अब्दुल वसीम अंसारी/ राजगढ़ (मध्यप्रदेश)
मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले का एक छोटा-सा शहर पारायण चौक इन दिनों एक अनोखी खबर को लेकर सुर्खियों में है. यहां के रहने वाले मोटर मैकेनिक सलमान मंसूरी ने कुछ ऐसा कर दिखाया है, जिसने न केवल पूरे इलाके बल्कि सोशल मीडिया पर भी लोगों का ध्यान खींच लिया है. सलमान ने अपनी बिटिया की फरमाइश पूरी करने के लिए कबाड़ में पड़ी एक पुरानी स्कूटी को ऐसा रूप दे दिया कि अब उसे देखने लोग दूर-दूर से आने लगे हैं. उनकी यह बनाई हुई बाइक किसी कंपनी के इंजीनियर की नहीं, बल्कि एक पिता के जज़्बे और हुनर की मिसाल है.
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सलमान मंसूरी पेशे से एक साधारण मोटर मैकेनिक हैं. उनकी दुकान बागवान परिसर में है, जहां वे रोजाना शहरी और ग्रामीण इलाकों से आने वाली गाड़ियों की मरम्मत करते हैं. शिक्षा के नाम पर उन्होंने बस माध्यमिक तक पढ़ाई की है, लेकिन उनके पास एक ऐसा हुनर है, जिसे देखकर कई इंजीनियर भी दंग रह जाएं. सलमान का कहना है कि वे हमेशा से कुछ अलग करना चाहते थे, पर जिंदगी की जिम्मेदारियों और सीमित आय ने उन्हें कभी वह मौका नहीं दिया.
सलमान बताते हैं कि एक दिन उनकी बड़ी बेटी ने उनसे कहा, “अब्बू, मुझे भी एक सुंदर और नई स्कूटी चाहिए, जैसी हमारी गली में रहने वाली लड़की चलाती है.” उस समय सलमान के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह कोई नई स्कूटी खरीद पाते. लेकिन उन्होंने ठान लिया कि अगर खरीदी नहीं जा सकती, तो खुद बनाई जाएगी. इसी सोच के साथ उन्होंने अपने हुनर को आज़माने का फैसला किया.
करीब चार महीने पहले सलमान को कबाड़ के बाजार में एक पुरानी स्कूटी मिली. स्कूटी का इंजन सही हालत में था, लेकिन बाकी सब हिस्सा टूट-फूट चुका था. किसी और के लिए यह कबाड़ का ढेर था, लेकिन सलमान के लिए यह उनकी बेटी के सपनों की नींव बन गई. वे कहते हैं, “मैंने स्कूटी को पूरी तरह से खोल दिया. इंजन को साफ किया, पुर्जों को अलग किया और दिमाग में एक डिजाइन बनाना शुरू किया. मुझे एक ऐसी बाइक तैयार करनी थी जो दिखने में छोटी बुलेट जैसी लगे लेकिन हल्की और बेटियों के चलाने लायक हो.”
सलमान ने पुरानी बुलेट बाइक का एक पेट्रोल टैंक कबाड़ से खरीदा. उन्होंने उसके साइज और शेप को अपनी डिजाइन के मुताबिक ढाल लिया. बाइक के फ्रेम को नया आकार दिया, साइलेंसर को छोटा किया और हेडलाइट को आकर्षक लुक दिया. सीट को नीचे रखा ताकि बच्चे या महिलाएं आसानी से चला सकें. धीरे-धीरे उनकी ‘जुगाड़ बाइक’ आकार लेने लगी. उन्होंने इसका नाम रखा — मिनी बाइक.
पूरी बाइक बनाने में सलमान को लगभग 30हजार रुपये का खर्च आया. लेकिन उनके मुताबिक यह सिर्फ़ पैसों का नहीं, बल्कि मेहनत, लगन और प्यार का काम था. वे कहते हैं, “मेरे लिए यह कोई कारोबार नहीं था. यह मेरी बिटिया का सपना था, जो अब हकीकत बन चुका है. जब वह इसे चलाने लायक हो जाएगी, तो मैं इसे उसी के हवाले करूंगा.”

जब यह मिनी बाइक पूरी तरह बनकर तैयार हुई, तो सलमान ने उसे अपनी दुकान के बाहर खड़ा किया. कुछ ही घंटों में आसपास के लोग उसे देखने आने लगे. कोई फोटो खींचने लगा, कोई पूछने लगा कि यह कौन-सी कंपनी की बाइक है. कई लोगों ने तो बाइक खरीदने की पेशकश भी कर डाली. राजस्थान से भी कुछ लोग इसे देखने आए और दाम लगाने की कोशिश की. लेकिन सलमान ने मुस्कराते हुए कहा, “यह बाइक बिकने के लिए नहीं बनी है, यह मेरी बेटी के लिए है. इसके बदले कोई रकम नहीं चाहिए.”
यह बाइक दिखने में छोटी बुलेट जैसी है, लेकिन हल्की और आकर्षक है. इसमें 45से 50किलोमीटर प्रति लीटर का एवरेज मिलता है. बाइक के इंजन से लेकर डिजाइन तक हर पुर्जे को सलमान ने अपने हाथों से फिट किया है. उन्होंने किसी कंपनी का सहारा नहीं लिया, बस अपनी मेहनत और तकनीकी समझ से इसे तैयार किया.
राजगढ़ के लोग अब सलमान की तारीफ करते नहीं थकते. कोई उन्हें “राजगढ़ का जुगाड़ू इंजीनियर” कहता है, तो कोई “बिटिया के हीरो”. सोशल मीडिया पर भी उनकी यह बाइक चर्चा में है. कई लोग उन्हें प्रेरणा का स्रोत मान रहे हैं, क्योंकि उन्होंने साबित किया है कि बड़ा काम करने के लिए बड़े संसाधन नहीं, बल्कि बड़ा दिल और मजबूत इरादा चाहिए.
सलमान के परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटियां, माता-पिता और भाई-भाभी शामिल हैं. उनके पिता अब्दुल मन्नान मंसूरी और बहन दोनों ग्रेजुएट हैं. परिवार में शिक्षा को अहमियत दी जाती है. सलमान चाहते हैं कि उनकी बेटियां भी खूब पढ़ें, आगे बढ़ें और दुनिया में नाम कमाएं. वे कहते हैं, “हर पिता चाहता है कि उसकी बेटी खुश रहे. मेरे पास देने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था, इसलिए मैंने अपने हाथों से कुछ बना दिया जो उसकी मुस्कान बन सके.”

उनकी यह कहानी ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे अभियानों को नया अर्थ देती है. उन्होंने दिखाया कि बेटियों के सपनों को पूरा करना सिर्फ़ अमीरों का काम नहीं है, बल्कि एक आम पिता भी अपने हुनर से उन सपनों को पंख दे सकता है.
आज सलमान मंसूरी की यह मिनी बाइक न केवल उनके परिवार के लिए गौरव का विषय है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि असंभव कुछ नहीं होता. एक साधारण मैकेनिक ने अपनी मेहनत और लगन से जो कर दिखाया, वह इस बात का सबूत है कि सीमित साधनों के बावजूद भी सपनों को साकार किया जा सकता है.
राजगढ़ का यह छोटा-सा शहर अब सलमान की इस अनोखी उपलब्धि पर गर्व कर रहा है. लोग कहते हैं, “सलमान ने कबाड़ में नहीं, अपने हुनर में सोना ढूंढ़ निकाला है.” उनकी यह कहानी सिर्फ़ एक बाइक की नहीं, बल्कि एक पिता के उस प्यार की कहानी है, जो बेटियों के सपनों को हकीकत में बदल देता है.