अफगानिस्ताननामा : ईरान को मिला एक शाह जिसके आदर्श थे चंगेज और तैमूर

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 27-11-2021
अफगानिस्ताननामा : नादिर खोरसान
अफगानिस्ताननामा : नादिर खोरसान

 

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नादिर खोरसान के एक कबीले का लड़ाका था.इस कबीले के लोग ईरान की सेना में हमेशा से ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे थे,लेकिन अपनी काबलियत से नादिर जिस उंचाई तक पहंुचा इसके पहले कोई नहीं पहंुच सका था.

 ईरान को होटक वंश से मुक्त कराने के बाद तो वह रातो-रात नायक बन गया था.नादिर यहीं नहीं रुका.ईरान का सफविद साम्राज्य उस समय तक कमजोर हो चुका था.इस का फायदा उठाते हुए रूस और तुर्की के ओटोमन साम्राज्य ने उसके कईं हिस्सों पर कब्जा जमा लिया था.होटक वंश को मात देने के बाद वह इन हिस्सों की ओर बढ़ा और ओटोमन और रूस दोनों को ही इन इलाकों से खदेड़ दिया.

हालांकि तब तक ईरान की सत्ता सफविद साम्राज्य के हाथ में ही थी.इसी वंश के नौजवान अब्बास को ही उस समय तक शाह माना जाता था.लेकिन सबको मात देने के बाद नादिर ने खुद को शाह बनाने की ठान ली थी.

इसके लिए उसने सेना के बाकी सारे सिपहसालारों की सहमति भी ले ली.इनमें बहुत सारे उसके पक्ष में थे और बाकी कईं ने नादिर का समर्थन सिर्फ इसलिए किया क्योंकि वे उसके गुस्से का अर्थ जानते थे.उस समय तक नादिर अपने विरोधियों का पूरी निर्दयता से सफाया करने के लिए मशहूर हो चुका था.

साल 1736 के वसंत में उसकी ताजपोशी कर दी गई और वह नादिर शाह कहलाया.यह भी कहा जाता है कि उसने अपनी ताजपोशी की तारीख ज्योतिषियों की सलाह से तय की थी.अब ईरान में सफविद साम्राज्य का अंत हो चुका था.नादिर अफशर वंश का था इसलिए उसने अपने साम्राज्य को अफशर साम्राज्य भी कहा है.

अब ईरान की सत्ता पर एक ऐसा शख्स काबिज हो चुका था जिसके आदर्श चंगेज खान और तैमूर थे.इतिहास के पन्ने पलटें तो कई मौकों पर वह इन दोनों की नकल करता हुआ भी दिखाई देता है.बाद में वह उन्हीं दोनों की तरह ही क्रूर भी साबित हुआ.ताजपोशी से पहले उसने अपने साथी सिपहसालारों की जो बैठक की उसे क्वारोलतई कहा गया.

क्वारोलतई की परंपरा चंगेज खान ने शुरू की थी और तैमूर ने भी उसका अनुसरण किया.यह एक तरह की सिपहसालारों की परिषद थी जिसमें युद्ध संबंधी महत्वपूर्ण फैसले किए जाते थे.

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ईरान को होटक वंश से मुक्त कराने के बाद तो वह रातो-रात नायक बन गया 

18 वी सदी का यह समय दुनिया के इतिहास का वह महत्वपूर्ण मोड़ था जब पूर्व और पश्चिम दो अलग-अलग दिशाओं में चलने लग पड़े थे.हालांकि तब यूरोप के देशों में भी युद्ध हो रहे थे.सत्ताएं भी बदल रहीं थीं.वहां व्यक्ति के अधिकारों की अवधारणाएं विकसित होने लगीं थीं.

आम लोगों ने खुद को इस तरह से संगठित करना शुरू कर दिया था कि साम्राज्यों को एक हद से ज्यादा अत्याचार करने से रोका जा सके। लेकिन पूर्व के इस हिस्से में अभी भी तलवार की ताकत का ही बोलबाला था.

चंगेज और तैमूर की तरह ही नादिर सिर्फ एक देश से ही संतुष्ट होने वाला नहीं था, उसका इरादा भी दुनिया के एक बड़े हिस्से पर राज करने का था और एक साल के भीतर ही उसने यह शुरू भी कर दिया.

सबसे पहला हमला कंधार पर हुआ। वहां होटक साम्राज्य के अंतिम शासक हुसैन होटक का राज था.हुसैन को मात देने में नादिर शाह को बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.पूरे एक दशक बाद कंधार फिर से ईरान के किसी शाह के कब्जे में था.जल्द ही हेरात भी उसके कब्जे में आ गया और फिर पूरा अफगानिस्तान भी.

नादिर शाह को अभी और बहुत आगे जाना था.उसने अपना विजय अभियान अफगानिस्तान से आगे भी जारी रखा.कुछ ही समय में उसका साम्राज्य उन सभी इलाकों में फैल गया जहां आज आर्मीनिया अजरबैजान, ज्यार्जिया, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, उजबेकिस्तान, बहरीन और ओमान जैसे देश हैं.

लेकिन नादिर को जो सबसे महत्वपूर्ण चीज अफगानिस्तान से मिली वह बिलकुल अलग थी.होटक साम्राज्य के दौरान कंधार के इलाके में जिस कबीले के लोगों को सबसे ज्यादा दबाया गया वह था अब्दाली कबीला.जिसे अब दुर्रानी कबीला भी कहा जाता है.जब नदिर शाह ने कंधार पर हमला बोला तो उसे सबसे बड़ी मदद इसी अब्दाली कबीले की मिली.

नादिर शाह ने इसी अब्दाली कबीले की सैन्य क्षमताओं को पहचाना और इसके लोगों को अपनी सेना में महत्वपूर्ण स्थान दिया.यह भी कहा जाता है कि नादिर शाह की निजी सुरक्षा में जो लोग लगाए गए थे वे सभी अब्दाली कबीले के ही थे.

अफगानिस्तान और उसके आस पास का सारा इलाका जीत लेने के बाद नादिर शाह ने अपने कदम भारत की ओर बढ़ाने का फैसला किया.

नोट: यह लेखक के अपने विचार हैं ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

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