हरजिंदर
हेरात और कंधार को जीतनेके बाद अब नादिर शाह का अगला निशाना था काबुल. काबुल वह जगह थीजहां से उस समय मुगल साम्राज्य की सरहद शुरू होती थी जो पेशावर होते हुए भारत तकआती थी. नादिर शाह के आते-आते मुगल साम्राज्य काफीकमजोर हो चुका था.
अब उसका वह रुतबाकहीं नहीं था जो औरंगजेब के जमाने में होता था. हालांकि यह भीसच है कि इस पूरे इलाके पर तब भी मुगल साम्राज्य का ही सिक्का चल रहा था. उसकी बागडोर मुहम्मद शाह के हाथ में थी.नादिर शाह ने थोड़ी सीकोशिश से काबुल और पेशावर से लेकर सिंधु नदी तक का हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया.
इस हार से मुहम्मद शाह ने कोई सबक नहीं लिया.न ही किसी बड़े हमले के लिए अपनी सेना को तैयार किया. यही वजह है कि नादिर शाह जब सिंधु नदी पार कर भारत मेंघुसा तो उसे कहीं बड़े प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा.
उसकी सेना लगातार बढ़ती हुई करनाल तक पहंुच गई.करनाल में मुगल सेनायुद्ध के लिए मोर्चा बांध कर खड़ी थी. वह नादिर की फौजके सामने ज्यादा टिक नहीं सकी. मैदान हाथ सेनिकलता देख कर मुहम्मद शाह ने समझौते की कोशिश शुरू कर दी. समझौते की बातचीत भी शुरू हुई, लेकिन नादिरशाह के लिए इसका कोई खास महत्व नहीं था.
जब उसका धैर्य जवाब दे गया तो उसने अपनी सेना की टुकड़ियोंको निर्देश दिया कि वे दिल्ली पहंुचे और वहां उसके भव्य स्वागत की तैयारी करें.दिल्ली पहंुच कर इनटुकड़ियों ने अन्य तैयारियों के अलावा नादिर शाह के नाम के सिक्के ढलवाए जिन परउसके लिए लिखा था - शहंशाहों का शहंशाह.
दिल्ली मेंप्रवेश के लिए नादिरशाह ने नवरोज का दिन चुना. यानी वह दिन जबपारसी नया साल शुरू होता है, उस समय तक ईरानीकैलेंडर का यह एक महत्वपूर्ण दिन हुआ करता था.हालांकि तैयारियों केअनुरूप ही नादिर शाह का भव्य स्वागत हुआ लेकिन दिल्ली के हालात उस समय तक काफीखराब हो चुके थे.
बाजार में भयानक मंदी थी.अनाज की कीमतें आसमान पर पहुंच चुकी थीं. नदिर शाह ने व्यापारियों के लिए आदेश जारी किया कि वेसस्ते दामों पर अनाज बेचें लेकिन व्यापारी इसके लिए तैयार नहीं थे. इसके बाद नादिर ने अपनी सेना को आदेश दिया कि सैनिक अनाजके सभी भंडारों पर कब्जा कर लें.
इसके विरोध मेंव्यापारी सड़कों पर आ गए. इस के साथ पूरे शहर में अफरा-तफरी मच गई, लूटपाट और दंगे शुरू हो गए.यह खबर जब नादिर शाह तकपहंुची तो वह हालात का जायजा लेने के लिए चांदनी चैक की सड़कों पर निकला.
उसकी सवारी अभी वहां पहुंची ही थी कि तभी पास की किसीइमारत से उस पर गोली चलाई गई. नदिर शाह तोबाल-बाल बच गया लेकिन उसका एक अंगरक्षक वहीं मारा गया. अचानक हुए इस हमले से नादिर शाह का पारा सातवें आसमान परपहुंच गया.
वह रौशन उद्दौला मस्जिदकी छत पर चढ़ गया और उसने वहीं से अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे अपनी तलवारेंनिकाल लें और किसी को भी न बख्शें.अगले छह घंटे तक उसके फौजने दिल्ली में भयानक नरसंहार किया.
आदमियों,औरतों और बच्चों किसी को भी नहीं छोड़ा गया. घर और दुकानें लूट ली गईं. मरने वालों कीसंख्या तीस हजार से ज्यादा बताई जाती है. लाशों को वहींसड़कों पर सड़ने के लिए छोड़ दिया गया. इस भयावह दिन नेभारत की भाषाओं को अत्याचार के लिए एक नया शब्द दिया- नादिरशाही.
नादिर शाह भारत में रहनेया शासन करने के लिए नहीं आया था. उसके लौटने कावक्त आया तो उसने मुगल साम्राज्य का सारा खजाना अपने कब्जे में ले लिया. वह अपने साथ मुगल साम्राज्य का खास मयूर सिंहासन यानी तख्तए ताउस भी ले गया और कोहिनूर हीरा भी- दिल्ली की सत्ताउसने मुहम्मद शाह के पास ही रहने दी.
दिल्ली लुट चुकी थी औरखुद बादशाह भी. मुहम्मद शाह को आगेसरकार चलाने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी से कर्ज लेना पड़ा। भारत के इतिहास में बड़ाबदलाव शुरू हो चुका था.कहा जाता है कि भारत मेंजो हुआ वह नादिर शाह के सर पर चढ़ कर बोलने लगा.
फिर वह लगातारक्रूर होता गया. नादिर शाह ने भले हीईरान की विजय पताका को कईं देशों में फहराया, लेकिन उसे कभीअच्छा शासन या प्रशासन नहीं दिया. लगातार युद्ध काखर्चा उठाते-उठाते उसकी अर्थव्यवस्था बुरी तरह टूट गई.1747 में कुर्दविद्रोहियों को सजा देने के लिए नादिरशाह जब खोरसान पहुंचा तो उसके अपने ही लोगोंने उसकी हत्या कर दी.
उसकी हत्या के बाद उसकेभतीजे अली क्युली को बादशाह बनाया गया लेकिन इसके साथ ही उनके पूरे परिवार मेंसत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो गया. इस संघर्ष काफायदा उठाते हुए ज्यादातर इलाकाई सिपहसालारों ने अपने-अपने इलाके को आजाद घोषित करदिया.
नोट: यह लेखक के अपनेविचार हैं ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )