आजादी के 75 वर्ष: आर्थिक विकास में मुस्लिम कारोबारियों की अविस्मरणीय भूमिका

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 14-08-2022
आर्थिक विकास में मुस्लिम कारोबारियों की भूमिका अविस्मरणीय
आर्थिक विकास में मुस्लिम कारोबारियों की भूमिका अविस्मरणीय

 

pramodप्रमोद जोशी
 
हाल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में लुलु मॉल का उद्घाटन किया. दो हजार करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया यह मॉल उत्तर भारत में ही नहीं देश के सबसे शानदार मॉलों में एक है. यूएई के लुलु ग्रुप के इस मॉल से ज्यादा रोचक है लुलु ग्रुप के चेयरमैन युसुफ अली का जीवन. हालांकि उनका ज्यादातर कारोबार यूएई में है, पर वे खुद भारतीय हैं. उनका ग्रुप पश्चिमी एशिया, अमेरिका और यूरोप के 22 देशों में कारोबार करता है.

युसुफ अली व्यापार से ज्यादा चैरिटी के लिए पहचाने जाते हैं. गुजरात में आए भूकंप से लेकर सुनामी और केरल में बाढ़ तक के लिए उन्होंने कई बार बड़ी धनराशि दान में दी है.
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उनके ग्रुप का सालाना टर्नओवर 8 अरब डॉलर का है और उन्होंने करीब 57 हजार लोगों को रोजगार दिया हुआ है. भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया है. भारत और यूएई की सरकार के मजबूत रिश्तों में उनकी भी एक भूमिका है.
 
दक्षिण और गुजरात
 
युसुफ अली के बारे में जानकारियों की भरमार है, पर यह आलेख भारत के मुस्लिम उद्यमियों, उद्योगपतियों और कारोबारियों के बारे में है, जिन्होंने देश के आर्थिक-विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और निभा रहे हैं. मुस्लिम कारोबारियों के बारे में जानकारी जुटाना आसान नहीं है, क्योंकि ऐसी सामग्री का अभाव है, जिसमें सुसंगत तरीके से अध्ययन किया गया हो.
 
पहली नज़र में एक बात दिखाई पड़ती है कि उत्तर भारत के मुसलमानों के मुकाबले दक्षिण भारत और गुजरात के मुसलमानों ने कारोबार में तरक्की की है. ऐसे मुसलमानों का कारोबार बेहतर साबित हुआ है, जिनकी शिक्षा या तो यूरोप या अमेरिका में हुई या भारत के आईआईटी या आईआईएम में. 
 
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अलबत्ता असम के कारोबारी बद्रुद्दीन अजमल इस मामले में एकदम अलग साबित हुए हैं. उन्हें अपने कारोबार और परोपकारी कार्यों से ज्यादा अब हम उनके राजनीतिक दल ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) की वजह से बेहतर जानते हैं. 
 
सफल मुस्लिम-कारोबारियों को ग्राहकों और यहाँ तक कि अपने प्रबंधकों या कर्मचारियों के रूप में हिंदुओं की जरूरत पड़ती है. तीसरे, उत्तर के मुसलमान कारोबारी समय के साथ अपने परंपरागत बिजनेस को छोड़ नहीं पाए, जबकि दक्षिण और गुजरात के मुसलमान-कारोबारियों ने नए बिजनेस पकड़े और उसमें सफल भी हुए. 
 
सिपला और हिमालय
 
दुर्भाग्य से भारत में कुछ ऐसे मौके भी आए हैं, जब मुस्लिम कारोबारियों के बहिष्कार की अपीलें जारी होती हैं. पिछले दिनों दक्षिण भारत में जब हिजाब को लेकर विवाद खड़ा हो रहा था, तब भी ऐसा हुआ.
 
उन्हीं दिनों नफरती हैशटैग और प्रचार के बीच खबर यह भी थी कि भारतीय फार्मास्युटिकल्स कंपनी सिपला और भारत सरकार की कंपनी आईआईसीटी मिलकर कोविड-19 की दवाई विकसित करने जा रहे हैं.
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सिपला का भारत में ही नहीं अमेरिका तक में नाम है. 1935 में इसकी स्थापना राष्ट्रवादी मुसलमान ख्वाजा अब्दुल हमीद ने की थी. आज उनके बेटे युसुफ हमीद इसका काम देखते हैं.
 
सिपला के अलावा भारत की फार्मास्युटिकल कंपनी वॉकहार्ट भी जेनरिक दवाओं के अग्रणी है. इसके मालिक दाऊदी बोहरा हबील खोराकीवाला हैं.
 
इसी तरह आयुर्वेदिक औषधियों की प्रसिद्ध कंपनी हिमालय है, जिसे एक मुस्लिम परिवार चलाता है. इसके खिलाफ भी हाल में दुष्प्रचार हुआ. हिमालय की स्थापना मुहम्मद मनाल ने 1930 में की.
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देहरादून में इनामुल्लाह बिल्डिंग से इस कंपनी की छोटी सी शुरुआत हुई थी. मुहम्मद मनाल के पास कोई वैज्ञानिक डिग्री नहीं थी, पर उन्होंने आयुर्वेदिक औषधियों के वैज्ञानिक परीक्षण का सहारा लिया. 
 
हालांकि भारत के लोग परंपरागत दवाओं पर ज्यादा भरोसा करते हैं, पर पश्चिमी शिक्षा के कारण उनका मन आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं से हट रहा था. ऐसे में हिमालय का जन्म हुआ.
 
एक अरसे तक कारोबार के बाद 1955 में इसके लिवर-रक्षक प्रोडक्ट लिव-52 ने चमत्कार किया. यह दवाई दुनियाभर में प्रसिद्ध हो गई और आज भी देश में सबसे ज्यादा बिकने वाली 10 दवाओं में शामिल है.
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मुहम्मद मनाल के पुत्र मेराज मनाल 1964 में कंपनी में शामिल हुए. अपने जन्म के 92 साल बाद यह कंपनी दुनिया में भारत की शान है. भारत में 22 से 24 करोड़ के बीच मुस्लिम आबादी है.
 
इनमें काफी बड़ा हिस्सा आर्थिक रूप से कमज़ोर है. उनकी कमज़ोरी अक्सर मीडिया का विषय बनती हैं, पर उद्योग और बिजनेस में मुसलमानों की सकारात्मक भूमिका अक्सर दबी रह जाती है.
 
इन उद्यमियों ने भारत के युवा मुसलमानों को इंजीनियरी, चार्टर्ड एकाउंटेंसी, आईटी, मीडिया तथा अन्य आधुनिक कारोबारों में आगे आने को प्रोत्साहित किया है. 
 
परंपरागत कारोबार
 
उत्तर भारत में मुसलमान अपेक्षाकृत कमजोर और पिछड़े हैं. इसकी एक वजह यह भी है कि उत्तर के काफी समृद्ध मुसलमान पाकिस्तान चले गए. उत्तर में भी मुसलमान कारोबारी दस्तकारी से जुड़े कामों में ज्यादा सक्रिय थे. जैसे कि मुरादाबाद का पीतल उद्योग, फिरोजाबाद का काँच उद्योग, वाराणसी का सिल्क उद्योग.
 
इन उद्योगों में कई कारणों से मंदी आई है. इलाहाबाद में शेरवानी परिवार के जीप फ्लैशलाइट का नाम अब सुनाई नहीं पड़ता. उत्तर भारत के सुन्नी मुसलमान-उद्योगपतियों में हमदर्द के हकीम अब्दुल हमीद खां का नाम बेशक लिया जा सकता है.
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हमदर्द दवाखाना की स्थापना 1906 में हमीद अब्दुल मज़ीद ने की थी. विभाजन के बाद इस परिवार का भी विभाजन हो गया और अब्दुल हमीद के भाई हकीम मुहम्मद सईद पाकिस्तान चले गए. भारतीय रूह अफ्ज़ा के मुकाबले पाकिस्तानी रूह अफ्ज़ा भी दुनिया के बाजारों में बिकता है. 
 
हाल के वर्षों में कई कारणों से मुस्लिम-उद्यमियों के सामने दिक्कतें पैदा हुई हैं. सन 2009-10 में मुस्लिम मिल्कियत से पंजीकृत लघु और मझोले उद्योगों की संख्या 10.24 फीसदी से घटकर 2014-15 में 9.1 प्रतिशत रह गई थी.
 
परंपरा से कई तरह के कारोबारों में मुसलमानों की हिस्सेदारी ज्यादा बड़ी रही है. इनमें सिल्क, कालीन, हैंडलूम और पावरलूम, लैदर, ऑटोमोबाइल रिपेयरिंग और गार्मेंट मेकिंग जैसे काम हैं.
 
स्क्रैप कलेक्शन में भी मुसलमानों की भागीदारी रही है. ये ज्यादातर काम लघु और मझोले सेक्टर हैं. उत्तर भारत के मुकाबले दक्षिण भारत में मुस्लिम उद्यमियों ने आईटी, हैल्थकेयर, फैशन जैसे नए उद्यमों में पहलकदमी की है. 
 
तिजारत में दिलचस्पी कम

पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता आकार पटेल ने 2010 में अपने एक आलेख में देश के मुस्लिम-बिजनेसमैन को लेकर एक रोचक आलेख लिखा था. आकार पटेल ने लिखा है कि भारत में मुसलमानों की दिलचस्पी तिजारत में कम है, जबकि उन्हें तिजारत में आना चाहिए.
 
पैगंबर मुहम्मद साहब खुद कारोबारी थे. उन्होंने लिखा कि कारोबारी मनोवृत्ति कुछ खास इलाकों में ज्यादा है. इसमें मज़हब या धर्म से ज्यादा इलाके की भूमिका है.
 
मसलन गुजराती हिंदुओं की तरह गुजराती शिया मुसलमान भी बिजनेस में आगे हैं. उत्तर भारत के काफी मुसलमानों की दिलचस्पी कारीगरी और दस्तकारी में हैं. वे मिकैनिक, कारपेंटर, बूचर, प्लंबर, मशीनमैन वगैरह का काम करना पसंद करते हैं. ये ज्यादातर काम छोटे स्तर पर होते हैं. 
 
मीडिया-कारोबार

अपवाद सब जगह हैं. मसलन मीडिया के बिजनेस में उन्होंने मुंबई के खालिद अंसारी का जिक्र किया, जिन्होंने मिड डे और स्पोर्ट्स वीक जैसे सफल अंग्रेजी पत्रों का प्रकाशन किया.
 
इस परिवार के अब्दुल हमीद अंसारी ने इंकलाब नाम से उर्दू का रिसाला निकाला था, जो आज भी चल रहा है, पर मिड डे बेच दिया गया. स्पोर्ट्स वीक बंद हो गई.
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इस परिवार के प्रमुख अब्दुल हमीद अंसारी ‘मुजाहिद-ए-आज़ादी’ यानी स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने पाकिस्तान जाने का मुहम्मद अली जिन्ना का निमंत्रण ठुकरा दिया था.
 
उन्होंने जिन्ना को खत लिखकर जवाब दिया कि हम अंसारी हैं भारतीय मुसलमान। हम भारत में ही रहेंगे।.मीडिया के बिजनेस में कुछ देर के लिए पत्रकार एमजे अकबर भी आए थे, जिन्होंने एशियन एज निकाला, पर उसे बेचना पड़ा.
 
बाद में एक साप्ताहिक निकाला, जिसे भी छोड़ना पड़ा. हैदराबाद के सियासत समूह के प्रवर्तक परिवार का नाम भी मुस्लिम कारोबारियों में लिया जाना चाहिए, जो आज भी सफलता के साथ काम कर रहे हैं. 
 
अज़ीम प्रेमजी

मुस्लिम-कारोबार का जिक्र अज़ीम प्रेमजी के नाम का जिक्र किए बगैर नहीं किया जा सकता. देश के ही नहीं दुनिया के सफलतम मुस्लिम-बिजनेसमैन के रूप में उन्हें याद किया जाना चाहिए.
 
सितंबर 2007 में अमेरिका के अखबार  वॉल स्ट्रीट जरनल ने एक आलेख प्रकाशित किया ‘हाउ अ मुस्लिम बिलियनेयर थ्राइव्स इन हिंदू इंडिया.’ यह कहानी अज़ीम प्रेमजी की थी, जिन्होंने विप्रो इंडिया के वनस्पति तेलों के पारिवारिक कारोबार का रूपांतरण करके भारत के उभरते आईटी कारोबार के शिखर पर पहुँचने का साहस दिखाया.
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इतना ही नहीं सामाजिक-बदलाव के लिए अपनी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा दान में देकर उन्होंने ऐसी मिसाल कायम की, जिसका जवाब नहीं. एशियावीक पत्रिका ने सन 2010 में उन्हें दुनिया के 20 सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों की सूची में शामिल किया.
 
टाइम मैगजीन ने 2004 और 2011 में दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में शामिल किया. बरसों तक वे दुनिया के 500 सबसे प्रभावशाली मुस्लिम व्यक्तियों की सूची में रहे.
 
उन्हें भारत सरकार ने पद्मविभूषण से अलंकृत किया है, जो भारत रत्न के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा अलंकरण है. अपने कारोबार के अलावा वे तमाम तरह के सामाजिक कार्यों में लगे रहते हैं.
 
इनमें ही उनकी एक महत्वपूर्ण भूमिका अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के चांसलर की है. हुरुन इंडिया और एडेलगिव की एडेलगिव हुरुन इंडिया परोपकार सूची 2021 में सबसे ऊपर उनका नाम है.
 
वे तमाम भारतीयों के लिए रोल मॉडल बन चुके हैं. पर उनके साथ उनकी मुस्लिम पहचान का अंतर्विरोध है. वे अपनी मुस्लिम-पहचान को रेखांकित करना नहीं चाहते. बहुत से लोग जानते भी नहीं कि वे मुसलमान हैं. 
 
इसके पीछे उनकी पारिवारिक विरासत भी है. उन्नीस सौ चालीस के दशक में उनके पिता एमएच प्रेमजी से पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना ने कहा कि हम आपको पाकिस्तान में कैबिनेट मंत्री का पद देंगे.
 
पर वे नहीं गए. जरूरत इस बात की है कि मुसलमान नौजवानों के लिए अज़ीम प्रेमजी और दूसरे मुसलमान उद्यमी रोल मॉडल बनें.
 
खोजा और दाऊदी बोहरा

विप्रो के अज़ीम प्रेमजी खोजा हैं, जो जिन्ना भी थे. फार्मास्युटिकल कंपनी वॉकहार्ट (Wockhardt) के मालिक दाऊदी बोहरा हबील खोराकीवाला हैं. वे फिक्की के अध्यक्ष भी रहे.
 
खोराकीवाला परिवार ने ही भारत में पहले डिपार्टमेंटल स्टोर अकबरअलीज़ खोला था. एक और गुजराती मुस्लिम हैं सिपला के मालिक युसुफ हमीद. सिपला की शुरुआत ख्वाजा अब्दुल हमीद ने की थी.
 
गुजरात में मुसलमान कारोबारियों का संख्या काफी बड़ी है. हाल के वर्षों में ज़फर सरेशवाला का नाम काफी उभरा है. इसमें उनके कारोबार से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी निकटता की भूमिका ज्यादा है. हिंदी फिल्मों के प्रोड्यूसर नडियाडवाला भी गुजराती हैं. 
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भारत में महिंद्रा एंड महिंद्रा आज मोटर गाड़ियों का बड़ा उद्योग है. इसकी स्थापना 1945 में हुई थी. महिंद्रा बंधुओं और गुलाम मुहम्मद की पार्टनरशिप में महिंद्रा एंड मुहम्मद नाम से कंपनी बनी, जो विश्व प्रसिद्ध विलीस की जीप बनाती थी.
 
विभाजन के बाद मलिक गुलाम मुहम्मद साहब अपना कारोबार छोड़कर जिन्ना साहब के बुलावे पर पाकिस्तान चले गए. वे पाकिस्तान के पहले वित्तमंत्री बने और फिर 1951 में गवर्नर जनरल बने. बहरहाल, आज की महिंद्रा एंड महिंद्रा के पीछे भी एक मुसलमान कारोबारी की कहानी है. 
 
नए कारोबारी

चलते-चलाते देश के नए उभरते मुस्लिम कारोबारियों का जिक्र भी होना चाहिए, जो या तो स्टार्टअप चला रहे हैं या नए किस्म के कारोबारों में आ रहे हैं. इनमें सबसे पहले शहनाज़ हुसेन के नाम का जिक्र इस वजह से भी होना चाहिए, क्योंकि वे महिला उद्यमी हैं.
 
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उन्होंने आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और देशी फॉर्मूलों की मदद से ब्यूटी ट्रीटमेंट की एक नई लहर पैदा कर दी. और फिल्म-स्टार शाहरुख खान का जिक्र भी होना चाहिए, जिनकी कंपनी रेड चिलीज़ फिल्म्स मनोरंजन के क्षेत्र में है और कोलकाता नाइट राइडर्स के साथ वे खेल के मैदान में भी उतरे हैं.
 
केकेआर अब भारत के बाहर भी सक्रिय है. कुछ दूसरे नामों में अयाज़ बसराय का बसराइड डिजाइन स्टूडियो है, ज एकदम नए किस्म का कारोबार है. अज़हर इकबाल, इनशॉर्ट न्यूज़. फरहान आज़मी, इनफाइनिटी होटल्स.
 
 

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फैसल फारूकी, माउथशट. गुलरेज़ आलम, जल्ट्रिक्स. इरफान आलम, सम्मान रिक्शेवालों का. इरफान रज़्ज़ाक, प्रेस्टिज ग्रुप. जावेद अख्तर, ट्रैवलपोर्ट. जावेद हबीब, हेयर एंड ब्यूटी. मुहम्मद हिसामुद्दीन, इन्नोज़ टेक्नोलॉजीस. सिराजुद्दीन कुरैशी, हिंद इंडस्ट्रीज़.

आजाद मूपेन, एस्टर डीएम हैल्थकेयर. बेंगलुरु का आईडी फ्रेश फूड्स, जिसके मालिक हैं केरल के पीसी मुस्तफा. और नवाज शरीफ, अम्मीज़ बिरयानी ये सब एकदम नए कारोबार हैं और सफल हैं.
 
( लेखक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं.)

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