अयोध्या और हिंदू-मुस्लिम एकताः एकसाथ बाबा रामचरण दास और अमीर अली को फांसी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 16-01-2024
Hindu-Muslim fight against Britishers
Hindu-Muslim fight against Britishers

 

साकिब सलीम

अमृतलाल नागर ने अपनी पुस्तक ‘गदर के फूल’ में इस बात का उल्लेख किया है, ‘‘बाबा रामचरण दास और अमीर अली ने मुसलमानों को अयोध्या में राम जन्मस्थान हिंदुओं को सौंपने के लिए राजी किया था. इस घटनाक्रम ने ब्रिटिश सरकार के ‘फूट डालो और राज करो’ के मंसूबों को विफल कर दिया.’’

नागर एक प्रमुख हिंदी लेखक थे, जिन्होंने उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में 1857 का वृतांत लिखा था. गदर के फूल नामक लेख, राष्ट्रीय स्वतंत्रता के प्रथम युद्ध के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर 1957 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रकाशित किया गया था. विचार यह था कि औपनिवेशिक लेखकों और इतिहासकारों द्वारा खामोश कर दी गई कहानियों को सामने लाने के लिए लखनऊ से सटे क्षेत्र से ‘मौखिक इतिहास’ इकट्ठा किया जाए.

एक प्रतिबद्ध मार्क्सवादी, नागर ने इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (आईपीटीए) और इंडो-सोवियत कल्चरल सोसाइटी में कई पदों पर काम किया. उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. जब उन्हें 1857 में शोध करने का अवसर मिला, तो नागर ने जानना चाहा कि राम जन्मस्थान और बाबरी मस्जिद के बीच विवाद होने के बावजूद हिंदू और मुस्लिमएकजुट ताकत के रूप में कैसे लड़े.

अपने शोध के दौरान उन्हें पता चला कि 1857 में मिर्जा इलाही बख्श, जो कि एक मुगल राजकुमार था, फैजाबाद में बहादुर शाह जफर और अन्य क्रांतिकारियों के खिलाफ लोगों को भड़काने की कोशिश कर रहा था. एक दिन जब वह शुक्रवार की नमाज के दौरान लोगों से अंग्रेजों का समर्थन करने के लिए कह रहे थे, तो अच्छन खान खड़े हुए और बोले, “प्रिय हमवतन लोगों, मिर्जा साहब गद्दार हो गए हैं. वह इस देश को अंग्रेजों को बेचना चाहता है.”

मस्जिद में मौजूद लोगों ने हमला करके मिर्जा को बाहर निकाल दिया. इसके बाद एक अन्य नेता अमीर अली खड़े हुए और अपील की, “प्रिय भाइयों, बहादुर हिंदू हमारे लिए लड़ रहे हैं. इस कर्ज को चुकाने और उनके दिलों में जगह पाने के लिए हमें बाबरी मस्जिद, जिसे वे श्री राम जन्म भूमि कहते हैं, हिंदुओं को लौटा देनी चाहिए. इससे भारत में हिंदू मुस्लिम एकता की जड़ें इतनी गहरी हो जाएंगी कि कोई भी यूरोपीय इसे उखाड़ नहीं सकेगा.”

मस्जिद में मौजूद हर व्यक्ति इस बात से सहमत था. हिंदू और मुसलमानों ने अंग्रेजों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी. हनुमान गढ़ी के प्रमुख बाबा रामचरण दास और अमीर अली के बीच समझौते ने औपनिवेशिक सरकार को निराश कर दिया.

जब क्रान्तिकारी पराजित हो गये, तो उन्हें विशेष दण्ड दिये गये. अच्छन खां और शंभू प्रसाद शुक्ल का सरेआम धारदार चाकू से सिर काट दिया गया. यह बताने के लिए कि हिंदू-मुस्लिम मित्रता से कैसे निपटा जाएगा, उनके सिर और भी क्षत-विक्षत कर दिए गए.

18 मार्च 1858 को बाबा रामचरण दास और अमीर अली को पकड़ लिया गया और कुबेर टीला के एक इमली के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया गया. भारतीयों ने इस पेड़ पर श्रद्धांजलि अर्पित करना शुरू कर दिया, जो 1935 में बंद हुआ, जब ब्रिटिश सरकार ने पेड़ को काट दिया और अयोध्या में इस हिंदू-मुस्लिम एकता की स्मृति को मिटा दिया.

 

ये भी पढ़ें :  हिंदुस्तानी गायिकी के रत्न थे उस्ताद राशिद खान