए आवाज द वॉयस के मलिक असगर हाशमी ने एक सिलसिला शुरू किया है. इसकी छठी कड़ी के रूप में आप से उत्तर प्रदेश के खैराबाद की मक्का दर्जी मस्जिद से परिचय कराया जा रहा है. इस मस्जिद में एक इमाम बाड़ा भी है.
यह नवाबी-मुगल-गॉथिक स्थापत्य शैली का बेजोड़ नमूना है. अलग बात है कि एक दर्जी के प्रयास से निर्मित इस प्राचीन की मस्जिद की किसी को सुध नहीं, इसलिए इसकी हालत बेहद जर्जर हो चुकी है.
मक्का दर्जी मस्जिद, खैराबाद
उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में समृद्ध इतिहास के चिन्ह बिखरे पड़े हैं. ऐसा ही एक ऐतिहासिक स्थल राजधानी लखनऊ से लगभग 90 किलोमीटर दूर सीतापुर में मौजूद हैं. इस ऐतिहासिक स्थल को मक्का दर्जी मस्जिद-इमाम बाड़ा के तौर पर जाना जाता है. इसका निर्माण सन 1835 में कराया गया था.
मस्जिद-इमाम बाड़ा का इतिहास
इतिहासकारों के अनुसार, ‘मक्का दर्जी, जिसे ‘मक्का जमादार’ के नाम से भी जाना जाता है, ने 1835 में मक्का दर्जी मस्जिद-इमाम बाड़ा का निर्माण कराया था.वह अवध के तत्कालीन राजा नसीरुद्दीन हैदर का करीबी दोस्त था. बताते हैं कि राजा उसके यूरोपीय कपड़े सिलने के हुनर से बेहद प्रभावित थे.
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मक्का दर्जी ने राजा नसीरुद्दीन हैदर के पांच यूरोपीय परिचितों से अंग्रेजी पोशाक निर्माण के जटिल गुण सीखे थे. बाद में वह इसमें इतना पारंगत हो गया कि नसीरुद्दीन हैदर की जरूरतों के हिसाब से उनके अद्वितीय पोशाक डिजाइन करने और मनचाहा चार्ज करने लगा.
बताते हैं कि सम्राट से घनिष्ठ संबंध होने के कारण उन्होंने उसे इस मस्जिद-इमामबाड़े के निर्माण केे लिए बड़ी राशि मुहैया कराई.इसके संयोजन और नवाबी-मुगल-गॉथिक स्थापत्य शैली के चलते कुछ इतिहासकार मक्का दर्जी मस्जिद-इमामबाड़ा को शानदार स्मारकों में से एक मानते हैं. हालांकि जर्जर हो चुकी इस इमारत को आज भी देखने बड़ी संख्या में लोग आते हैं.
अनदेखी से हुई इमारत जर्जर
वर्तमान में इमारत जर्जर हालत में हैं. इसके कई हिस्से पर लगभग 200 अतिक्रमणकारियों ने कब्जा कर रखा है. शहर के इतिहासकारों के अनुसार, इस जर्जर इमारत को संरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है. यह पूर्व अवध के इतिहास के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है.
मगर रख-रखाव के अभाव में अपनी नक्कशियों और इतिहास समेटे खैराबाद की मक्का दर्जी मस्जिद- इमामबाड़ा का गेट जमींदोज हो चुका है. स्थानीय निकाय ने इसे यह कहकर गिरा दिया कि इमारत का जर्जर हिस्सा कभी भी गिरकर बड़े हादसे में बदल सकता है.
हालांकि, इलाके के समाजसेवी नदीम हसन कहते हैं, गेट उतना कमजोर नहीं था, जैसा कि बताया जा रहा है. यदि वास्तव मंे कमजोर था तो इसके अलावा मस्जिद के अंदर आने जाने के लिए साइड से निकलने का रास्ता बनाया जा सकता था.
गेट काफी चौड़ा था और इसे वक्फ बोर्ड के जरिए रिपेयर भी कराया जा सकता था. इसे गिराने की कतई जरूरत नहीं थी. मस्जिद के इमाम ने बताया कि इसकी जगह दूसरा दरवाजा बनवाया जा रहा है.स्थानीय लोगों का कहना है कि यह ऐतिहासिक धरोहर सुन्नी वक्फ बोर्ड की है, लेकिन इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है.
खैराबाद में भूल भुलैया भी
बुजुर्ग बताते हैं कि राजा नसीरूद्दीन हैदर ने अपनी शेरवानी व टोपी की बेहतरीन सिलाई से खुश होकर मक्का दर्जी को मस्जिद-इमामबाड़ा बनवाने मंे मदद तो की ही एक भूलभुलैया का निर्माण भी कराया.
यह भूलभुलैया अपनी खूबसूरती के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है. इस भूल भुलैया की तुलना लखनऊ की भूल भुलैया से की जाती है. इसपर फिलहाल कुछ लोगों का कब्जा है. इसकी बेशकीमती जमीन हथियाने की साजिश चल रही है.