लोहिया की विरासत के लिए अखिलेश, सुब्रत और इमरान में होगी दिलचस्प फाइट

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 25-04-2024
 Kannauj election
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राकेश चौरासिया 

सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के मैदान में आ जाने से, इत्र नगरी कन्नौज एक बार फिर हॉट सीट बन गई है. सपा के इस दुर्ग को 2019 में भेदने वाले भाजपा के सांसद सुब्रत पाठक डबल धमाका करने के उत्साह में हैं. तो, बसपा के इमरान बिन जफर मुस्लिम और यादव (एम-वाई) समीकरण में सेंध लगाने के लिए पूरा जोर लगाने वाले हैं.

कन्नौज में बलुआ पत्थर की मेहराबों, गुबंदों और वक्त के थपेड़ों से जूझतीं प्राचीरों में, छठी शताब्दी के हर्षवर्द्धन साम्राज्य के वैभव की स्मृतियां झांकती हैं. अब यह क्षेत्र अपने खास किस्म के इत्र के लिए जाना जाता है. फ्रांस के प्रोवेंस क्षेत्र में ग्रास इत्र से भी दो शताब्दी पहले, कन्नौज में इत्र का कारोबार शुरू हो चुका था. कन्नौज का नाम सुनते ही मन महकने लगता है. पिछले 400 सालों से कन्नौज की खुशबू सुदूर अरब देशों और यूरोप में भी तहलका मचा रही हैं, जहां आज भी देघ-भपका की प्राचीन तकनीक से ताम्र पात्रों में इत्र बनाए जाते हैं.

सियासी तौर पर भी यह लोकसभा क्षेत्र महत्वपूर्ण रहा है. इस सीट का 1967 में राम मनोहर लोहिया और 1984 में शीला दीक्षित सरीखे कद्दावर नेताओं ने प्रतिनिधित्व किया है. यहां 1996 में पहली बार भाजपा के चंद्र भूषण सिंह ने जीत हासिल की थी. 1999 में जब मुलायम सिंह यादव ने इस सीट को हालिस किया, तो उसके यह सीट सपा के लिए दूसरी ‘सैफई’ बन गई.

कन्नौज में कुल 18 लाख मतदाता है. यहां 2.5 लाख मुस्लिम और 2.4 यादव मतदाता हैं और इस सीट पर एम-वाई का मजबूत समीकरण, हमेशा सपा की ताकत साबित हुआ है. ब्राह्मण 15 प्रतिशत, राजपतू 10 प्रतिशत हैं. ओबीस और दलित भी खासी संख्या में हैं.

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कन्नौज में मुलायम सिंह यादव के आने के बाद उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत कायम रही. 2000 के बाद अखिलेश और 2012 के बाद यहां से उनकी पत्नी डिंपल जीतती रहीं. 1998 से 2014 के बीच, 16 साल के अंतराल में सपा ने यहां सात आम चुनाव और दो उपचुनाव जीते हैं. 

अखिलेश यादव पहली बार साल 2000 में कन्नौज से जीते थे. फिर वे 2004 और 2009 में भी इसी सीट से सांसद रहे. जब अखिलेश उप्र के सीमए बने, तो उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया था और 2012 के उप चुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल निर्विरोध चुनी गई थीं. डिंपल 2014 का आम चुनाव भी जीतीं.

किंतु मोदी की आंधी में, भाजपा के सुब्रत पाठक ने 2019 की एक क्लोज फाइट में डिंपल से यह सीट छीन ली थी. इस सीट पर 2019 में मोदी फैक्टर ने धमाल कर दिया. इसके अलावा जातीय धु्रवीकरण भी हुआ. 2017 में सरकार चले जाने के बाद अखिलेश की पकड़ कमजोर हो गई, तो ब्राह्मणों ने निर्भय होकर सुब्रत पाठक को आशीर्वाद दिया और उन्हें ओबीसबी का भी साथ मिला. दलितों और मुस्लिम वोटरों में भी सेंध लगी.

इस बार, सपा ने पहले यहां से लालू प्रसाद यादव के दामाद और अखिलेश यादव के भतीजे तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार बनाया था. अचानक सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने घोषणा कर दी कि अखिलेश यादव ही कन्नौज से उम्मीदवार होंगे. 25 अप्रैल को उन्होंने यहां से नामांकन पत्र भी दाखिल कर दिया है. सूत्रों का कहना है कि सपा को मौजूदा हालात में तेज प्रताप यादव के यहां से लड़ने में खतरा नजर आ रहा था. इसलिए अखिलेश खुद मैदान में आ गए.

अखिलेश यादव का कहना है कि इस बार भाजपा इतिहास बन जाएगी. कन्नौज ने बदलाव के लिए कमर कस ली है.

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उनका मुकाबला सुब्रत पाठक से होगा, जो पक्के कन्नौजिया हैं. उनका जन्म कन्नौज में ही हुआ. वे यहां भाजपा के अध्यक्ष भी रहे. पहली बार भाजपा ने उन्हें 2009 में आजमाया, लेकिन उन्हें अखिलेश ने हरा दिया. भाजपा ने उन्हें 2014 में फिर टिकट दी, लेकिन इस इस डिंपल ने उन्हें मात दे दी. मगर भाजपा का उन पर भरोसा बरकरार रहा और 2019 के चुनाव में सुब्रत पाठक ने डिंपल को हराकर यह सीट सपा के जबड़े से छीन ली.

सुब्रत पाठक का कहना है कि वह इस बार अखिलेश यादव की सांप्रदायिक राजनीति को हमेशा के लिए खत्म कर देंगे. कन्नौज को इतिहास रचने की आदत है और 4 जून को कन्नौज नया इतिहास लिखेगा.

उधर, बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी ने मुकाबला रोचक बना दिया है. पार्टी की नेता मायावती ने पहले घोषित प्रत्याशी अकील अहमद उर्फ पट्टा का टिकट काट दिया है, क्योंकि पार्टी कार्यकर्ताओं ने पट्टा की अखिलेश से नजदीकियों को आधार बनाकर मुखालिफत शुरू कर दी थी. अब बसपा ने इमरान बिन जफर को खड़ा किया है, जो मुस्लिम और दलित मतों को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाएंगे और अखिलेश के एम-वाई समीकरण को नुकसान हो सकता है.

लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में 13 मई को कन्नौज सीट पर वोटिंग होगी. तब तक यहां परिदृश्य में काफी बदलाव देखने को मिलेंगे. कुल मिलाकर इस बार यहां अनोखा संघर्ष देखने को मिलेगा. जाहिर है कि अखिलेश यादव हैवीवेट कैंडीडेट हैं. उधर, मोदी फैक्टर और मजबूत हुआ है और अखिलेश को उनके गढ़ में ही घेरने के लिए भाजपा, सुब्रत पाठक के लिए जी-जान लगाने का इरादा कर चुकी है. बसपा के इमरान भी सपा के वोट बैंक में सेंधमारी करेंगे. इसलिए इस सीट पर पेच फंस सकता है.