जीवन की राह में आने वाली कठिनाइयाँ हर व्यक्ति को परखती हैं। कुछ लोग इनसे टूट जाते हैं, तो कुछ इन्हीं विपरीत परिस्थितियों से प्रेरणा लेकर समाज के लिए आशा की किरण बन जाते हैं। गुरुग्राम के असलम खान ऐसे ही एक व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने अपने निजी दुःख को मानवता की सेवा में बदल दिया और समाज के वंचित वर्गों के लिए समर्पित एक अनुकरणीय मिसाल कायम की।आवाज द वाॅयस की विशेष श्रृंखला द चेंज मेकर्स के लिए हमारी सहयोगी डाॅ फिरदौस खान ने गुरूग्राम के असलम खान पर यह विशेष रिपोर्ट तैयार की है।
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असलम खान हरियाणा अंजुमन चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक हैं, जो आज गुरुग्राम और आसपास के क्षेत्रों में सामाजिक सेवा के क्षेत्र में एक जाना-पहचाना नाम बन चुका है।
इस ट्रस्ट की नींव किसी योजना या महत्वाकांक्षा से नहीं, बल्कि एक बेटे की पीड़ा और संवेदना से पड़ी। वर्ष 2000 में जब असलम खान की माता को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का पता चला, तब उनका जीवन एक कठिन दौर से गुजर रहा था।
माँ के इलाज के लिए विभिन्न अस्पतालों के चक्कर लगाते हुए उन्होंने न केवल अपनी माँ की पीड़ा देखी, बल्कि उन असंख्य गरीब मरीजों की बेबसी को भी महसूस किया, जिनके पास इलाज के लिए पर्याप्त धन नहीं था। यह दृश्य उनके हृदय में गहराई तक उतर गया।
अस्पतालों के गलियारों में तड़पते मरीजों और निराश परिजनों को देखकर असलम खान के मन में एक प्रश्न बार-बार उठता रहा,क्या समाज के कमजोर और गरीब लोगों के लिए कुछ किया नहीं जा सकता?
यहीं से उनके भीतर सेवा का बीज अंकुरित हुआ। उन्होंने यह संकल्प लिया कि वे अपनी क्षमता के अनुसार जरूरतमंदों के लिए कुछ ठोस और स्थायी कार्य करेंगे।
अपने विचार को साकार करने के लिए असलम खान ने अपने मित्रों, परिचितों और समाज के जागरूक लोगों से संवाद किया। उनके उद्देश्य की सराहना हुई और कई लोग इस मानवीय मिशन से जुड़ने को तैयार हो गए।
सामूहिक प्रयासों के फलस्वरूप हरियाणा अंजुमन चैरिटेबल ट्रस्ट ने आकार लिया और वर्ष 2003 में इसे औपचारिक रूप से पंजीकृत किया गया। धीरे-धीरे यह ट्रस्ट सेवा, विश्वास और सहयोग का प्रतीक बनता चला गया।
ट्रस्ट की पहली बड़ी पहल गुरुग्राम के सेक्टर 28 स्थित चक्कपुर गांव में एक निःशुल्क डिस्पेंसरी की स्थापना थी। यहाँ गरीब और जरूरतमंद लोगों को बिना किसी शुल्क के चिकित्सा परामर्श और दवाइयाँ उपलब्ध कराई जाने लगीं। जल्द ही इस डिस्पेंसरी की ख्याति दूर-दराज के इलाकों तक फैल गई और आसपास के गाँवों तथा बस्तियों से लोग इलाज के लिए आने लगे।
जनसहयोग और दानदाताओं की मदद से ट्रस्ट ने एक एम्बुलेंस भी खरीदी, जो चौबीसों घंटे सेवा में रहती है। यह एम्बुलेंस न केवल गंभीर मरीजों को अस्पताल पहुँचाने का कार्य करती है, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर शव वाहन के रूप में भी उपयोग की जाती है। असहाय परिवारों के लिए यह सुविधा किसी वरदान से कम नहीं है।
अस्लम खान का सपना यहीं तक सीमित नहीं है। वे कहते हैं कि उनका लक्ष्य एक ऐसा बड़ा अस्पताल स्थापित करना है, जो आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं से सुसज्जित हो और जहाँ गरीब मरीजों को सम्मानजनक उपचार मिल सके।
इसके साथ ही वे एक ऐसे शैक्षणिक संस्थान की स्थापना का भी स्वप्न देखते हैं, जहाँ बच्चों को धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक ज्ञान भी दिया जाए, ताकि वे बदलते समय के साथ आत्मविश्वास से आगे बढ़ सकें।
चिकित्सा और शिक्षा के अलावा ट्रस्ट ने सामाजिक आवश्यकताओं के अन्य क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सर्दियों के मौसम में गरीबों को गर्म कपड़े, कंबल और रजाइयाँ वितरित की जाती हैं, जिससे ठंड से जूझ रहे परिवारों को राहत मिलती है।
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नए गुरुग्राम में लंबे समय तक मुस्लिम समुदाय के लिए कब्रिस्तान की सुविधा नहीं थी, जिसके कारण लोगों को अपने प्रियजनों को दफनाने के लिए दूर-दराज जाना पड़ता था।
इस गंभीर समस्या को देखते हुए ट्रस्ट ने हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HUDA) से संपर्क किया। प्रयास रंग लाए और सेक्टर 56/58 में भूमि आवंटित की गई। ट्रस्ट ने वहाँ कब्रिस्तान का विकास कराया, पानी-बिजली की व्यवस्था की और चारदीवारी का निर्माण करवाया। यह पहल समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक समाधान साबित हुई।
ट्रस्ट लावारिस शवों के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी भी पूरी संवेदनशीलता के साथ निभाता है। इस्लामी परंपराओं के अनुसार शवों को नहलाना, कफन देना और दफनाने की सभी व्यवस्थाएँ ट्रस्ट द्वारा की जाती हैं।
दुर्घटनाओं में क्षत-विक्षत शवों और अस्पतालों में चिकित्सा प्रक्रियाओं से निकाले गए अंगों को भी सम्मानपूर्वक दफनाया जाता है।
समुदाय की धार्मिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ट्रस्ट ने सेक्टर 57 में अंजुमन जामा मस्जिद का निर्माण कराया। यहाँ नियमित नमाज, जुमे की नमाज और रमजान में इफ्तार की विशेष व्यवस्थाएँ की जाती हैं।
मस्जिद के रखरखाव, बिजली और पानी की समस्याओं के समाधान के लिए 25 KVA का साइलेंट जनरेटर भी लगाया गया है।
इसी परिसर में गरीब और बेघर बच्चों के लिए एक निःशुल्क साक्षरता केंद्र भी संचालित किया जाता है, जहाँ उर्दू और अरबी के साथ-साथ हिंदी, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान की शिक्षा दी जाती है। बच्चों के नैतिक और सामाजिक विकास पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर विशेष कार्यक्रम आयोजित कर बच्चों में देशभक्ति की भावना जागृत की जाती है।
ईद जैसे त्योहारों पर बच्चों को नए कपड़े और जूते भेंट किए जाते हैं, ताकि वे भी खुशियों में समान रूप से शामिल हो सकें।
निस्संदेह, असलम खान की यह यात्रा इस बात का प्रमाण है कि यदि संकल्प सच्चा हो और उद्देश्य मानवता की सेवा हो, तो व्यक्तिगत विपत्ति भी समाज के लिए वरदान बन सकती है।

उनका जीवन हमें सिखाता है कि संवेदना और कर्मठता मिलकर एक बेहतर समाज की नींव रख सकती है।